देश में एक करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले लक्जरी और अल्ट्रा-लक्जरी मकानों की बढ़ती मांग को पूरा करने पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। दूसरी ओर, 50 लाख रुपये तक कीमत वाले किफायती मकानों में लोगों की रुचि पर भी खूब चर्चा है, लेकिन इन दोनों श्रेणियों को जोड़ने वाली मध्य श्रेणी पर बहुत अधिक बात नहीं हो रही।
रियल्टी उद्योग के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि पिछले तीन वर्षों से आमतौर पर 50 लाख से 1 करोड़ रुपये की श्रेणी में कुल मकानों की मांग 33 प्रतिशत पर बनी हुई है। वास्तव में पिछले साल जुलाई तक इस श्रेणी में सबसे अधिक मकान बिके थे।
नाइट फ्रैंक की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य श्रेणी में मकानों की मांग 2024 के शुरुआती छह महीनों में 32 प्रतिशत के स्तर पर टिकी हुई है। दूसरी ओर इन मकानों की आपूर्ति लगातार गिर रही है।
एक अन्य परामर्श फर्म जेएलएल इंडिया का कहना है कि इस सेगमेंट में परियोजनाओं की शुरुआत का आंकड़ा जनवरी से जुलाई तक 14 प्रतिशत के स्तर पर बना हुआ है, जो पिछले साल की इसी अवधि से बहुत कम है।
ये आंकड़े सही हो सकते हैं, लेकिन शक उस समय बढ़ जाता है जब 3 से 5 करोड़ रुपये के बीच कीमत वाले मकानों की आपूर्ति 169 प्रतिशत तथा 5 करोड़ रुपये से ऊपर के सेगमेंट में 116 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होती है।
सवाल उठता है कि इन हालात में देश में मध्य श्रेणी वाले मकानों का भविष्य क्या है? विशेषज्ञ मध्य श्रेणी में आपूर्ति घटने के लिए जमीन की बढ़ती कीमतों, लक्जरी मकानों में ज्यादा रुचि तथा कीमती संपत्तियों में अधिक लाभ मार्जिन को जिम्मेदार मानते हैं। उनका अनुमान है कि यही ट्रेंड आने वाली तिमाही में भी बना रह सकता है।
मकानों को लेकर लोगों बदलते रुझान के बारे में एनरॉक समूह के अध्यक्ष अनुज पुरी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों में जमीन की बेतहाशा बढ़ी कीमतें और निर्माण लागत बढ़ने जैसे कारकों के कारण लोगों की रुचि में परिवर्तन आया है।
सीबीआरई के अध्यक्ष एवं सीईओ (इंडिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका) अंशुमान मैगजीन ने कहा कि जमीन की कीमतों और लागत में बढ़ोतरी ने डेवलपरों पर दबाव बढ़ा दिया है। अब वे मध्य श्रेणी के मकानों की परियोजनाओं को शुरू करने के बारे में कई बार सोच रहे हैं। डेवलपरों को उच्च श्रेणी के मकानों में अधिक फायदा नजर आ रहा है। इस प्रकार कीमती मकानों में लोगों की बढ़ती रुचि से डेवलपरों का लाभ मार्जिन भी बढ़ रहा है।
नाइट फ्रैंक के रिसर्च हेड विवेक राठी ने कहा, ‘पिछले एक-दो साल में प्रीमियम सेगमेंट में मकानों की मांग लगातार बढ़ रही है।’ उद्योग के आंकड़े भी इस बात के गवाह हैं कि कुल बिक्री में महंगे मकानों की हिस्सेदारी इस साल के शुरुआती छह महीनों में 41 प्रतिशत तक बढ़ी है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 30 प्रतिशत पर अटकी थी। वर्ष 2022 में तो यह केवल 25 प्रतिशत पर ही थी।
राठी कहते हैं, ‘बदले माहौल में यदि किसी डेवलपर्स के पास पांच परियोजनाएं हैं तो वह सबसे पहले प्रीमियम श्रेणी की परियोजना को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।’
डेवलपरों का यह रुझान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र खासकर गुरुग्राम में अधिक देखने को मिल रहा है। निश्चित रूप से इसका असर आपूर्ति पर देखा जा सकता है। सीबीआरई के आकड़े बताते हैं कि पिछले साल जुलाई से दिसंबर के बीच गुरुग्राम में मध्य श्रेणी में एक भी परियोजना शुरू नहीं की गई थी। खास यह कि 2021 में इस श्रेणी में जहां 4,392 मकानों की आपूर्ति हुई थी, पिछले साल यह आंकड़ा गिरकर 952 मकानों पर आ गया।
राठी कहते हैं कि इसका बड़ा कारण है कि दिल्ली और आसपास के शहरों में अल्ट्रा लक्जरी मकानों की मांग मुंबई और बेंगलूरु से भी बहुत अधिक है। कई शीर्ष डेवलपरों के अल्ट्रा लक्जरी मकान परियोजना लांच होने के कुछ दिन के भीतर ही बिक गए।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक डेवलपर ने बताया कि हाल के दिनों में उन्होंने अपना पूरा ध्यान प्रीमियम सेगमेंट पर लगा दिया है, क्योंकि इसमें मिड सेगमेंट के मुकाबले मार्जिन अधिक है।
आगामी तिमाही में भी मध्य श्रेणी के मकानों की आपूर्ति सुस्त रह सकती है, क्योंकि डेवलपरों और खरीदारों की रुचि लक्जरी सेगमेंट में है। पुरी कहते हैं, ‘हम लक्जरी एवं प्रीमियम सेगमेंट में कई और परियोजनाएं शुरू होती देख सकते हैं। हम देख रहे हैं कि कई डेवलपरों ने बहुत महंगे दामों पर जमीन खरीदी है। इसलिए वे किफायती परियोजना शुरू नहीं कर सकते, क्योंकि इसमें उन्हें कम लाभ है। इनकी मांग भी स्थिर बनी हुई है।’ हालांकि उन्होंने कहा, लेकिन इस श्रेणी के मकानों की कीमतों पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है, क्योंकि इस सेगमेंट में 1,75,000 यूनिट बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।