सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भूषण पावर ऐंड स्टील के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को अवैध घोषित करने और कंपनी के परिसमापन का आदेश दिया है। इससे ऋणदाताओं को बड़ा झटका लगा है। बैंकरों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि बैंकों को पहले वसूल की गई राशि के लिए प्रावधान करना होगा क्योंकि अब यह रकम वापस ले ली जाएगी।
आईबीसी के वकीलों के अनुसार वित्तीय ऋणदाता आमतौर पर कॉरपोरेट देनदार को समाधान पेशेवर को हलफनामा देते हैं। इसके तहत यदि समाधान योजना में बाद में कोई भी गड़बड़ आती है तो समाधान प्रक्रिया से की गई किसी भी वसूली को वापस करने पर सहमति व्यक्त की जाती है।
भूषण पावर ऐंड स्टील से समाधान योजना के तहत धन वसूलने वाले एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यदि यह अंतिम आदेश है तो बैंक को धन वापसी किए जाने के कारण इस तिमाही से ही इसके लिए नया प्रावधान शुरू करना होगा। इसका निश्चित रूप से बैंक के लाभ और हानि बही खाते पर असर पड़ेगा। हम इस बारे में न्यायालय से आदेश की अधिक स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि इस चरण में प्रभाव का आकलन करना मुश्किल है। जेएसडब्ल्यू ने मार्च 2021 में भूषण पावर और स्टील का पूरा अधिग्रहण कर लिया था और यह देश की सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई थी।
सज्जन जिंदल के नेतृत्व वाली कंपनी जेएसडब्ल्यू ने भूषण पावर व स्टील के वित्तीय लेनदारों को 19,350 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। भूषण पावर ऐंड स्टील का ऋणदाताओं पर 47,204.51 करोड़ रुपये बकाया था। भूषण पावर व स्टील के प्रमुख ऋणदाताओं में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी), बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी), इंडियन बैंक, केनरा बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक आदि थे। ये भारतीय रिजर्व बैंक ने दिवाला समाधान संहिता (आईबीसी), 2017 के तहत कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में ‘खराब दर्जन’ कंपनियों में शामिल थीं। इस सूची में अन्य कंपनियों में इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स, जेपी इन्फ्रा, इरा इन्फ्रा, एमटेक ऑटो, एबीजी शिपयार्ड, ज्योति स्ट्रक्चर्स, मोनेट इस्पात, लैंको इंफ्राटेक, आलोक इंडस्ट्रीज और एस्सार स्टील शामिल हैं।
सरकारी बैंक के वरिष्ठ बैंकर ने बताया कि जेएसडब्ल्यू स्टील के पास आदेश के खिलाफ अपील करने का विकल्प है। यदि जेएसडब्ल्यू ऐसा करता है तो ऋणदाता पक्ष बन सकते हैं। इस स्तर पर ऋणदाता विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके बाद वे इसके प्रभावों का आकलन करेंगे और आगे की कार्रवाई पर निर्णय लेंगे।
अन्य बैंकर ने बताया, ‘आईबीसी प्रक्रिया का उद्देश्य समाधान है। यह आपरेटिंग कंपनी है। समाधान विकल्प पूरा होने के बाद ही परिसमापन का विकल्प हो सकता है। इसलिए जुर्माने के माध्यम से सजा दी जा सकती है लेकिन कंपनी को चलने दिया जा सकता था।’