उत्तर प्रदेश के किसानों को मेंथा की खेती भाने लगी है, तभी तो इस फसल के उपज क्षेत्र में बढ़ोतरी हो रही है और यह 1.2 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है।
हो भी क्यों नहीं, तीन महीने के अंदर एक हेक्टेयर में बोई गई मेंथा की फसल से करीब 30 हजार रुपये का रिटर्न मिल जाता है, जो किसी अन्य नकदी फसल से काफी ज्यादा है। यही वजह है कि यूपी के किसान मेंथा की खेती काफी जोर-शोर से करने लगे हैं।
वैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मेंथा की काफी मांग है और चीन में होने वाली मांग उल्लेखनीय है। इसके अलावा मेंथॉल इंडस्ट्री सालाना 15 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। राज्य के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक, 2007 में करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मेंथा की फसल बोई गई थी, जो इस साल बढ़कर 1.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र तक पहुंच गई है।
राज्य में मेंथा की खेती तराई इलाके में होती है और इनमें रामपुर, बरेली, बदायूं, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, लखनऊ और सुल्तानपुर शामिल हैं। इस फसल के लोकप्रिय होने का एक कारण ये है कि दूसरे नकदी फसल के मुकाबले इस फसल के तैयार होने में काफी कम समय लगता है। यह वैसे समय में लगाया जाता है जब जमीन बेकार पड़ी रहती है यानी खाली पड़ी रहती है।
रायबरेली के किसान आशीष यादव के मुताबिक, सामान्यत: मार्च-अप्रैल महीने में इसे लगाया जाता है और 70-90 दिन के अंदर यानी जून-जुलाई में यह तैयार हो जाता है। उन्होंने कहा कि इसे वैसे समय में लगाया जाता है, जब खेत खाली पड़ी रहती है।
हालांकि मेंथा की खेती में पानी की काफी जरूरत होती है, ऐसे में सिंचाई की सुविधा में विस्तार और पारंपरिक तरीका जैसे नहर व तालाब के जरिए किसान इस फसल के जरूरत के मुताबिक पानी जुटा लेते हैं। इस तरह किसान मेंथा की फसल लगाकर अच्छा रिटर्न हासिल कर रहे हैं और दिन प्रतिदिन इसके फसल क्षेत्र में इजाफा हो रहा है।
हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट किसानों को ट्रेनिंग भी देते हैं कि पौधे से मेंथा ऑयल कैसे निकाला जाता है और इसकी प्रोसेसिंग यूनिट कैसे लगाई जाती है। इसके अलावा सरकार छोटे और बड़े किसानों को 25 फीसदी की सब्सिडी भी देती है। डिपार्टमेंट के अधिकारी के मुताबिक, इस सब्सिडी में केंद्र और राज्य का हिस्सा क्रमश: 85 व 15 फीसदी का है।
इसके अलावा अधिकतम चार हेक्टेयर मेंथा फसल के लिए 11250 रुपये प्रति हेक्टेयर केहिसाब से सब्सिडी देने का भी प्रावधान है। टूथपेस्ट, माउथ फ्रेशनर, दवा, ड्रिंक, च्विंगम आदि के निर्माण में मेंथा ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों का इस्तेमाल जेली व जूस आदि के निर्माण में होता है।
इस बीच, सरकार ने मेंथा किसानों और व्यवसायियों को ट्रेनिंग देने की खातिर लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टिटयूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट (सीआईएमएपी) से गठजोड़ किया है। सीआईएमएपी को मेंथा की चार वेरायटी हिमालया, कोसी, कुशल और सक्शम के विकास का श्रेय दिया जाता है और देश में इसका इस्तेमाल हो रहा है।