वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 24 मार्च को कई राहत उपायों की घोषणा की थी, जिसमें कई घोषणा विशेष तौर पर बैंकिंग क्षेत्र के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य अगले तीन महीनों के लिए आम नागरिकों के जीवन को आसान करना था।
इनमें खाते में न्यूनतम जमा रकम को नहीं बनाए रखने पर लगने वाले शुल्क को पूरी तरह से समाप्त करना और किसी भी बैंक के ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम) से नि:शुल्क पैसे की निकासी शामिल था। उन्होंने आयकर रिटर्न दाखिल करने की तारीख को भी 31 मार्च से बढ़ाकर 30 जून कर दिया था। इसी तरह की छूट वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रिटर्न दाखिल करने पर भी दी गई थी। जीएसटी रिटर्न दाखिल करने पर विलंब शुल्क या जुर्माने को पूरी तरह से समाप्त कर दिया था, ऋणशोधन एवं दिवाला संहिता के तहत कंपनियों की ओर से चूक करने की शुरुआती सीमा को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दिया था और दिवाला संहिता के कुछ निश्चित नियमों को निलंबित करने का वचन दिया था।
तब वित्त मंत्री ने एक आर्थिक पैकेज लाने का भी वादा किया था जो बाद में 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के तौर पर सामने आया जिसमें मुख्य तौर पर पैसे पर गारंटी दी गई थी और मध्यम से दीर्घावधि के उपाय किए गए थे। इसके समानांतर कदम उठाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान आवाजाही पर रोक को देखते हुए बॉन्ड और नकदी बाजारों के लिए बाजार की समय सीमा में कटौती की थी। समय सीमा में की गई कटौती अभी भी जारी है।
तीन महीने की वह समय सीमा जून के अंत में समाप्त हो गई और बैंकों ने अपने ग्राहकों से शुल्क वसूलना आरंभ कर दिया है जबकि आर्थिक परिदृश्य पहले से और अधिक खराब हुआ है। बैंकों या सरकार ने एटीएम से जुड़े नियमों को आगे बढ़ाने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की है जिसका मतलब है कि बैंक अब पहले की तरह अपने ग्राहकों से शुल्क वसूल सकते हैं।
