भारत बढ़ते ई-कचरे की समस्या से निपटने की कोशिशों में जुटा है और वह इसकी जिम्मेदारी कंपनियों को सौंप रहा है। लेकिन बड़ी मात्रा में ई-कचरा पैदा करने वाली वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां निपटान लागत को बहुत ज्यादा बता रही हैं। कोर्ट के कागजात और लॉबिइंग पत्रों से पता चलता है कि डाइकिन, हिताची और सैमसंग जैसी विनिर्माता कंपनियों ने केंद्र सरकार के नए नियमों के प्रति चिंता जाहिर की है। नए नियमों के मुताबिक इन कंपनियों को एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, टीवी और अन्य उपकरणों को रिसाइकल करने के लिए काफी ज्यादा पैसा खर्च करना होगा।
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां पर्यावरण अधिकारियों से फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर रही हैं। चार बड़ी कंपनियों ने केंद्र सरकार पर नई दिल्ली में मुकदमा भी दायर किया है। इनका कहना है कि इन नियमों के कारण अनुपालन संबंधी परेशानियां बढ़ेंगी और कारोबार में अस्थिरता आएगी। पहले कभी ऐसी शिकायत या टकराव देखने को नहीं मिला है, लेकिन केंद्र के साथ ताजा लड़ाई उन नीतियों को लेकर हुई है, जिन्हें कुछ लोग संरक्षणवादी और नियामकीय लक्ष्य से पिंड छुड़ाना बता रहे हैं।
चीन और अमेरिका के बाद भारत ई-कचरा पैदा करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। लेकिन सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल देश के ई-कचरे का सिर्फ 43 प्रतिशत ही रिसाइकल किया गया। इस काम में कम से कम 80 प्रतिशत हिस्सेदारी अनौपचारिक स्क्रैप डीलरों की है, जिनके तरीके पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
कचरा निपटारे के खराब तरीकों से चिंतित केंद्र सरकार ने बीते साल सितंबर में ही इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं के लिए रिसाइकलर्स को न्यूनतम राशि देने का प्रावधान किया था। इसका उद्देश्य उद्योग को व्यवस्थित बनाना और ई-कचरा प्रबंधन में निवेश को प्रोत्साहित करना था। सैमसंग और एलजी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक इंडस्ट्री समूह की ओर से सरकार को लिखे गए सैकड़ों पन्नों के गैर-सार्वजनिक अदालती कागजात एवं पत्रों की रॉयटर्स द्वारा की गई जांच से पता चलता है कि नई दरों पर गतिरोध बना हुआ है। इसके बारे में इस उद्योग का कहना है कि नए नियमों के अनुपालन से विनिर्माताओं की रिसाइक्लिंग लागत लगभग तीन गुना बढ़ गई है। जॉनसन कंट्रोल्स-हिताची, जापान की डाइकिन, भारत की हैवल्स और टाटा ग्रुप की वोल्टास ने नवंबर और मार्च के बीच मोदी सरकार पर मूल्य निर्धारण नियमों को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर किया है।
कंपनियों ने अदालत में दाखिल अपने जवाब में कहा है कि ये उपाय गैर-संवैधानिक हैं और पर्यावरण कानून के तहत सरकार की शक्तियों से कहीं ज्यादा हैं। इसके अलावा इनके अनुपालन से रिसाइक्लिंग लागत कई गुना बढ़ गई है। दूसरी ओर, सरकार ने अदालत से इन मामलों को खारिज करने की मांग की है।
इन नियमों पर निशाना साधते हुए वोल्टास ने ‘कैस्केडिंग इफेक्ट’ यानी भविष्य में उत्पादों की कीमतों पर असर पड़ने की बात कही है।
तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की बिक्री बढ़ रही है। मांग को पूरा करने के लिए डाइकिन, हिताची और सैमसंग जैसी कंपनियों ने यहां अपना उत्पादन बढ़ा दिया है। वैश्विक रुझानों के अनुरूप, भारत का ई-कचरा 2023-24 में 17 लाख टन तक पहुंच गया है, जो छह वर्षों में लगभग दोगुने से ज्यादा हुआ है। इस मामले पर सैमसंग ने कोई टिप्पणी नहीं की है। अन्य कंपनियों और पर्यावरण मंत्रालय ने भी मूल्य निर्धारण नियमों एवं उद्योग जगत की प्रतिक्रिया के बारे में रॉयटर्स के सवालों का जवाब नहीं दिया।
मोदी सरकार ई-कचरे पर अड़ गई है। बीते माह 18 मार्च को एक जवाबी पत्र में पर्यावरण मंत्रालय ने अदालत से मुकदमों को खारिज करने का आग्रह करते हुए कहा कि कीमतों तय करना उचित है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। मंत्रालय ने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से उचित कचरा प्रबंधन की सभी लागतों को ध्यान में रखते हुए कंपनियों और रिसाइकिल करने वाली फर्मों को कीमतें तय करने देने का विकल्प नहीं दिया जा सकता। सरकार के अनुसार देश भर में 322 अधिकृत रिसाइकलर फर्में कार्यरत हैं।
लेकिन देश भर में अनौपचारिक रूप से कचरा निपटान का धंधा खूब फल-फूल रहा है। इसमें लिप्त रिसाइकलर्स धातुओं और घटकों को निकालने के लिए उन्हें खुले में जलाने और एसिड लीचिंग जैसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पर्यावरण के लिए घातक खतरनाक पदार्थ निकल सकते हैं।
गुजरात में 60 वर्षीय स्क्रैप डीलर मुस्तकीम मलिक टेलीविजन, एयर कंडीशनर और राउटर को तोड़ने के लिए हथौड़े का इस्तेमाल करते हैं। टिन शेड के नीचे बेतरतीब ढंग से रखे इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के ढेर के बीच बैठे मलिक ने बताया कि वह इन उपकरणों से निकाले गए प्लास्टिक, सर्किट बोर्ड और तांबे को बेचकर हर महीने 50,000 रुपये कमा लेते हैं। बातचीत के दौरान वह औपचारिक ई-कचरा प्रबंधन क्षेत्र में काम करने को तैयार नहीं दिखे। उन्होंने कहा, ‘उस बिजनेस (औपचारिक क्षेत्र) में काम करने पर खर्च बहुत ज्यादा आता है। यह केवल बड़े लोगों के लिए है।’
नए नियमों के तहत कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान को रिसाइकल करने के लिए 22 रुपये प्रति किलो और स्मार्टफोन के लिए 34 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम भुगतान करना अनिवार्य किया गया है। इसका एयर कंडीशनर जैसे भारी उपकरण बनाने वालों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि उनकी प्रति यूनिट रिसाइक्लिंग लागत स्मार्टफोन जैसे हल्के गैजेट बनाने वालों की तुलना में ज्यादा बढ़ गई है। रिसर्च फर्म रेडसियर ने फरवरी में कहा था कि अमेरिका की तुलना में भारत की रिसाइक्लिंग दरें अभी भी कम हैं। अमेरिका में ये पांच गुना और चीन में कम से कम 1.5 गुना ज्यादा हैं।
भारत के सबसे बड़े रिसाइकलर्स में से एक एटरो के सीईओ नितिन गुप्ता ने कहा कि सरकारी दरों के तहत निर्माताओं को वॉशिंग मशीन को रिसाइकल करने के लिए लगभग 10 डॉलर का भुगतान करना होगा। एलजी और डाइकिन को सेवाएं देने वाली एटरो ने कहा, ‘यदि रिसाइक्लिंग के लिए वैज्ञानिक क्षमता विकसित करनी है, तो इसके लिए अतिरिक्त मुनाफा होना चाहिए। यह हमारे लिए बहुत अच्छा होगा।’