पेट्रोलियम उत्पादों की खपत पर औद्योगिक मंदी का खासा असर हुआ है। प्राथमिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वर्ष में इसमें सबसे कम बढ़ोतरी देखी गई है और हाल के वर्षों में यह सबसे कम है।
फरवरी के दौरान कुल बिक्री पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 2.5 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। एलपीजी की बिक्री में एक प्रतिशत से अधिक की कमी आई है (इस साल के दौरान बिक्री में पहली गिरावट) जबकि एटीएफ की बिक्री में 9 प्रतिशत की जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है।
देश में तेल की सबसे बड़ी विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के निदेशक (विपणन) जी सी डागा ने कहा, ‘प्रमुख तौर पर औद्योगिक कामकाज में सुस्ती के कारण हाल की अवधि के दौरान फरवरी में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत वृध्दि दर सबसे कम रही है।
एटीएफ की बिक्री में 9 प्रतिशत की बिक्री दर्ज की गई जबकि डीजल की बिक्री वृध्दि दर घट कर 4 फीसदी रह गई है।’ विनिर्माण गतिविधियां कम होने की वजह से डीजल की बिक्री में कमी आई जबकि एटीएफ की बिक्री में विमान परिचालन घटने से गिरावट आई।
पेट्रोल की बिक्री में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और डागा ने बताया कि लोकसभा चुनाव के कारण इसमें और बढ़ोतरी होगी। अप्रैल से फरवरी की अवधि में कुल वृध्दि अभी भी चार प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक है (यद्यपि यह साल 2007-08 के 6.7 प्रतिशत की वृध्दि दर से काफी कम है)। ऐसा इसलिए क्योंकि साल के शुरुआती 6-7 महीनों में बिक्री की वृध्दि दर अच्छी थी।
ऑटोमोबाइल विनिर्माण, टेक्सटाइल और पावर संयंत्रों जैसे क्षेत्रों से पेट्रोलियम की मांग में कमी आई है। सोलह वर्षों में पहली बार भारत के औद्योगिक उत्पादन में लगातार दूसरे महीने गिरावट देखी गई है। दिसंबर 2008 में उत्पादन में 0.63 प्रतिशत की कमी आई जबकि जनवरी में इसमें 0.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
सरकार ने उपभोक्ता खर्च बढ़ाने के लिए कर की दरें घटाने जैसे उपाय किए हैं जबकि भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। हालांकि, इसका ज्यादा प्रभाव नहीं देखा गया।
ओपेक का अनुमान है कि साल 2009 में कच्चे तेल की मांग 1.18 प्रतिशत घट कर 946.1 लाख बैरल प्रति दिन रह जाएगी। इस समीक्षा में वैश्विक अर्थव्यवस्था में जारी मंदी के साथ मांग वृध्दि में हो रही कमी को भी शामिल किया गया है। ओपेक का अनुमान है कि चीन और मध्य पूर्व को छोड़ कर सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की मांग में कमी आएगी।