अमेरिकी मंदी की चपेट में आकर भारतीय बिजनस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) उद्योग को वाकई नुकसान हो रहा है।
इस क्षेत्र की सबसे बड़ी देशी कंपनी जेनपैक्ट को भी लगता है कि नए सौदों में अभी वक्त लगेगा और उसे इंतजार करना पड़ेगा।जेनपैक्ट के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी प्रमोद भसीन ने विश्लेषकों से एक सम्मेलन में कहा, ‘हम कारोबारी माहौल पर नजर रख रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में तो कुछ सौदे वक्ती तौर पर टाल ही दिए जाएंगे।
बीपीओ में भी सौदों में देर तय है। पहले सौदे 3 से 6 महीनों में तय हो जाते थे, लेकिन अब इनमें 9 से 12 महीनों का वक्त लग रहा है। जो कंपनियां पहली बार आउटसोर्सिंग का सहारा ले रही हैं, वे खास तौर पर फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं, जिसकी वजह से कारोबार में देर हो रही है।’
लेकिन मंदी में भी भसीन को एक फायदा दिख रहा है। उन्होंने बताया कि मौजूदा ग्राहक अपने सौदों को तेजी से निपटा रहे हैं। उन्होंने बताया, ‘री इंजीनियरिंग और मरम्मत के काम में मांग काफी ज्यादा है। कुछ खास ग्राहक तो तेजी से सौदे कर रहे हैं और काम को निपटाने में भी वक्त नहीं लगा रहे हैं।’ कंपनी ने चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में अच्छा मुनाफा कमाया। उसकी शुद्ध आय 11 गुनी हो गई और राजस्व 33 फीसद बढ़ गया।
लेकिन मंदी का नुकसान कंपनी को हो रहा है। उसके बड़े ग्राहकों में शुमार कंपनी जीई को बाजार के उतार चढ़ाव की वजह से नुकसान उठाना पड़ा है। इसी वजह से वह आउटसोर्सिंग पर कम पैसा खर्च करेगी। भसीन ने कहा, ‘जीई लागत कम करेगी। मुझे लगता है कि उससे हमें कम रकम मिलेगी। लेकिन कंपनी के अंदर ही दूसरे क्षेत्रों में हमें कारोबार मिल सकता है, मसलन बुनियादी ढांचा और स्वास्थ्य सेवा।’
दूसरी भारतीय आईटी कंपनियों के उलट जेनपैक्ट को 2.24 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा लाभ हुआ। कंपनी अपने राजस्व का 10 फीसद हिस्सा क्षमता के विस्तार में खर्च करेगी। वह विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) में भी कारोबार फैला रही है।