आने वाले महीनों में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से भारत को कच्चे तेल का आयात बढ़ने का अनुमान है। दुबई में हुई कॉप 28 शिखर सम्मेलन के इतर इस विषय पर चर्चा हुई है। यह जानकारी कई सूत्रों ने दी है। इस शिखर सम्मेलन में अधिकारियों के अलावा भारत की तेल कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारी भी हिस्सा ले रहे हैं। लंबे अरसे तक यूएई भारत को कच्चे तेल का प्रमुख आयातक रहा है। लेकिन रूस से कच्चे तेल का अत्यधिक आयात होने के कारण यूएई से खेप में तेजी से गिरावट आई।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 24) के पहले छह महीनों में भारत ने यूएई से 3.2 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था जबकि बीते साल इसी अवधि में 9.35 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था।
इससे भारत के कच्चे तेल प्राप्त करने के शीर्ष 10 स्रोतों में यूएई से कच्चे तेल के आयात में सर्वाधिक 65 फीसदी की गिरावट आई।
दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौता भी लागू किया है। यह मई, 2022 से लागू हुआ। इस समझौते का ध्येय 2030 तक गैर तेल कारोबार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करना है। अधिकारियों के मुताबिक हाइड्रोकार्बन प्रमुख तत्त्व रहेगा और यह द्विपक्षीय खेप में करीब 50 फीसदी है।
प्रमुख रिफाइनरी के अधिकारी ने बताया, ‘हमें आने वाले महीनों में यूएई से कच्चे तेल की अधिक आपूर्ति की उम्मीद है। इस बारे में दुबई में बातचीत जारी है। उन्होंने इंगित किया कि यूएई भी जनवरी की शुरुआत से अपने मुर्बन ग्रेड कच्चे तेल के निर्यात के लिए तैयार है।’
अगस्त में अबूधाबी नैशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) के अधिकारियों ने पहली बार स्थानीय मुद्रा निपटान तंत्र (एलसीएस) का उपयोग कर कच्चे तेल का लेनदेन किया था। इससे लेनदेन की लागत घटने, निपटान में देरी कम होने और व्यापार के पूर्वानुमान में सुधार का अनुमान है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेशन की पार्टियों के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की वार्षिक बैठक को आमतौर पर सीओपी के रूप में जाना जाता है। यह बैठक उस समय हुई है जब देश 2050 तक वैश्विक स्तर पर तापमान बढ़ने को 1.5 डिग्री डिग्री तक सीमित करने के लिए तेल और गैस की वैश्विक मांग को सतत ढंग से घटाने पर बंटे हुए हैं।
भारत डेढ़ साल से अधिक समय तक रूस से कच्चे तेल की प्रमुख खेप प्राप्त करता रहा है लेकिन अब पश्चिम एशिया में अपने पारंपरिक साझेदारों से कच्चे तेल की आपूर्ति को फिर से स्थापित करने के लिए प्रयास कर रहा है। सरकारी तेल विपणन कंपनियों के अधिकारियों ने इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया है और प्रमुख वैश्वकि तेल कंपनियों के साथ मुलाकात की है।
अक्टूबर से रूस से आयात होने वाले कच्चे तेल की गिरकर 33 प्रतिशत पर आ गई। यह इससे एक महीने पहले सिंतबर में भी गिरकर 35 प्रतिशत पर आ गई थी और इससे पहले 42 फीसदी के स्तर पर थी। इसका कारण यह है कि हाल के महीनों में सऊदी अरब और इराक से कच्चे तेल का आयात बढ़ा है।
लंदन में जिंस आकड़ों के विश्लेषण प्रदान करने वाली वोटेक्सा तेल आयात करने वाले पोतों की आवाजाही पर नजर रखती है। इसके अनुसार सऊदी अरब से आयात अक्टूबर में बढ़कर 9,24,000 बैरल प्रतिदिन हो गया जबकि यह बीते महीने 5,23,000 बैरल प्रतिदिन था।
हालांकि रूस से सितंबर में खेप 16.2 लाख बैरल प्रतिदिन था जो अक्टूबर में 8 प्रतिशत गिरकर 15.5 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया। हालांकि अप्रैल से रूस से खरीदा जाना वाला कच्चा तेल दुबई बेंचमार्क पर औसतन प्रति बैरल 8-10 डॉलर की छूट पर मिला है।