रेल परियोजनाओं पर काम करने वाले ठेकेदारों को मद्रास उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। उच्च न्यायालय ने रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) को दी गई कार्य अनुबंध सेवाओं पर 12 फीसदी का रियायती वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने के पक्ष में निर्णय दिया है। कर विभाग18 फीसदी जीएसटी की मांग कर रहा था।
यह मामला एसटीएस-केईसी से जुड़ा है जिसे भारतीय रेल की ढांचागत परियोजनाओं के लिए अनुबंध दिया गया था। एसटीएस-केईसी असल में स्ट्रॉयटेकसर्विसेस एलएलसी (रूस) और केईसी इंटरनैशनल लिमिटेड की संयुक्त उद्यम है। इस परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु में वांची मनियाची और नागरकोविल के बीच रेल लाइन का दोहरीकरण किया जाना था। इसके अलावा दक्षिण रेलवे के मदुरै और तिरुअनंतपुरम डिवीजन में सिग्नल प्रणाली और दूरसंचार ढांचा लगाने का काम भी शामिल था।
कर विभाग ने 12 दिसंबर 2023 को एसटीएस-केईसी संयुक्त उद्यम के खिलाफ जीएसटी की मांग से जुड़ा एक आदेश जारी किया था। यह आदेश कर समीक्षा वर्ष 2018-19 से 2022-23 के लिए था जिसमें आरवीएनएल को दी जा रही सेवाओं पर 18 फीसदी जीएसटी की मांग की गई थी। मगर 28 जून 2017 को जारी एक अधिसूचना में 12 फीसदी जीएसटी लगाने का ही प्रावधान था। केंद्र सरकार द्वारा जारी इस अधिसूचना में रेल से संबंधित विभिन्न ढांचागत परियोजनाओं से जुड़े अनुबंध आधारित कार्यों पर 12 फीसदी जीएसटी लगाने का प्रावधान था।
आयकर विभाग की कर मांग के जवाब में एसटीएस-केईसी संयुक्त उद्यम ने मद्रास उच्च न्यायलय में पांच रिट याचिकाएं दाखिल की थीं। इन याचिकाओं में कंपनी ने कहा कि जीएसटी वर्गीकरण कार्यों के प्रकार पर आधारित होना चाहिए न कि प्राप्तकर्ता की पहचान के आधार पर। 28 जनवरी 2025 को एक साझा आदेश में न्यायालय ने यह कहते हुए कर विभाग की मांग निरस्त कर दी कि रेल परियोजनाओं पर 12 फीसदी ही जीएसटी ही लगाई जा सकती है। न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये परियोजनाएं भारतीय रेल, आरवीएनएल या रेल के ढांचागत विकास में संलग्न किसी अन्य इकाई के लिए पूरी की जा रही हैं।
रस्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘जीएसटी का निर्धारण करने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक कार्य का प्रकार होता है न कि कार्य करने वाली इकाई। अगर यह कार्य भारतीय रेल से जुड़ा है तो इस पर 12 फीसदी जीएसटी ही लगना चाहिए। यह बात मायने नहीं रखती कि अनुबंध भारतीय रेल, आरवीएनएल या रेल परियोजनाओं पर काम करने वाले किसी अन्य संगठन का है। न्यायालय के सामने अहम सवाल यह था कि क्या सरकार इस बात पर कर लाभ सीमित कर सकती है कि सेवा कौन ले रहा है।‘ रस्तोगी ने मद्रास उच्च न्यायालय में करदाताओं का पक्ष रखा था।