कभी आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ान भरने वाली लो-कॉस्ट एयरलाइन गो फर्स्ट अब इतिहास का हिस्सा बन गई है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने सोमवार को एयरलाइन को बंद करने का आदेश दे दिया। यह फैसला कंपनी के कर्जदाताओं की समिति (CoC) के अनुरोध पर लिया गया, जो इसे दोबारा खड़ा करने में नाकाम रही।
क्यों लिया गया बंद करने का फैसला?
CoC ने कहा कि गो फर्स्ट को बचाने की सारी कोशिशें बेकार साबित हुईं। जिन योजनाओं पर विचार किया गया, वे कानून के मुताबिक नहीं थीं और कंपनी की खराब वित्तीय स्थिति में सुधार लाने में असफल रहीं। ऐसे में कंपनी को लिक्विडेशन (समाप्ति) के लिए भेजना ही एकमात्र रास्ता बचा।
लिक्विडेशन की प्रक्रिया पर करीब ₹21.6 करोड़ खर्च होंगे। यह रकम कर्जदाताओं के बीच उनके वोटिंग शेयर के हिसाब से बांटी जाएगी।
प्रैट एंड व्हिटनी पर केस के लिए फंडिंग
गो फर्स्ट ने अमेरिकी कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी (PW) पर खराब इंजन की वजह से $1 बिलियन का दावा ठोका है। इस केस को लड़ने के लिए CoC ने अमेरिकी फंडिंग कंपनी बर्फर्ड कैपिटल से मदद ली है। बर्फर्ड पहले चरण में $20 मिलियन की फंडिंग देगा, ताकि सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) में चल रही लड़ाई जारी रखी जा सके।
गो फर्स्ट पर कुल ₹6,200 करोड़ का कर्ज है। इसमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (₹1,934 करोड़), बैंक ऑफ बड़ौदा (₹1,744 करोड़), और IDBI बैंक (₹75 करोड़) शामिल हैं।
विमान और इंजन की वापसी
पिछले साल अक्टूबर में, सरकार ने विमान और इंजन को IBC की रोक से बाहर कर दिया। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने अप्रैल 2024 में डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) को सभी 54 विमानों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का आदेश दिया। मई 2024 तक सभी विमान उनके मालिकों को वापस कर दिए गए।
गो फर्स्ट का सफर खत्म
NCLT ने कंपनी के लिक्विडेशन के लिए दिनकर वेंकटसुब्रमणियन को आधिकारिक लिक्विडेटर नियुक्त किया है। यह फैसला गो फर्स्ट की 20 महीने लंबी दिवालिया प्रक्रिया का अंत है। कभी यात्रियों के बीच सस्ती और सुविधाजनक यात्रा का पर्याय रही गो फर्स्ट अब इतिहास के पन्नों में सिमट गई है।