डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार हो रही गिरावट ने कई उद्योगों के लिए मुश्किल खड़ी की है, लेकिन टिकाऊ उपभोक्ता उद्योग पर गिरते रुपये से उतनी चोट नहीं पड़ी है क्योंकि यह कलपुर्जे के आयात पर निर्भर है और इन कंपनियों का अनुबंध जापानी येन या चीन के युआन में है।
इस क्षेत्र को एक तरह की ढाल और मिली हुई है क्योंकि इनका विनिर्माण केंद्र देश में ही है क्योंकि इन कंपनियों ने अपना तंत्र देश के भीतर ही सृजित किया है। साथ ही आधारभूत धातुओं की कीमतों में नरमी से भी गिरते रुपये से पड़ने वाली चोट को सहारा मिला है।
पिछले तीन महीने में डॉलर के मुकाबले रुपये में 2.2 फीसदी की गिरावट आई है, जो मोटे तौर पर टिकाऊ उपभोक्ता कंपनियों को प्रभावित करता है।
गोदरेज अप्लायंसेज के बिजनेस हेड और कार्यकारी उपाध्यक्ष कमल नंदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, रुपया कमजोर हो रहा है लेकिन हम कमोडिटी की कीमतों में भी नरमी देख रहे हैं। हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि दोनों रुझान किस तरह के रहते हैं। हम फिलहाल कीमत को लेकर कोई कदम नहीं उठाएंगे और अगले महीने स्थिति की समीक्षा करेंगे।
लंदन मेटल एक्सचेंज का बेस मेटल इंडेक्स अक्टूबर के बाद से ही नरम बना हुआ है। हालांकि डाइकिन ने एयर कंडीशनर बनाने के लिए देश में ही अपना तंत्र सृजित करने पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन वह अपनी कुल जरूरत का 10-15 फीसदी से ज्यादा आयात नहीं करती।
डाइकिन इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक केजे जावा ने कहा, ‘हमना अपना पारिस्थितिकीतंत्र स्थापित किया है और हाल ही में हमने एक और नया विनिर्माण संयंत्र भी शुरू किया है, जिससे हम आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं हैं।’ उन्होंने कहा कि वह अपने उत्पादों की कीमतों पर फैसला करेगी, लेकिन महीने के आखिर में ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।