दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने लगातार तीसरे साल 1,000 टन से ज्यादा सोना खरीदा है। यह जानकारी 2025 सेंट्रल बैंक गोल्ड रिजर्व्स (CBGR) सर्वे में सामने आई है। पिछले 10 वर्षों में औसतन हर साल 400 से 500 टन सोना खरीदा जाता था, लेकिन अब यह आंकड़ा काफी बढ़ गया है। इससे साफ है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अनिश्चित हालात में सोने को सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) का यह सर्वे अब तक का सबसे बड़ा सर्वे है। 25 फरवरी से 20 मई 2025 के बीच किए गए इस सर्वे में 73 केंद्रीय बैंकों ने हिस्सा लिया। इससे पता चलता है कि अब ज्यादा से ज्यादा बैंक अपने रिजर्व में सोने को अहम हिस्सा बना रहे हैं।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “संकट के समय सोने का प्रदर्शन, पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन लाने की क्षमता और महंगाई से बचाव जैसे कुछ अहम कारण हैं, जिनकी वजह से आने वाले वर्षों में सोने की खरीदारी बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है।”
2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, रिकॉर्ड 43% सेंट्रल बैंक अगले एक साल में अपनी गोल्ड रिजर्व बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। कोई भी बैंक इसे कम करने की नहीं सोच रहा है। इतना ही नहीं, 95% सेंट्रल बैंकों का मानना है कि इस अवधि में ग्लोबल सेंट्रल बैंकों की गोल्ड होल्डिंग्स में बढ़ोतरी जारी रहेगी।
इस तेजी के पीछे मुख्य वजहें हैं: आर्थिक झटकों के दौरान सोने की मजबूती, महंगाई से बचाव की इसकी क्षमता, और जटिल होते निवेश पोर्टफोलियो में यह एक बेहतर डाइवर्सिफायर के रूप में काम करता है। सेंट्रल बैंक इसे सुरक्षित निवेश (सेफ हेवन) मानते हैं, खासकर जब बाजार में उथल-पुथल होती है। यही इसकी बढ़ती मांग का बड़ा कारण है।
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रिपोर्ट में एक और अहम ट्रेंड यह सामने आया है कि आने वाले वर्षों में ग्लोबल रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घट सकती है। सर्वे में शामिल करीब 73% सेंट्रल बैंकों ने अगले पांच वर्षों में डॉलर होल्डिंग में मध्यम से लेकर बड़ी गिरावट की संभावना जताई है। इसके बदले यूरो, रेनमिन्बी (चीनी मुद्रा) और गोल्ड में निवेश बढ़ने की उम्मीद है।
यह बदलाव दो कारणों से हो रहा है — पहला, वैश्विक मैक्रोइकॉनॉमिक्स समीकरणों में बदलाव और दूसरा, उभरती अर्थव्यवस्थाओं की यह कोशिश कि वे पारंपरिक पश्चिमी मुद्राओं पर अपनी निर्भरता घटाएं। उनके लिए सोना एक निष्पक्ष और सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य वैल्यू स्टोर है, जिस पर उन राजनीतिक दबावों का असर नहीं होता जो फिएट मुद्राओं के साथ जुड़े रहते हैं।
2025 में वे सेंट्रल बैंक जो सक्रिय रूप से अपने गोल्ड रिजर्व का मैनेजमेंट कर रहे हैं, उनकी संख्या बढ़कर 44% हो गई है, जो 2024 में 37% थी। अब केवल रणनीतिक ट्रेडिंग नहीं, बल्कि जोखिम प्रबंधन (रिस्क मैनेजमेंट) भी गोल्ड रिजर्व मैनेजमेंट का बड़ा कारण बन गया है। इससे संकेत मिलता है कि सेंट्रल बैंक अब सिर्फ सुरक्षित निवेश नहीं, बल्कि स्थिरता और बेहतर प्रदर्शन के लिए भी सोने की ओर देख रहे हैं।
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स्टोरेज के मामले में बैंक ऑफ इंग्लैंड अभी भी सबसे पसंदीदा विकल्प बना हुआ है। 64% सेंट्रल बैंकों ने इसे अपनी पहली पसंद बताया है। हालांकि अब घरेलू स्टोरेज (देश में सोना रखने) का चलन भी बढ़ रहा है। 2024 में जहां 41% सेंट्रल बैंक कुछ सोना देश में रखते थे, अब 2025 में यह आंकड़ा बढ़कर 59% हो गया है। इसके बावजूद, केवल 7% सेंट्रल बैंक ही अगले एक साल में घरेलू स्टोरेज बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। इसका मतलब है कि ज्यादातर बैंक मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट हैं।