मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने लगातार चौथे साल भारत की सबसे मूल्यवान कंपनी के रूप में अपना स्थान बरकरार रखा है। साल 2024 के लिए बरगंडी हुरुन इंडिया 500 रिपोर्ट के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज 17.52 लाख करोड़ रुपये के मूल्यांकन के साथ सबसे मूल्यवान सूचीबद्ध भारतीय कंपनी रही। मगर गैर-सूचीबद्ध नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने 4.70 लाख करोड़ रुपये के मूल्यांकन के साथ सूची में दसवां पायदान हासिल कर लिया। इस प्रकार एनएसई ने भारत की दस सबसे मूल्यवान गैर-सरकारी कंपनियों की जमात में अपनी जगह बनाई है।
एनएसई भारत की सबसे मूल्यवान गैर-सूचीबद्ध कंपनी भी है। वह 2.11 लाख करोड़ रुपये मूल्यांकन वाली साइरस पूनावाला की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से आगे है। एनएसई की स्थापना 1992 में हुई थी और वह न केवल भारत का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है, बल्कि दुनिया के सबसे उन्नत एवं सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में शामिल है। एनएसई सूचीबद्ध नहीं है, लेकिन गैर-सूचीबद्ध बाजार में एनएसई के शेयरों का खूब कारोबार होता है। एनएसई पिछले एक दशक से सूचीबद्ध होने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नियामकीय कारणों से वह ऐसा नहीं कर पा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार सूची में शामिल शीर्ष 500 सबसे मूल्यवान कंपनियों का एकीकृत मूल्यांकन 324 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी अधिक है। इन कंपनियों का एकीकृत मूल्यांकन देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से भी अधिक है। ऐसा कहा जा रहा है कि हुरुन इंडिया 500 में शामिल कंपनियों में से महज 33 कंपनियां ही हुरुन ग्लोबल 1,000 सूची में जगह बना पाई हैं। इसकी मुख्य वजह भारतीय कंपनियों की नई विरासत है। फिलहाल भारतीय कंपनियों की औसत आयु महज 43 वर्ष है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज के बाद टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), एचडीएफसी बैंक, भारती एयरटेल और आईसीआईसीआई बैंक देश की पांच सबसे मूल्यवान कंपनियों में शामिल हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि शीर्ष दस कंपनियों का मूल्यांकन 2024 में 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है। उनके मूल्यांकन में पिछले साल के मुकाबले करीब 23 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है। दिलचस्प है कि 15 कंपनियों के साथ टाटा समूह का एकीकृत मूल्यांकन 32 लाख करोड़ रुपये है जो शीर्ष 500 कंपनियों के कुल मूल्यांकन का करीब 10 फीसदी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पहली बार भारती एयरटेल ने 9.74 लाख करोड़ रुपये के मूल्यांकन के साथ दो पायदान की छलांग के साथ शीर्ष पांच में जगह बनाई है। उसके मूल्यांकन में 75 फीसदी की वृद्धि हुई है।’
रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ है कि पिछले एक दशक में शीर्ष 10 सबसे मूल्यवान भारतीय कंपनियों के कुल मूल्यांकन में 3.5 गुना वृद्धि हुई। शीर्ष 7 कंपनियां पिछले 5 और 10 वर्षों से लगातार शीर्ष 10 की सूची में बरकरार हैं।
इस बीच, सूची में जगह पाने की सीमा बढ़कर 9,580 करोड़ रुपये हो चुकी है जो पिछले साल की सीमा 6,700 करोड़ रुपये के मुकाबले 43 फीसदी अधिक है। ऐसे में इतना तो तय है कि रुपये में काफी गिरावट आने के बावजूद ताजा सूची में शामिल सभी कंपनियों का मूल्यांकन कम से कम 1 अरब डॉलर है।
हुरुन इंडिया के संस्थापक और मुख्य अनुसंधानकर्ता अनस रहमान जुनैद ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान कारोबार के आकार और मूल्यांकन दोनों में वृद्धि हुई है। यह मूल्यांकन के लिहाज से एक अच्छा संकेत है।’
कारोबारी क्षेत्र के लिहाज से गौर किया जाए तो सूची में वित्तीय सेवा कंपनियां सबसे ऊपर हैं। इस क्षेत्र की 63 कंपनियों का मूल्यांकन 62 लाख करोड़ रुपये है जो कुल मूल्यांकन का 19 फीसदी है। इसके बाद स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की 59 कंपनियों का मूल्यांकन 29.31 लाख करोड़ रुपये है। अगले दो पायदानों पर औद्योगिक उत्पाद एवं वाहन कंपनियां मौजूद हैं जबकि रसायन क्षेत्र की कंपनियां पांचवें पायदान पर हैं।
सूची में जेप्टो, जीरोधा, वनकार्ड, क्रेड जेटवार्क, भारतपे, ओला इलेक्ट्रिक आदि प्रमुख स्टार्टअप भी शामिल हैं। जीरोधा 87,750 करोड़ रुपये मूल्यांकन के साथ चौथी सबसे मूल्यवान गैर-सूचीबद्ध कंपनी भी है। एनएसई, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और जोहो कॉरपोरेशन उससे आगे हैं।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करने वाली कंपनियों में आगे रही। उसके मूल्यांकन में पिछले साल के मुकाबले 297 फीसदी की वृद्धि हुई। उसके बाद आइनॉक्स विंड और जेप्टो के मूल्यांकन में करीब तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई।