टैरिफ शुल्क में उलझे चीन और अमेरिका की व्यापारिक अनिश्चितता और बढ़ते वैश्विक भू राजनीतिक तनाव का असर रत्न और आभूषण की मांग पर पड़ रहा है। जिसका असर सीधे तौर पर भारत के निर्यात पर भी दिख रहा है। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (GJEPC) ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका के शुल्क घोषणा के बाद मई में कुल रत्न और आभूषण निर्यात सालाना आधार पर 15.81% घटकर 226.34 करोड़ अमेरिकी डॉलर (19,260.81 करोड़ रुपये) रहा गया। इस दौरान आयात में 12.96% की गिरावट दर्ज की गई।
GJEPC द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार 2024 की इसी अवधि के दौरान उद्योग का निर्यात 2,68.83 करोड़ अमेरिकी डॉलर (22,414.02 करोड़ रुपये) था। मई में तराशे गये हीरों का निर्यात 35.49% घटकर 94.97 करोड़ अमेरिकी डॉलर (8,089.81 करोड़ रुपये) रहा, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 1,47.20 करोड़ डॉलर (12,272.03 करोड़ रुपये) था। मई में पॉलिश किए गए प्रयोगशाला में बने हीरों का निर्यात सालाना आधार पर 12.03 करोड़ डॉलर (1,003.06 करोड़ रुपये) से 32.76% घटकर 8.09 करोड़ डॉलर (689.71 करोड़ रुपये) रह गया।
मई 2025 में कच्चे हीरे के आयात में 5.46% और रंगीन रत्नों के निर्यात में 1.13% की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि इस बीच सोने के आभूषणों के की मांग में सुधार देखने को मिला है। GJEPC के मुताबिक, समीक्षाधीन अवधि में सोने के आभूषणों का निर्यात सालाना आधार पर 17.24% बढ़कर 99.75 करोड़ अमेरिकी डॉलर (8,482.61 करोड़ रुपये) हो गया। अप्रैल-मई के दौरान चांदी के आभूषणों का कुल निर्यात 17.59% घटकर 15 करोड़ डॉलर (1,281.92 करोड़ रुपये) रह गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 18.21 करोड़ डॉलर (1,518.69 करोड़ रुपये) था।
GJEPC के चेयरमैन किरीट भंसाली ने कहा कि कुल निर्यात में गिरावट जारी है और मई में यह गिरावट मुख्य रूप से अमेरिका द्वारा शुल्क की घोषणा के कारण 15.81% रही। उन्होंने बताया कि पश्चिम एशिया में जारी तनाव के कारण सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की मांग बढ़ गई है, जिससे सोने के आभूषणों का निर्यात बढ़ा है।
रत्न एवं आभूषण के आयात-निर्यात में आई गिरावट पर कामा ज्वेलरी के एमडी कॉलिन शाह ने कहा कि मई 2025 में निर्यात में लगातार गिरावट का कारण डॉनल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ की घोषणा के बाद की अनिश्चितताओं को माना जा सकता है। इसने घरेलू बाजार पर एक छायादार प्रभाव डाला, जो अभी भी ट्रंप की टैरिफ लहर के बाद की प्रतिक्रिया से जूझ रहा है। इसके अलावा, मध्य पूर्व और अमेरिका में लंबे समय से चल रहे भू-राजनीतिक तनाव, रूस-यूक्रेन लगातार मांग-आपूर्ति की गतिशीलता को बाधित कर रहे हैं, जिससे पहले से ही बीमार सेक्टर की परेशानियां और बढ़ गई हैं। हालांकि, अमेरिका और चीन के बीच शांतिपूर्ण व्यापार वार्ता से कुछ राहत मिली है, जिससे सेक्टर की भावनाओं में सुधार होने की उम्मीद है।