वेदांता समूह की कुछ जिंक परिसंपत्तियां 2.98 अरब डॉलर नकद भुगतान के जरिए खरीदने का हिंदुस्तान जिंक का प्रस्ताव अब खत्म हो गया है। क्योंकि कंपनी तय समयसीमा में शेयरधारकों की मंजूरी हासिल करने में नाकाम रही। सूत्रों ने यह जानकारी दी। इस सौदे की घोषणा जनवरी के मध्य में हुई थी, जिसके बाद शेयरधारकों की मंजूरी हासिल करने की खातिर असाधारण आम बैठक बुलाने के लिए हिंदुस्तान जिंक के पास तीन महीने का समय था। सूचीबद्ध कंपनियों के लिए भारतीय नियम यही कहता है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, अब यह मसला खत्म हो गया है क्योंकि तीन महीने बीत चुके हैं। मार्च में हिंदुस्तान जिंक ने 110 अरब रुपये के अंतिम लाभांश की घोषणा की। इसी नकदी भंडार से कंपनी की योजना अपने अधिग्रहण का वित्त पोषण करने का था। सूत्रों ने यह जानकारी दी। कंपनी का एकीकृत सकल निवेश और नकदी व नकदी समकक्ष 31 दिसंबर को 164.82 अरब रुपये था। हिंदुस्तान जिंक में भारत सरकार सबसे बड़ी अल्पांश शेयरधारक है, जिसके पास 29.54 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि वेदांत के पास 64.9 फीसदी हिस्सेदारी।
सरकार ने वेदांत समूह की दो इकाइयों को खरीदने के हिंदुस्तान जिंक के प्रस्ताव का विरोध किया था क्योंकि सरकार का कहना है कि यह संबंधित पक्षकार लेनदेन है। सरकार ने यह कहते हुए भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था कि सौदे के लिए वित्त पोषण नकदी भंडार से होगा। हिंदुस्तान जिंक के शेयर की कीमत सौदे की घोषणा के बाद से टूटा है, जिसने कुछ हिस्सेदारी बेचने की सरकार की योजना को झटका दिया। तब से सरकार ने अपनी योजना रोककर रखी है।
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प्रस्ताव की समाप्ति वेदांत रिसोर्सेस के लिए झटका है क्योंकि अरबपति अनिल अग्रवाल की अगुआई वाली खनन कंपनी ने बिक्री के जरिए अपने कर्ज 7.7 अरब डॉलर का कुछ हिस्सा कम करने की योजना बनाई थी। हिंदुस्तान जिंक, वेदांत और वित्त व खनन मंत्रालय को इस संबंध में जानकारी हासिल करने के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।