दूरसंचार कंपनियों के अधिकारियों ने कई 5जी हाई-बैंड या मिलीमीटर वेव (एमएमवेव) स्पेक्ट्रम खोलने पर परामर्श शुरू करने के भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के फैसले पर अपना रुख स्पष्ट किया है। उनका कहना है कि इससे मिड बैंड और खास तौर पर 6 गीगाहर्ट्ज में 5जी स्पेक्ट्रम की कमी की भरपाई नहीं हो पाएगी।
4 अप्रैल को ट्राई ने मोबाइल टेलीफोनी के लिए 37 से 37.5 गीगाहर्ट्ज, 37.5 से 40 गीगाहर्ट्ज और 42.5 से 43.5 गीगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम नीलामी की संभावना पर परामर्श पत्र जारी किया था।
रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि एमएमवेव पर ध्यान देने से मिड-बैंड और विशेष रूप से 6 गीगाहर्ट्ज बैंड में कम से कम 2 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम को मुक्त किए जाने की बातचीत का रुख बदल जाएगा। फिलहाल केवल ये दोनों दूरसंचार सेवा प्रदाता ही भारत में 5जी सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों को लक्ष्य करने के लिहाज से 24 गीगाहर्ट्ज से ऊंची एमएमवेव या स्पेक्ट्रम बैंड मूल्यवान संसाधन होता है। हाई बैंड सेवा प्रदाताओं को असाधारण शीर्ष दरों, कम विलंबता तथा अधिक क्षमता की पेशकश का अवसर प्रदान करता है। अलबत्ता मध्य और निम्न-बैंड वाले सिग्नलों की तरह तक दूर तक जाने में सक्षम नहीं होने के कारण एमएमवेव की क्षमता सीमित रहती है।
आम तौर पर ये सिग्नल एक मील से भी कम दूरी तय करते हैं तथा पेड़ों, इमारतों और यहां तक कि शीशे जैसी वस्तुओं के व्यवधान के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। लेकिन मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम का फायदा यह होता है कि अगर सिग्नल बाधा रहित हो तो उपयोगकर्ता एक जीबीपीएस से लेकर तीन जीबीपीएस या इससे भी अधिक कनेक्शन की रफ्तार हासिल कर सकते हैं।