इस्पात उद्योग यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) के हिसाब से तैयारी में जुटा हुआ है। इसके मद्देनजर जेएसडब्ल्यू स्टील कम-कार्बन वाले भविष्य की दिशा में बढ़ रही है। साथ ही कंपनी घरेलू बाजार को भी लगातार प्राथमिकता दे रही है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी जयंत आचार्य ने कहा, ‘हमारा मुख्य जोर घरेलू बाजार पर होगा क्योंकि हम आने वाले वर्षों में भारत में वाकई दमदार वृद्धि देख रहे हैं।’ कंपनी कम-कार्बन वाले निर्यात के लिए जरूरी कदम उठा रही है, क्योंकि इस्पात निर्यात का भारत का मुख्य बाजार यूरोप सीबीएएम व्यवस्था अपनाने जा रहा है।
महाराष्ट्र के सालाव में जेएसडब्ल्यू स्टील 40 लाख टन का ग्रीन स्टील (पर्यावरण के अनुकूल) संयंत्र लगा रही है, जो प्राकृतिक गैस और अक्षय ऊर्जा पर आधारित डीआरआई (डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन) पर आधारित होगा। इसे अलग-अलग चरणों में बनाया जा सकता है।
आचार्य ने कहा, ‘अब से लेकर वित्त वर्ष 31 के आखिर तक हम सालाव परियोजना पूरी करेंगे, जो दो चरणों में 40 लाख टन तक की होगी। 20 लाख टन का पहला चरण हमारे पांच करोड़ टन क्षमता के निर्धारित लक्ष्य का हिस्सा है।’
अलबत्ता उन्होंने कहा कि कंपनी अपनी क्षमता विस्तार योजनाओं और उनके समय को अंतिम रूप देने से पहले सीबीएएम की रूपरेखा और टैरिफ संरचनाओं पर और स्पष्टता का इंतजार कर रही है। दिशा-निर्देश नवंबर में आने की उम्मीद है।
सीबीएएम को 1 जनवरी से लागू किया जाना है। इसका उद्देश्य ईयू के उत्पादकों, जो अपने कार्बन उत्सर्जन के लिए भुगतान करते हैं तथा विदेशी निर्यातकों, जो ऐसा नहीं करते हैं, के बीच बराबरी का माहौल बनाना है। इसके लिए ईयू में आने वाले आयात पर ‘कार्बन लागत’ की व्यवस्था की जा रही है। आचार्य ने कहा कि सालाव की यह क्षमता कम कार्बन उत्सर्जन वाले इस्पात उत्पादों के उत्पादन के मामले में जेएसडब्ल्यू स्टील की इकाई के रूप में काम करेगी। उन्होंने ‘यह क्षमता मध्य अवधि में ऐसे उत्पादों के लिए हमारी निर्यात जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी होगी।’