देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) पर 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क की घोषणा से खतरा मंडराने लगा है। देश के कुल निर्यात में 45 प्रतिशत से अधिक योगदान करने वाले इस क्षेत्र के सामने बड़ी आफत आ खड़ी हुई है। एमएसएमई उद्योग संगठनों ने अमेरिकी कदम का बड़ा असर होने की चिंता जताई है और सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है।
इंडिया एसएमई फोरम के अध्यक्ष विनोद कुमार ने कहा कि शुल्क बढ़ने से सालाना 30 अरब डॉलर से अधिक का कारोबार खटाई में पड़ने की आशंका है। इस बदलाव से एमएसएमई क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होगा क्योंकि उसकी वित्तीय क्षमता बहुत कम होती है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो एंड स्मॉल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने शुल्क के झटके को भारतीय एमएसएमई निर्यातकों के लिए बहुत कठिन स्थिति करार दिया। उन्होंने कहा, ‘नए अमेरिकी शुल्क से भारतीय निर्यातकों की लागत दूसरे देशों के निर्यातकों की तुलना में 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। यदि 27 अगस्त तक कोई समाधान नहीं निकला तो अमेरिका जाने वाले माल में 40 से 50 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।’
विनोद कुमार ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, पश्चिम एशिया, पूर्वी यूरोप, प्रशांत द्वीप समूह और कैरेबियन क्षेत्र जैसे क्षेत्रों को निर्यात कर विविधता लाने की जरूरत पर जोर दिया क्योंकि उन इलाकों में संभावनाएं बहुत हैं मगर भारतीय निर्यात बहुत कम है। इन बाजारों में कम से कम 60 अरब डॉलर निर्यात की संभावना है, जिसे अभी तक टटोला नहीं गया है। ये क्षेत्र उन क्षेत्रों में भरोसेमंद तरीके से आपूर्ति करने वाले तलाश रहे हैं, जहां भारतीय एमएसएमई की पहले ही मजबूत मौजूदगी है। इनमें फार्मास्यूटिकल्स, कृषि और गैर-कृषि मशीनरी, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ और वस्त्र शामिल हैं। भारद्वाज ने प्रभावित एमएसएमई को सहारा देने के लिए राजकोषीय उपायों और उससे इतर उपायों के जरिये फौरन सरकारी हस्तक्षेप की अपील की। उन्होंने साथ में बाजार में विविधता लाने के लिए भी प्रयास करने की वकालत की। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ईएफटीए के साथ समझौतों के तहत व्यापार बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है मगर इसका फायदा उठाने के लिए भारतीय एमएसएमई को बाजार पहचानकर उनमें दाखिल होने के लिए ही नहीं बल्कि गुणवत्ता, पैकेजिंग और अनुपालन के सख्त होने पैमानों पर खरा उतरने के लिए भी व्यापक क्षमता निर्माण करना होगा।
एमएसएमई को इन चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाने के लिए इंडिया एसएमई फोरम उन्हें डिजिटल व्यापार प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने, समय पर किफायती निर्यात आर्थिक सहायता प्रदान करने तथा बाजार की तमाम जानकारी तत्काल मुहैया कराने के लिए सरकार के साथ काम कर रहा है। यह नए बाजारों में जाने के इच्छुक भारतीय निर्यातकों को हर तरह से मदद करने के लिए दुनिया के सभी प्रमुख शहरों में ट्रेड डेस्क, गोदाम और निर्यात वितरण केंद्र बनाने की दिशा में भी तेजी से काम कर रहा है।
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष हेमंत जैन ने कहा कि भारत में शुल्क के इस तूफान का सामना करने की मजबूत आर्थिक ताकत है। उन्होंने कहा, ‘भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ती आंतरिक खपत और नए एफटीए/पीटीए के जरिये इतनी क्षमता आ गई है कि वह 50 प्रतिशत शुल्क के झटके से उबर सकता है। हाल ही में हुए भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौते से भी उसे काफी मदद मिलेगी।’