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सवाल: जवाब-वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य श्रृंखला में होगी 20 फीसदी हिस्सेदारी: केंद्रीय राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर

राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार का दृष्टिकोण 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण तक पहुंचना और 60 से 75 अरब डॉलर के मूल्य वर्धन लक्ष्य को हासिल करना है।

Last Updated- February 04, 2024 | 10:24 PM IST
rajeev chandrasekhar

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सुरजीत दास गुप्ता से बातचीत में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं डीपटेक के लिए देश के दृष्टिकोण, विनिर्माता से निर्यातक के रूप में बदलाव और नीतिगत चुनौतियों से निपटने के तरीके आदि विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:

आपने वित्त वर्ष 2026 तक 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का लक्ष्य रखा है। मोबाइल उपकरण पीएलआई ने निर्यात एवं उत्पादन मूल्य के लक्ष्यों को पार कर लिया है। बजट में इसके लिए 6,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। ऐसे में अंतिम लक्ष्य क्या है?

मैं समझता हूं कि अब हमने इलेक्ट्रॉनिक्स वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GCV) में अपनी स्थिति मजबूत कर लिया है। यह एक महत्त्वपूर्ण बयान है क्योंकि 2014 में वहां हमारी कोई उपस्थिति नहीं थी। उस समय किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी- नोकिया की विफलता और चीन से निर्बाध आयात की अनुमति दिए जाने के बाद- कि हम भी अपनी जगह बना पाएंगे। करीब 1.5 लाख करोड़ डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स जीवीसी में चीन की हिस्सेदारी 70 से 75 फीसदी थी।

हमारे पास कुछ भी नहीं था, लेकिन 2024 में हम 300 अरब डॉलर के लक्ष्य के दायरे में हैं। इसके अलावा हम वित्त वर्ष 2026 तक इलेक्ट्रॉनिक्स जीवीसी में 15 से 20 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य रख रहे हैं।

मूल्य वर्धन एक विवादित मुद्दा है। आज ऐपल की 12 से 15 फीसदी और अन्य की करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है। अगर पीएलआई योजना के तहत निर्धारित 40 फीसदी के लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं तो अगले दो साल कितने महत्त्वपूर्ण होंगे?

इलेक्ट्रॉनिक्स में मूल्य वर्धन कभी भी प्रति वस्तु के आधार पर निर्धारित नहीं किया जाएगा। यह सकल मूल्य वर्धन के तौर पर संचालित होगा क्योंकि यह उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की ही तरह मात्र का खेल है। उदाहरण के लिए, चीन 1.2 लाख करोड़ डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन एवं निर्यात करता है। मगर वह 60 से 70 करोड़ डॉलर के पुर्जों का ही आयात करता है।

हमारा दृष्टिकोण 300 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण तक पहुंचना और 60 से 75 अरब डॉलर के मूल्य वर्धन लक्ष्य को हासिल करना है। उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में हमारा वॉल्यूम काफी अधिक है, लेकिन प्रति वस्तु मूल्य वर्धन कम है। जबकि सर्वर, राउटर, टेलीकॉम आदि क्षेत्रों में मूल्य वर्धन अधिक है। ऐसे में हमें औसत देखना होगा।

मोबाइल उपकरणों के लिए आपका लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 तक 130 अरब डॉलर के मूल्य तक पहुंचना है। इस श्रेणी में सकल मूल्य वर्धन के लिए आप क्या उम्मीद करते हैं?

मुझे पूरा भरोसा है कि यह 15 से 20 अरब डॉलर से कम नहीं होगा।

क्या आपको लगता है कि मूल्य वर्धन को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है?

ऐसे तमाम सकल मूल्य वर्धन हैं जिन्हें शामिल नहीं किया गया है जैसे पूरी लॉजिस्टिक मूल्य श्रृंखला तैयार हो रही है, नए रोजगार से सृजित मूल्य वर्धन खपत को बढ़ा देगा, इन कारखानों के आसपास उद्योग का विकास होगा, मरम्मत एवं रखरखाव से मूल्य वर्धन, आपूर्ति श्रृंखला से सृजित मूल्य आदि। यह डिजिटल मूल्य वर्धन की गणना करने का एक तरीका है।

माइक्रॉन के बाद सेमीकंडक्टर पर क्या प्रगति है? क्या वित्त वर्ष 2025 के लिए निर्धारित 6,000 करोड़ रुपये पर्याप्त होंगे?

