केंद्र सरकार अमेरिका (America) और यूरोप (Europe) में खराब होती बैकिंग व्यवस्था (banking system) पर नजर रखे हुए है और सरकार को छोटे व मझोले आकार के बैंकों को नकदी के संकट (liquidity crisis) की संभावना नहीं है। साथ ही भारत के बैंकों (Indian Banks) पर इसका असर पड़ने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि पिछले दशक के NPA संकट के बाद घरेलू स्तर पर नियमन और निगरानी सख्त की गई है।
एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम पहले ही अपने संकट से गुजर चुके हैं और इसकी कीमत चुकाई है। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने व्यवस्था बनाई है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भारत के बैंकों को पश्चिमी बैंकों की तरह नकदी संकट से नहीं जूझना पड़ेगा।’
एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि मार्च 2018 के बाद वित्तीय क्षेत्र की सेहत लगातार सुधर रही है, जो संपत्ति की गुणवत्ता, मुनाफा आदि जैसे सुधरे वित्तीय मानकों में नजर आ रही है। भारत के बैंकों का सकल NPA अनुपात मार्च के 11.2 प्रतिशत से गिरकर सितंबर 2022 में 5 प्रतिशत पर पहुंच गया है। वहीं कैपिटल टु रिस्क वेटेड असेट्स रेशियो (CRAR) मार्च 2018 के 13.8 प्रतिशत से सुधरकर सितंबर 2022 में 16.1 प्रतिशत हो गया है।
पहले अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘हम पश्चिम में हो रही प्रगति पर नजदीकी से नजर बनाए हुए हैं। पिछले साल तक भी कोई यह नहीं सोचता था कि अमेरिका के क्षेत्रीय बैंक ध्वस्त होने शुरू हो जाएंगे। कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि स्थिति कितनी खराब होगी, लेकिन पश्चिम का वित्तीय संकट गहरा सकता है।’
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अमेरिकी बैंकिंग दिग्गज जेपी मॉर्गन (JP Morgan) सोमवार को फर्स्ट रिपब्लिक बैंक (First Republic Bank) को खरीदने के लिए सहमत हो गया है, जिसका सौदा अमेरिकी सरकार ने कराया है। यह सौदा नियामकों द्वारा फर्स्ट रिपब्लिक की संपत्तियों को जब्त किए जाने के बाद हुआ है, जो नकदी संकट का सामना कर रहा बैंक है।
इसके पहले सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) और सिगनेचर बैंक (Signature Bank) मार्च में डूबे थे। इन बैंकों द्वारा नकदी के संकट का सामना करने की मुख्य वजह यह है कि इन सभी ने यूएस ट्रेजरीज (US treasuries) में भारी निवेश किया है। पिछले साल फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की थी, जिससे महंगाई घटाई जा सके, उसके साथ ही बैंकों के बॉन्ड में निवेश पर विपरीत असर पड़ने लगा।