भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का राजस्व वित्तीय वर्ष 2007-08 में 10,000 करोड़ रुपये के आंकड़े पर पहुंच गया। यह खुलासा छठे ‘बायोस्पेक्ट्रम-एबीएलई बायोटेक इंडस्ट्री सर्वे’ में किया गया है।
इस उद्योग की ओर से पिछले पांच वर्षों में लगातार 30 फीसदी के विकास के बाद 2007-08 में इस क्षेत्र के विकास में 20 फीसदी की गिरावट आई। यह विकास दर रुपये में बढ़ोतरी और वैश्विक बाजारों में कीमत दबाव के कारण प्रभावित हुई।
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग के सर्वेक्षण के मुताबिक 31 मार्च, 2008 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में इस उद्योग का राजस्व बढ़ कर 10,273 करोड़ रुपये हो गया जो 2006-07 में 8,541 करोड़ रुपये था। 2007-08 में उद्योग का तकरीबन दो-तिहाई राजस्व निर्यात से हासिल हुआ। रुपये की कीमत में इजाफा होना उद्योग की धीमी विकास दर का मुख्य कारण रहा। पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में डॉलर के मुकाबले रुपये में 10 से 12 फीसदी का उछाल आया।
सेगमेंट के हिसाब से बायो-फार्मा का राजस्व 6,899.90 करोड़ रुपये पर पहुंच गया तो पूर्व की तुलना में 16 फीसदी अधिक रहा। इसी तरह बायो-सर्विसेज का राजस्व 43 फीसदी की बढ़त के साथ 1572 करोड़ रुपये, एग्री-बायो का राजस्व 30 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 1,201.78 करोड़ रुपये और इंडस्ट्रियल-बायो का राजस्व 4 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 410 करोड़ रुपये रहा। जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने पिछले पांच सालों में 34 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (सीएजीआर)हासिल की। बायो-सर्विसेज ने 63 फीसदी की उच्चतर सीएजीआर दर्ज की वहीं एग्री-बायो क्षेत्र की सीएजीआर 61 फीसदी रही।
इस सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बायोस्पेक्ट्रम के समूह संपादक नारायणन सुरेश ने कहा, ‘पांच सालों तक 30 फीसदी की विकास दर हासिल करने के बाद भारत के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की विकास दर मंद हो गई है।’ 2007-08 में 2,750 करोड़ रुपये का निवेश किया गया जो पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष की तुलना में 21 फीसदी अधिक है। मौजूदा चलन और नई प्रगतिशील जैव प्रौद्योगिकी नीति के आधार पर सर्वेक्षण में 2015 तक 52,000 करोड़ से 64,000 करोड़ रुपये राजस्व की भविष्यवाणी की गई है।
कुछ नए उत्पादों को नियामक मंजूरी मिलना अभी बाकी है। इन उत्पादों को नियामक मंजूरी मिल जाने के बाद राजस्व में और इजाफा होने की संभावना है। एबीएलई के महानिदेशक श्रीकुमार सूर्यनारायणन ने बताया, ‘भारत में बायो-फार्मा उद्योग मजबूत हो रहा है और अगले पांच साल इस उद्योग के लिए बेहद अहम होंगे। भारत में कंपनियों के क्लबों की संख्या में इजाफा हो रहा है जो भारत और विश्व के लिए नई जैव प्रौद्योगिकी आधारित दवा उत्पादों को विकसित करने की शुरुआत है। हमें उम्मीद है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा जैव-ईंधन क्षेत्र जैसे अन्य उद्योगों में भी जैव प्रौद्योगिकी का अहम योगदान होगा।’
पुणे का सेरम इंस्टीटयूट लगातार तीसरे वर्ष 987 करोड़ रुपये के राजस्व के साथ शीर्ष बायोटेक कंपनी के रूप में उभरा है। इसके बाद बायोकॉन का राजस्व 912 करोड़ रुपये , पैनेसिया बायोटेक का 677.98 करोड़ रुपये और नुजीवीदू सीड्स का 303 करोड़ रुपये एवं रस्सी सीड्स का राजस्व 293 करोड़ रुपये रहा है।