सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने जो सिफारिश की है, उनमें किसी तरह के बदलाव का दूरसंचार विभाग का इरादा नहीं है। हालांकि दूरसंचार कंपनियों ने इस पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि सैटेलाइट सेवाओं के लिए समायोजित सकल राजस्व का 4 फीसदी या सालाना 3,500 रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज के साथ शहरी इलाकों में सालाना 500 रुपये प्रति ग्राहक शुल्क ‘अनुचित’ और काफी कम है।
नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘नियामक ने अपनी सिफारिश दे दी है। इसमें किसी बदलाव की जरूरत नहीं है। पांच साल बाद इसकी समीक्षा की जा सकती है।’
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इन सिफारिशों को मंजूरी मिलने में कुछ महीने का वक्त लग सकता है क्योंकि डिजिटल कम्युनिकेशंस कमीशन से इसकी मंजूरी लेनी होगी और वित्त मंत्रालय द्वारा भी इसकी जांच की जा सकती है।
उक्त अधिकारियों में से एक ने कहा कि स्पेक्ट्रम की कीमत तय होने के बाद दूरसंचार विभाग को सभी आवेदकों को स्पेक्ट्रम आवंटित करने में 30 से 45 दिन का वक्त लग सकता है। अधिकारी ने कहा कि पूरी तरह से वाणिज्यिक सेवा अगले साल की शुरुआत तक ही शुरू होने की संभावना है।
ईलॉन मस्क की स्टारलिंक, भारती समूह और यूटेलसैट समर्थित वनवेब तथा रिलायंस जियो एसईएस का संयुक्त उपक्रम जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिए प्रशासनिक आवंटन मूल्य निर्धारण तंत्र के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। दूरसंचार विभाग ने ट्राई की सिफारिश से पहले 7 मई को स्टारलिंक को आशय पत्र जारी किया था मगर कंपनी को सेवाओं का परीक्षण करने के लिए अभी ट्रायल स्पेक्ट्रम नहीं दिया गया है।
नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि स्टारलिंक को अभी अपने लैंडिंग स्टेशन का स्थान तय करना है और इसे स्थापित करने के लिए आवश्यक उपकरण मिलने के बाद ही उसे ट्रायल स्पेक्ट्रम मिलेगा। वनवेब और जियो सैटेलाइट को पिछले साल ट्रायल स्पेक्ट्रम दिया गया था जिसकी अनुमति इस साल बढ़ा दी गई है।
सैटेलाइट कम्युनिकेशन से जुड़ी दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि 4 फीसदी समायोजित सकल राजस्व पर स्पेक्ट्रम का आवंटन गलत अनुमान पर आधारित है और इससे सैटेलाइट ऑपरेटरों को फायदा होगा।
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने दूरसंचार विभाग को लिखे पत्र में कहा था कि सैटेलाइट कम्युनिकेशन सेवाएं टेरेस्ट्रियल सेवाओं का विकल्प होंगी इसलिए समायोजित सकल राजस्व एक समान नहीं होना चाहिए। संगठन ने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए प्रवेश शुल्क या अग्रिम भुगतान को माफ करने के ट्राई के फैसले की आलोचना की है।
हालांकि ट्राई के चेयरमैन अनिल कुमार लाहोटी का तर्क था कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम साझा संसाधन है और दुनिया भर में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की कीमत इसी के अनुसार तय की जाती है।
दूरसंचार कंपनियों के संगठन का कहना है कि प्रशासनिक स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में ट्राई का रुख अब तक अपनाए गए दृष्टिकोण के साथ असंगत है। उसने कहा कि दूरसंचार ऑपरेटरों को नीलामी में स्पेक्ट्रम लेने के लिए भारी अग्रिम शुल्क चुकाना पड़ता है।