Digital lab at fingertips: स्मार्टफोन की मदद से लोगों की सेहत जांचने वाली हेल्थटेक स्टार्टअप नियोडॉक्स अगले तीन साल में 10 करोड़ जांच करना चाहती है। यह लक्ष्य बहुत बड़ा है क्योंकि कंपनी ने अभी तक 2.5 लाख जांच ही की हैं।
कंपनी स्मार्टफोन ऐप्लिकेशन और टेस्ट कार्ड के जरिये डायग्नोस्टिक यानी जांच का काम पूरा करती है। इसमें केमिकल रीजेंट्स का विश्लेषण किया जाता है। जैसे-जैसे पैमाने बदलते हैं, रंग भी बदलते जाते हैं। इससे जांच कर, जानकारी इकट्ठी कर और कंप्यूटर विजन मॉडल का इस्तेमाल कर किसी भी फोन की मदद से जांच की जा सकती है। रोशनी कम भी हो तो जांच करने में कोई दिक्कत नहीं आती।
नियोडॉक्स की बुनियाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई से पढ़े निकुंज मालपानी, अनुराग मीणा और प्रतीक लोढ़ा ने रखी थी। तीनों अब इसमें होने वाली जांच बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। वे लिपिड प्रोफाइल, मधुमेह, लिवर फंक्शन, बांझपन, बालों का गिरना, आंखों की जांच, खून की कमी जैसी जांच को भी शामिल कर रहे हैं।
अपनी पैठ बढ़ाने के लिए नियोडॉक्स विभिन्न दवा कंपनियों, डॉक्टरों और सरकारी एजेंसियों के साथ भी हाथ मिला रही है। कंपनी ने रकम जुटाकर विदेश में भी पांव पसारना शुरू कर दिया है और ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ सौदे हो भी चुके हैं।
नियोडॉक्स के संस्थापक निकुंज मालपानी कहते हैं, ‘अगले तीन साल में 10 करोड़ जांच करने का हमारा लक्ष्य है (जो आज के मुकाबले 400 गुना होंगी) और भारत में अपने मौजूदा नेटवर्क में निवेश कर, नई जांच शुरू कर तथा विदेश में विस्तार कर हम यह लक्ष्य हासिल कर लेंगे।’ मालपानी ने कहा कि उनकी कंपनी आगे जाकर सभी लोगों के लिए एक तरह से तुरंत हाजिर रहने वाला निजी जांच केंद्र बना देना चाहती है ताकि वे पुराने ढर्रे के जांच केंद्रों पर गए बगैर ही अपनी सेहत की जांच कर सकें। उन्हें लगता है कि भारत में स्मार्टफोन की पहुंच और इंटरनेट कनेक्टिविटी जिस तरह बढ़ रह है, उससे स्मार्टफोन पर चलने वाले कंपनी के इस कारोबार को बहुत फायदा होगा।
फिलहाल नियोडॉक्स मूत्र नली में संक्रमण (यूटीआई), मधुमेह, गुर्दे की बीमारी जैसी तकलीफों और जच्चा तथा बुजुर्गों के लिए पेशाब की जांच की सुविधा देती है। कंपनी गर्भ ठहरने की जांच भी स्मार्टफोन के जरिये करने की सहूलियत देती है। ऐप्लिकेशन पर यूटीआई जांच किट 249 रुपये, गुर्दे की जांच की किट और मधुमेह जांच की किट 499 रुपये की है।
जांच कैसे काम करती है, यह समझाते हुए मालपानी ने कहा, ‘स्मार्टफोन पर जांच बिल्कुल वैसे ही होती है, जैसे जांच केंद्रों में की जाती है। जांच केंद्रों में पेशाब की जांच करते समय आम तौर पर बड़ी-बड़ी मशीनों से और केमिकल के जरिये पता लगाया जाता है कि क्या कम और क्या ज्यादा है। यही काम हम स्मार्टफोन और टेस्ट कार्ड की मदद से कर देते हैं। टेस्ट कार्ड में कई केमिकल रीजेंट होते हैं और पेशाब के नमूने में उसे मिलाने पर 1-2 सेकंड के भीतर ही तमाम पैमाने रता चल जाते हैं। इन पैमानों के हिसाब से रंग बदल जाता है, जिसे फोन का कैमरा पकड़ लेता है।’
मालपानी समझाते हैं, ‘यह कोई जादू नहीं है। गहन जांच, डेटा भंडार और कंप्यूटर विजन मॉडल से सटीक नतीजे आ जाते हैं। शुरू में हम यूटीआई और गुर्दे की गंभीर बीमारियों पर ध्यान दे रहे थे। मगर अब हमने बांझपन, आंख, खून की कमी, लिपिड प्रोफाइल, मधुमेह, लिवर की जांच भी शामिल करने की योजना बनाई है।’
एनीमिया यानी खून की कमी का पता लगाने के लिए व्यक्ति को अंगुली में सुई चुभाकर उसे टेस्ट कार्ड पर रखना होगा। उसके बाद स्मार्टफोन कार्ड की तस्वीर लेगा और उसे जांच के लिए सर्वर पर भेज देगा। मरीज को मिनट भर में ही नतीजा मिल जाएगा।
सर्वर की सटीकता के बारे में मालपानी ने कहा, ‘सर्वर का प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन लगातार चल रहा है। हम आईआईटी बंबई जैसे संस्थानों की बायोमेडिकल लैब के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं, जहां हमें कई तरह के कृत्रिम नमूनों पर काम करने का मौका मिलता है। हम मुंबई के सायण अस्पताल जैसे अस्पतालों में वैलिडेशन टेस्टिंग के अध्ययन भी कर रहे हैं। हमारे प्रदर्शन के मूल्यांकन का अध्ययन भी वहीं हुआ। साथ ही डेटा तैयार करते वक्त हमने सटीक नतीजों के लिए रोशनी की 5 अलग-अलग स्थितियों में 8 अलग-अलग फोन का उपयोग किया है।’
नियोडॉक्स ने इस महीने की शुरुआत में ओमिडयार नेटवर्क इंडिया के नेतृत्व में 16.6 करोड़ रुपये (20 लाख डॉलर) जुटाए थे। उस दौर में वाई कॉम्बिनेटर, 9 यूनिकॉर्न्स, गेम्बा कैपिटल, टाइटन कैपिटल जैसे निवेशकों ने भाग लिया। इसमें क्लाउडनाइन के रोहित एमए, क्रेड के कुणाल शाह, ममाअर्थ के वरुण अलघ, नारायण हेल्थकेयर के वीरेन शेट्टी, अपोलो हॉस्पिटल्स के हर्षद रेड्डी और बोट के विवेक गंभीर जैसे कई धनाढ्य निवेशक भी रहे।