केंद्र सरकार शीघ्र ही सरकारी बंदरगाह-निर्भर उद्योगों को प्रमुख बंदरगाहों पर नामांकन के आधार पर कैप्टिव बर्थ की सुविधा शीघ्र मुहैया कराने पर विचार कर रही है। इस सिलसिले में बीते दो वर्षों के दौरान कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। यह जानकारी इस मामले के जानकार अधिकारियों ने दी।
बंदरगाह निर्भर उद्योग (पीडीआई) वो होते हैं जो प्रमुख बंदरगाह से आयात और/या निर्यात के लिए कैप्टिव कार्गो की प्रस्तावित कम से कम 70 प्रतिशत कार्गो क्षमता पर निर्भर होते हैं। कैप्टिव बर्थ पीडीआई को अपने स्वयं के लिए प्राथमिकता के आधार पर कैप्टिव बर्थिंग जैसे लाभ प्रदान करते हैं। इसके बदले में ऑपरेटर बंदरगाह प्राधिकरण को कार्गो की मात्रा के आधार पर रॉयल्टी भुगतान करते हैं। प्रमुख बंदरगाहों पर 24 कैप्टिव राजमार्ग (वाटरफ्रंट) सुविधाएं हैं।
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘नई प्रस्तावित नीति में केंद्र सरकार के विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और स्वायत्त निकायों को निविदा प्रक्रिया में शामिल हुए बिना नए संभावित वॉटर फ्रंट्स में नामित होंगी। वर्तमान समय में मंत्रिमंडल में विचार-विमर्श उन्नत चरण में हैं। लिहाजा इस विषय में प्रगति जल्द होगी।’ इस मामले में बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय के सवाल भेजे गए थे लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला।
अधिकारियों ने बताया कि नए नियम हालिया पीडीआई को अनुमति देंगी कि वे 30 वर्ष के अंत पर समाप्त हो रही कैप्टिव वर्थ की सुविधा को फिर से शुरू कर सकेंगे। इससे बेतरतीब ढंग से नीलामी की प्रथाओं का मुख्य मुद्दा हल होगा।
मौजूदा इकाइयां अपनी कैप्टिव सुविधाओं के नवीनीकरण में सक्षम होंगी और उन्हें नीलामी के दौर में नहीं उलझना पड़ेगा। इससे प्रतिस्पर्धा के दौर में प्रमुख परियोजनाओं को खोना का जोखिम कम हो जाएगा। यह नवीनीकरण बंदरगाह प्राधिकरण के फ्लोर प्राइस से तय होगा या हालिया रॉयल्टी भुगतान से इंडेक्स्ड वैल्यू में जो भी महंगा होगा, उसके आधार पर होगा।
दूसरी तरफ हालिया सुविधाओं का विस्तार होगा। सरकारी निकाय जिन्हें पहले नामांकन के दौर में कैप्टिव वॉटर फ्रंट आबंटित किए गए थे, वे नामांकन के आधार पर अतिरिक्त वॉटर फ्रंट प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि निजी इकाइयों को निविदा का प्रक्रिया से गुजरना होगा लेकिन पहले इनकार करने के अधिकार (आरओएफआर) के साथ। इसका अर्थ यह है कि ये हालिया इकाइयां अधिकतम निविदा कर सकती हैं।
कैप्टिव बर्थ के हालिया विनियमनों के अनुसार, ‘यह संचालन अधिकतम 30 वर्ष के लिए है। रियायती समझौते में उल्लेखित नियम व शर्तों के तहत वॉटर फ्रंट और प्रमुख बंदरगाह की संबंधित जमीन बर्थ, ऑफशोर एनक्रोज्स, ट्रांसशिपमेंट जेटीज, सिंगल पाइंट मूरिंग्स आदि के लिए आबंटित की जाएगी। यह रियायती समझौता बंदरगाह प्राधिकरण और संबंधित पीडीआई के बीच होगा।’
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2016 में इन विनियमनों को मंजूरी दे दी थी। क्षेत्र के विशेषज्ञओं के मुताबिक आरओएफआर प्रणाली मूल्य निर्धारण में हेरफेर कर सकती है। इससे बाजार को पता चल जाएगा कि पीडीआई सुविधा का विस्तार करना चाहती है। इससे बेतुकी बोलियां भी लग सकती हैं।