भारत की सबसे बड़ी पूंजीगत वस्तु कंपनी लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि इन दिनों उनके कई ग्राहकों के मेल अक्सर मजदूरों से जुड़े होते हैं। क्षेत्र में एलऐंडटी जैसी कंपनियों के अधिकारी परियोजनाओं के लिए कुशल कामगार मिलने में इसी तरह की चुनौतियों पर अफसोस जताते हैं। उनका कहना है कि इस कारण बुनियादी ढांचे का खर्च बढ़ गया है और श्रम की बदलती आकांक्षाओं के साथ मांग-आपूर्ति के अंतर में भी वृद्धि हो गई है।
एलऐंडटी के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक एसएन सुब्रमण्यन का कहना है कि फिलहाल कंपनी को करीब 35 हजार कुशल श्रमिकों की जरूरत है और इसे ढूंढ़ने में कठिनाई हो रही है।
वर्तमान में एलऐंडटी 4.12 लाख करोड़ रुपये से अधिक की ऑर्डरबुक पर काम कर रही है, जो इसके लिए अब तक का उच्चतम है। एलएंडटी वर्तमान में 4.12 ट्रिलियन रुपये से अधिक की ऑर्डरबुक निष्पादित कर यह देश में बुनियादी ढांचे और निर्माण गतिविधि का भी संकेत है। पिछले वित्त वर्ष में भारत की सीमेंट और स्टील की खपत भी 8 फीसदी से अधिक बढ़ी है, जो भवन निर्माण गतिविधि का एक और संकेत है। पूंजीगत वस्तु बनाने वाली कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि कुशल श्रम की आपूर्ति में वृद्धि की गति समान नहीं रही है।
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केईसी इंटरनैशनल के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी (सीएचआरओ) मिलिंद आप्टे ने कहा, ‘निर्माण गतिविधियां बढ़ने से श्रमिकों के लिए अवसर भी बढ़ हैं। वहीं, प्रवासी मजदूरों की दूसरी पीढ़ी आगे बढ़ने को लेकर इच्छुक नहीं दिखती है। इनके माता-पिता भी नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे इस व्यापार का हिस्सा बनें। आपूर्ति धीरे-धीरे कम हो रही है।’ अधिकारी ने कहा कि केईसी इसलिए अपने अनुबंधित कामगारों को मानक और अनिवार्य के अलावा बेहतर उपचार और सुविधाएं प्रदान करने को लेकर अधिक सतर्क है।
एलऐंडटी के सुब्रमण्यन ने भी इस बात पर अपनी सहमति जताई है कि नई पीढ़ी आकांक्षाओं में बदलाव आ रहा है, जबकि बुनियादी ढांचे के विकास की मांग बढ़ी है। उन्होंने कहा, ‘ यह सामान्य आर्थिक उछाल के कारण है। इसके अलावा पश्चिन एशिया भी फलफूल रहा है, इसलिए कुशल श्रमिक अधिक मजदूरी मिलने के कारण वहां चले गए हैं। यह आपूर्ति-मांग का अंतर अधिक है।’
एलऐंडटी के अधिकारी सक्रिय रूप से विभिन्न इंजीनियरिंग कौशल के लिए अपने केंद्रों पर प्रशिक्षण देने के लए झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों से श्रमिकों की तलाश कर रहे हैं। सुब्रह्मण्यन ने कहा कि हम रहने-खाने के साथ-साथ वजीफा की पेशकश तक कर रहे हैं।
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पूंजीगत वस्तु क्षेत्र के एक अन्य बड़ी कंपनी थर्मैक्स ग्लोबल के शीर्ष अधिकारियों ने भी श्रम आकांक्षाओं में बदलाव की ओर इशारा किया। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक आशिष भंडारी ने कहा, ‘यह न केवल हमारे लिए चिंता की बात है बल्कि यह भी चिंता का विषय है कि हम उद्योग की अपनी जैसी कंपनियों से क्या सुन रहे हैं।’
सिर्फ औद्योगिक कामगार ही नहीं, थर्मैक्स जैसी कंपनियों के लिए भी पेरोल स्तर के कर्मचारियों का कंपनी छोड़कर जाना भी एक अतिरिक्त संकट है। भंडारी ने 23 जून के वित्तीय नतीजों के बाद विश्लेषकों को बताया था कि कंपनी ने इस साल हालिया वर्षों में सर्वाधिक मुआवजा दिया है। उन्होंने कहा कि कंपनी में निचले और मध्यम स्तर पर नौकरी छोड़ने वालों की संख्या अधिक देखी गई है। केईसी इंटरनैशनल के आप्टे ने अनुमान लगाया कि महामारी के बाद नौकरी छोड़ने की दर 15-16 फीसदी से अधिक है।