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ग्लोबल वार्मिंग से कुल्लू के सेब पर प्रतिकूल असर

Last Updated- December 05, 2022 | 4:28 PM IST

ग्लोबल वार्मिंग के कारण कुल्लू इलाके में सेब व्यवसाय इन दिनों घाटे का सौदा साबित हो रहा है। कभी मुनाफे के लिए मशहूर इस सौदे के बगान मालिकों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। तापमान में लगातार बढ़ोतरी के कारण होने वाले ग्लोबल वार्मिंग से इस इलाके में अब सेब का उत्पादन ऊपर के क्षेत्रों में हो रहा है। पहले सेब का उत्पादन मंडी, भूनतर, कुल्लू जैसे इलाकों में होता था। लेकिन अब यह उत्पादन मनाली में हो रहा है।
रॉयल डेलिसियस, रेड डेलिसियस व गोल्डन डेलिसियस नामक सेब को उगाने वाले कुल्लू के किसान इन दिनों कोई और फसल उगाने को विवश है।
कुल्लू में सेब बगान के मालिक अनिल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण उनकी बीस बीघा की फसल सूख गई और वे अब किसी और फसल की ओर रुख करने को मजबूर है। अनिल इस मामले में अकेले नहीं है।
इस बदहाली का सामना और भी कई बगान मालिक कर रहे हैं। कभी उम्दा किस्म के सेब उत्पादन के लिए विख्यात कुल्लू इन दिनों अन्य उत्पादन का विकल्प तलाश रहा है। क्योंकि सेब का उत्पादन अब ऊंचाई वाले इलाकों में स्थानांतरित हो गया है।
हिमाचल प्रदेश का बागवानी विभाग भी उनकी बातों से सहमत है। वहां के कर्मचारियों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कुल्लू इलाके में सेब के उत्पादन में 15 से 20 फीसदी की गिरावट आई है। उन्होंने बताया कि सेब की फसलों को एक सीजन में 1200 घंटे की ठंड की जरूरत होती है।
लेकिन बढ़ते तापमान से यहां की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बीते दस सालों से इस इलाके में प्रतिवर्ष एक डिग्री तापमान बढ़ रहा है। गर्मी में जहां पहले अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होता था वही यह बढ़कर 35 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया है।
एक अन्य बगान मालिक नकुल खुल्लर ने बताया कि बीते पांच सालों में सेब उत्पादन के क्षेत्र में काफी बदलाव आया है।
पहले सेब की खेती 4000 फीट की ऊंचाई पर होती थी लेकिन अब यह 5000 फीट की ऊंचाई पर की जा रही है।
कुल्लू बागवानी विभाग के उपनिदेशक बीएल शर्मा ने इस बारे में बताया कि यह सही है किकुल्लू के कुछ इलाकों में ग्लोबल वार्मिंग का असर पड़ा है लेकिन यहां के किसानों ने सेब की तुलना में अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की ओर भी अपना रुख कर लिया है।   

First Published - March 6, 2008 | 9:54 PM IST

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