मोबाइल डिवाइस व्यवसाय के लिए हरि ओम राय की कोशिश ऐसे वक्त शुरू हुई थी, जब एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स ने उन्हें मोबाइल फोन बेचने के लिए पूरे भारत में उपस्थिति वाले वितरण व्यवसाय की पेशकश की थी। यह कोशिश सफल नहीं हो सकी थी, लेकिन चीन की बीबीके के साथ कुछ समय तक फिक्स्ड-लाइन वायरलेस फोन बेचने के बाद, राय ने बड़ा कदम उठाया। वर्ष 2009 में उन्होंने कुछ भागीदारियां कीं और मोबाइल निर्माण के लिए लावा इंटरनैशनल की सह-स्थापना की।
राय यह स्वीकार करते हैं कि लावा जैसे भारतीय ब्रांडों ने बड़ा सपना देखा था। मोबाइल पहुंच हर महीने तेजी से बढ़ी, और तब 2जी फीचर फोन के लिए अच्छी मांग थी। उसके बाद स्मार्टफोन आए, और लावा देश में शीर्ष-5 ब्रांडों में शुमार हो गई और उसने दुनिया की जानी-मानी सैमसंग के साथ प्रतिस्पर्धा में जुट गई।
बड़ा बदलाव 2018 में तब आया जब श्याओमी, रियलमी, वीवो और ओप्पो जैसे चीनी ब्रांडों ने भारत में पहचान बनाई और विभिन्न विकल्पों में आकर्षक कीमत वाले स्मार्टफोन पेश किए। बहुत जल्द इन कंपनियों ने भारतीय कंपनियों से बाजार भागीदारी हासिल करने की कोशिश तेज कर दी।
चीनी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धी टकराव की वजह से लावा ने प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए फीचर फोन बाजार पर ध्यान केंद्रित किया और अपनी वित्तीय लागत घटाने पर भी जोर दिया। राय यह सुनिश्चित करने में सक्षम थे कि उनकी कंपनी 2जी फीचर फोन बाजार की आकर्षक 23 प्रतिशत भागीदारी बरकरार रखने में सफल रहे और उनकी कंपनी शीर्ष-3 में बनी रही, क्योंकि सिर्फ सैमसंग और इंटेल ही उन्हें प्रतिस्पर्धी टक्कर दे पा रही थीं।
लेकिन वास्तविकता यह थी कि जहां फीचर फोन का भारत में कुल मोबाइल फोन बिक्री में 44 प्रतिशत योगदान बरकरारथा, वहीं कमाई के अवसर स्मार्टफोन खंड में थे। वैल्यू के संदर्भ में, 2जी फोन का हिस्सा बाजार में महज 10 प्रतिशत था। राय कहते हैं, ‘चीनी कंपनियों के दबदबे के बाद हमारे लिए यह स्पष्ट हो गया कि मुकाबला सिर्फ कंपनियों के बीच नहीं था। इसके अलावा, एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण के लिए यह देशों और उनकी नीतियों के बीच भी था।’
राय की इच्छाएं पिछले साल तब पूरी होती दिखीं, जब सरकार ने भारत को वैश्विक हब बनाने के इरादे के साथ मोबाइल उपकरणों के लिए देश की पहली उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) की शुरुआत की। यह प्रोत्साहन न सिर्फ एपल इंक और सैमसंग जैसी वैश्विक कंपनियों के लिए पेश किया गया था, बल्कि इसका मकसद देसी भारतीय दिग्गजों को भी मदद मुहैया कराना और उन्हें पांच साल के लिए 4 से 6 प्रतिशत रियायत देना था।
लावा ने इस पर बड़ा दांव लगाया। इस योजना के तहत अपने आवेदन में कंपनी ने पांचवें साल में 11,800 करोड़ रुपये मूल्य की मोबाइल फोन बिक्री की प्रतिबद्घता जताई और 800 करोड़ रुपये का ताजा निवेश किया। कंपनी ने वैल्यू के संदर्भ में अपने फोन का 60 प्रतिशत हिस्सा निर्यात बाजार में बेचने की भी प्रतिबद्घता जताई है। राय कहते हैं, ‘पीएलआई योजना के तहत लक्षित सेगमेंट के 74 प्रतिशत फोन भारत से बाहर उपलब्ध हैं, इसलिए हमें वैश्विक स्तर पर जाना होगा।’
लावा बदलते भू-राजनीतिक हालात (अमेरिका-चीन व्यापारिक टकराव और भारत-चीन सीमा विवाद) का भी लाभ उठा रही है। कई वैश्विक कंपनियां अपनी पैठ बढ़ाना चाहती हैं और अपने निर्माण की आउटसोर्सिंग के लिए चीन के अलावा अन्य देशों पर ध्यान दे रही हैं। भारत सरकार ने एफडीआई नीति के तहत चीनी मोबाइल कंपनियों से ताजा निवेश की राह सख्त बना दी है। लावा का मानना है कि उपभोक्ताओं में ‘मेड इन चाइना’ उत्पादों को लेकर नकारात्मक धारणा उसके लिए कारगर साबित होगी।
हालांकि राय की निर्माण रणनीति डिक्सन जैसी प्रतिस्पर्धियों से काफी अलग है और वह पूरी दुनिया में लावा ब्रांड के फोन बेचना चाहती है।
लावा चीन में अपना परिचालन बंद करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुकी है। इस परिचालन का इस्तेमाल वह अपने फोन निर्यात के लिए आधार के तौर पर कर रही थी। यह निर्णय पीएलआई योजना को ध्यान में रखते हुए भी लिया गया था। इस कदम के तहत कंपनी की 650 लोगों की डिजाइन टीम अब भारत स्थानांतरित होगी। राय का कहना है कि कंपनी पूरी तरह से भारत में डिजाइन किए गए स्मार्टफोन पर काम कर रही है और वह खास फीचर्स के साथ कुछ ही दिनों में यहा स्मार्टफोन पेश करेगी। कंपनी ने देश में 2000 कर्मियों की मजबूत डिजाइन टीम खड़ी करने की योजना बनाई है।