चिकित्सा उपकरण क्षेत्र की लॉबी ने फार्मास्युटिकल विभाग को पत्र लिखकर यूरोपीय संघ-एफटीए के तहत शून्य शुल्क पर चिकित्सा उपकरणों के आयात का विरोध किया है। इस संबंध में व्यापार वार्ता चल रही है। वर्तमान में भारत 70 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। जर्मनी और नीदरलैंड उन शीर्ष पांच देशों में शामिल हैं जहां से हम आयात करते हैं।
स्थानीय उद्योग के विरोध की मुख्य वजह यह है कि यूरोपीय संघ की नियामकीय प्रणाली संगठनों को खुद को कानूनी तौर पर निर्माता के रूप में लेबल लगाने की अनुमति प्रदान करती है, भले ही वे खुद उत्पाद न बना रहे हों। इस कारण यूरोपीय संघ (ईयू) में ‘छद्म विनिर्माण’ को बढ़ावा मिला है क्योंकि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में (अमेरिका और भारत के विपरीत) चिकित्सा उपकरणों की लेबलिंग में मूल देश का नाम दर्ज नहीं किया जाता है ।
21 सितंबर को फार्मा सचिव अरुणीश चावला और वाणिज्य विभाग (चिकित्सा उपकरण) के संयुक्त सचिव नितिन यादव तथा अन्य को लिखे पत्र में एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री (एआईएमईडी) के फोरम कॉर्डिनेटर राजीव नाथ ने कहा कि वे यूरोपीय संघ-भारत एफटीए के तहत बिना शुल्क आयात करने के प्रस्ताव का ‘कड़ा विरोध’ करते हैं, जिसके लिए बातचीत चल रही है। एआईएमईडी देसी चिकित्सा उपकरण विनिर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रमुख संगठन है।
जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों से भारत के चिकित्सा उपकरणों के आयात में पिछले कुछ वर्षों के दौरान इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 20 में जर्मनी से 4,742 करोड़ रुपये का आयात किया गया था जो वित्त वर्ष 24 में बढ़कर 7,490 करोड़ रुपये हो गया। नीदरलैंड से किया जाने वाला आयात वित्त वर्ष 20 के 2,329 करोड़ रुपये के मुकाबले वित्त वर्ष 24 में बढ़कर 3,815 करोड़ रुपये हो गया।
नाथ ने दावा किया कि यूरोपीय संघ में चिकित्सा उपकरणों के लिए नियामकीय प्रणाली में संगठनों को खुद को ‘कानूनी विनिर्माता’ के रूप में लेबल करने की अनुमति प्रदान करने की व्यवस्था है, भले ही वे खुद उत्पाद न बना रहे हों।
उन्होंने पत्र में उल्लेख किया, ‘यूरोपीय संघ के नियामकों को बाजार के अधिकृत धारक को रोगी की सुरक्षा के नजरिये से जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने की अनुमति प्रदान करने के लिए ऐसा किया गया था। लेकिन इस सुविधा का दुरुपयोग किया गया है और इससे यूरोपीय संघ में छद्म विनिर्माण को बढ़ावा मिला है। यूरोप और ब्रिटेन में चिकित्सा उपकरणों की लेबलिंग पर मूल देश पर जोर नहीं दिया जाता है जबकि अमेरिका और भारत के मामले में बिक्री वाली इकाई पर मूल देश का लेबल लगाने की मांग की जाती है।’
एआईएमईडी का कहना है कि लिहाजा कानूनी विनिर्माताओं को एफटीए से बाहर रखा जाना चाहिए।