फिलहाल हम पहले भरोसेमंद फैब प्रस्ताव का मूल्यांकन कर रहे हैं। ऐसे एक अन्य प्रस्ताव पाइपलाइन में है। चार कंपाउंड सेमीकंडक्टर फैब प्रस्तावों और तीन पैकेजिंग प्रस्तावों का मूल्यांकन किया जा रहा है।

माइक्रॉन संयंत्र को मंजूरी मिलने के बाद इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अगर आप पूछते हैं कि क्या 6,000 करोड़ रुपये पर्याप्त हैं? तो प्रथम दृष्टया, शायद नहीं, लेकिन हम कुल 10 अरब डॉलर के समग्र ढांचे के तहत मांग कर सकते हैं।

भारत को मोबाइल फोन जैसी वस्तुओं के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र बनाने को लेकर वैश्विक कंपनियां चिंतित रही हैं क्योंकि चीन एवं वियतनाम के मुकाबले पुर्जों पर इनपुट शुल्क दरें अधिक हैं। बजट से एक दिन पहले वित्त मंत्री द्वारा इनपुट लागत पर कर घटाने की घोषणा से कितनी मदद मिलेगी?

आयात के बदले उत्पादन को बढ़ावा देने और मूल्य वर्धन के लिए एक चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शुरू किया गया था। अब हम कह रहे हैं कि भारत के पास निर्यात आधारित विनिर्माण केंद्र बनने का अवसर है। जहां तक शुल्क दर का सवाल है तो मोबाइल फोन के पुर्जों पर शुल्क दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए वित्त मंत्री ने यह पहल की है। इससे यह संकेत मिलता है कि हम वियतनाम या चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले एक निर्यात आधारित विनिर्माण केंद्र बनने के लिए तैयार हैं।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में कई कंपनियां कराधान में स्थिरता का अभाव और ट्रांसफर प्राइसिंग पर दंडात्मक कार्रवाई की आशंका से भारत नहीं आना चाहती हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?

यही मामला माइक्रॉन तक पहुंचा। पैकेजिंग में लाखों वेफर्स आते हैं और करोड़ों उपकरण बाहर जाते हैं। ऐसे में आयात और निर्यात निर्बाध होना महत्त्वपूर्ण है। उसका कोई खास लागत न हो जो कारोबार को प्रभावित करे। यह एक ऐसी चिंता थी जिसे माइक्रॉन के पहले निवेश तक बार-बार उठाया गया था। मगर हमने उनके साथ कई वर्षों के लिए एक एपीआई पर हस्ताक्षर किए हैं। वह सब किया जा चुका है। सरकार काफी तेजी से आगे बढ़ी है और इसलिए हमें सेमीकंडक्टर के लिए इतने सारे प्रस्ताव मिल रहे हैं।

मोबाइल फोन के लिए आपने पीएलआई के जरिये घरेलू वैश्विक चैंपियन बनाने की बात की थी मगर वैसा क्यों नहीं हो सका?

सरकार का उद्देश्य यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स के हरेक क्षेत्र में हमें वैश्विक और भारतीय दोनों दिग्गजों को शामिल करना है। हमारे पास भारतीय दिग्गज थे, लेकिन भारतीय नियमों को नजरअंदाज करने वाली चीनी कंपनियों के निर्बाध प्रवेश का मतलब था कि उन्होंने सभी भारतीय कंपनियों को नष्ट कर दिया और उन्हें बाजार से बाहर कर दिया। मगर अब हम धीरे-धीरे उन्हें नए सिरे से तैयार कर रहे हैं। हम उन्हें सहारा दे रहे हैं और मुझे लगता है कि अगले 2 से 4 साल में आप कई भारतीय ब्रांडों की वापसी देख सकेंगे।

First Published - February 4, 2024 | 10:24 PM IST

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