facebookmetapixel
60/40 की निवेश रणनीति बेकार…..’रिच डैड पुअर डैड’ के लेखक रॉबर्ट कियोसाकी ने निवेशकों को फिर चेतायाTCS में 26% तक रिटर्न की उम्मीद! गिरावट में मौका या खतरा?किसानों को सौगात: PM मोदी ने लॉन्च की ₹35,440 करोड़ की दो बड़ी योजनाएं, दालों का उत्पादन बढ़ाने पर जोरECMS योजना से आएगा $500 अरब का बूम! क्या भारत बन जाएगा इलेक्ट्रॉनिक्स हब?DMart Q2 Results: पहली तिमाही में ₹685 करोड़ का जबरदस्त मुनाफा, आय भी 15.4% उछलाCorporate Actions Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में होगा धमाका, स्प्लिट- बोनस-डिविडेंड से बनेंगे बड़े मौके1100% का तगड़ा डिविडेंड! टाटा ग्रुप की कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेBuying Gold on Diwali 2025: घर में सोने की सीमा क्या है? धनतेरस शॉपिंग से पहले यह नियम जानना जरूरी!भारत-अमेरिका रिश्तों में नई गर्मजोशी, जयशंकर ने अमेरिकी राजदूत गोर से नई दिल्ली में की मुलाकातStock Split: अगले हफ्ते शेयरधारकों के लिए बड़ी खुशखबरी, कुल सात कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिट

Elon Musk vs. Mukesh Ambani: भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन पर विवाद, रिलायंस-स्टारलिंक के तर्क में कौन जीतेगा बाजी?

स्टारलिंक और एमेजॉन के प्रोजेक्ट क्यूपर (Amazon’s Project Kuiper) जैसे अन्य ग्लोबल प्लेयर्स प्रशासनिक आवंटन के पक्षधर हैं, जहां स्पेक्ट्रम बिना नीलामी के आवंटित किया जाता है।

Last Updated- October 15, 2024 | 4:46 PM IST
Elon Musk takes on Ambani over satellite spectrum allocation in India Elon Musk vs. Mukesh Ambani: भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन पर विवाद, रिलायंस-स्टारलिंक के तर्क में TRAI का फैसला होगा अहम

Satellite spectrum allocation in India: स्टारलिंक के सीईओ एलन मस्क (Starlink CEO Elon Musk) ने भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक रूप से आवंटित (allocate) करने के बजाय इसकी नीलामी का विकल्प चुनना एक ऐसा फैसला बताया है जो पहले कभी नहीं हुआ। मस्क का यह बयान मुकेश अंबानी की राय से विपरीत है। रिपोर्टों के अनुसार, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी का समर्थन किया है।

यह विवाद इस बात पर केंद्रित है कि स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के माध्यम से किया जाना चाहिए या प्रशासनिक तरीके से। इसके लिए दोनों पक्षों (अंबानी औऱ मस्क) ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय नियमों की अपनी-अपनी राय दी है। मस्क ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी के भारत के संभावित कदम पर अपना विरोध व्यक्त किया, जिसे उन्होंने दो साल पहले हासिल किया था।

मस्क ने इस मुद्दे पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम को नीलाम करना ‘अभूतपूर्व’ होगा। उन्होंने जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union/ITU) की तरफ से इस स्पेक्ट्रम को लंबे समय से शेयर्ड सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के रूप में नामित किया गया है, और इसका आवंटन ‘तर्कसंगत, कुशल और आर्थिक रूप से’ किया जाना चाहिए।

स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में तर्क

स्टारलिंक और एमेजॉन के प्रोजेक्ट क्यूपर (Amazon’s Project Kuiper) जैसे अन्य ग्लोबल प्लेयर्स प्रशासनिक आवंटन के पक्षधर हैं, जहां स्पेक्ट्रम बिना नीलामी के आवंटित किया जाता है। उनका मानना है कि यह तरीका अंतरराष्ट्रीय लेवल पर सबसे अच्छी प्रथाओं के अनुरूप है और भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विसेज के तेजी से विकास का समर्थन करेगा।

स्पेक्ट्रम का नीलामी के पक्ष में तर्क

रिपोर्टों के अनुसार, रिलायंस ने 10 अक्टूबर को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) को एक पत्र भेजा है, जिसमें प्रशासनिक आवंटन के प्रति TRAI की व्याख्या को चुनौती दी गई है और परामर्श प्रक्रिया को फिर से शुरू करने की अपील की गई है।

रिलायंस का यह पत्र पब्लिक नहीं किया गया। रिलायंस ने दावा किया कि TRAI ने उद्योग जगत से पूरी तरह से परामर्श किए बिना प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में भारतीय कानूनों की ‘पूर्व-निर्धारित व्याख्या’ (pre-emptively interpretation) की थी।

रिलायंस का तर्क है कि यह तरीका टेलीकॉम सेक्टर के स्थापित मानदंडों (established norms in the telecom sector) के खिलाफ है और स्पेक्ट्रम आवंटन की समीक्षा होनी चाहिए ताकि सभी के लिए एक समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके। विशेष रूप से तब, जब स्टारलिंक जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां पारंपरिक टेलीकॉम प्रोवाइडर्स के साथ सीधे प्रतिस्पर्धा कर रही हों।

विवाद के परिणाम होंगे अहम

TRAI इस मुद्दे पर सार्वजनिक परामर्श कर रहा है, और सैटेलाइट ब्रॉडबैंड मार्केट की विशाल संभावनाओं को देखते हुए इस विवाद के परिणाम अहम होंगे। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, डेलॉइट (Deloitte) ने इस क्षेत्र में सालाना 36 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है। डेलॉइट को इस सेक्टर के 2030 तक 1.9 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

यह विवाद केवल कॉर्पोरेट के आफसी विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात पर भी सवाल उठाता है कि प्राकृतिक संसाधनों जैसे स्पेक्ट्रम का मैनेजमेंट कैसे किया जाना चाहिए। खासकर तब, जब अंतरराष्ट्रीय कंपनियां घरेलू बाजारों में प्रवेश कर रही हैं। भारत ITU का सदस्य होने के नाते, ऐसे आवंटन का समर्थन करता है जो दक्षता और आर्थिक निष्पक्षता (efficiency and economic fairness) को बढ़ावा देता हो।

First Published - October 15, 2024 | 4:46 PM IST

संबंधित पोस्ट