इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को चार्ज करने के लिए कंपनियों द्वारा लगाए गए सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों का देश भर में 5 से 25 फीसदी ही इस्तेमाल हो रहा है। इस कारोबार से जुड़ी अग्रणी कंपनियों ने यह जानकारी दी।
वजह यह है कि देश में अभी इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक तौर पर नहीं अपनाया गया है और ज्यादातर ई-वाहन दोपहिया (9 लाख से ज्यादा पंजीकृत दोपहिया) हैं। इनमें से करीब 80 फीसदी वाहन घरों पर ही चार्ज किए जाते हैं।
कुल कारों में से इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी महज 1 फीसदी है। इसके लिए बड़ी संख्या में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन की जरूरत होती है क्योंकि कारों को लंबी दूरी तक चलना होता है। मगर अभी गिनी-चुनी इलेक्ट्रिक कारें ही सड़कों पर नजर आती हैं।
बेन ऐंड कंपनी ने कहा कि देश में अभी करीब 5,000 सार्वजनिक और निजी चार्जिंग स्टेशन हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या काफी कम होने की वजह से चार्जिंग स्टेशनों के लिए कारगर आर्थिक मॉडल अभी सामने नहीं आ पाया है।
गुड़गांव की स्टैटिक चार्जिंग स्टेशन कारोबार की बड़ी कंपनियों में से एक है। इसके 7,000 से ज्यादा चार्जर हैं, जिनमें से 1,000 तेजी से चार्ज करने वाले चार्जर हैं। दिल्ली-एनसीआर तथा उत्तर भारत के अन्य शहरों में इसके सार्वजनिक फास्ट चार्जर का उपयोग काफी कम किया जा रहा है। स्टैटिक के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी अक्षित बंसल ने बताया, ‘चार्जरों का औसत इस्तेमाल करीब 15 फीसदी है। शहर के अंदर यह 15 फीसदी से कम है, लेकिन राजमार्गों पर विकल्प सीमित रहने से इनका 25 फीसदी तक इस्तेमाल हो रहा है।’
स्टैटिक के कारोबारी मॉडल के तहत ज्यादातर चार्जर कंपनियों ने अपने इस्तेमाल के लिए लंबे अरसे के ठेके पर ले लिए हैं। कंपनी ने ब्लूस्मार्ट, उबर जैसी टैक्सी सेवा देने वाली कंपनियों और ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ करार किए हैं। नतीजतन इन चार्जरों का 40 फीसदी तक इस्तेमाल हो रहा है। बंसल ने बताया कि थोक ग्राहकों को चार्जिंग शुल्क में 40 फीसदी तक की छूट दी जाती है। उन्होंने कहा कि करीब दो साल में कंपनी के मुनाफे में आने की उम्मीद है।
बेंगलूरु की इलेक्ट्रिक दोपहिया कंपनी एथर एनर्जी ने भी सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन लगाए हैं ताकि ग्राहकों को चार्जिंग में परेशानी नहीं हो। एथर के प्रवक्ता ने कहा, ‘विभिन्न शहरों में हमारे करीब 950 चार्जर हैं और इस समय इनका 21 फीसदी तक इस्तेमाल हो रहा है। इनमें से अधिकांश सार्वजनिक चार्जर हैं, जिनमें फास्ट चार्जर भी शामिल हैं।’
बैटरी और चार्जर बनाने वाली एक्पोनेंट एनर्जी हल्के वाणिज्यिक वाहनों के लिए 15 मिनट में चार्ज करने वाले चार्जर पर जोर दे रही है। कंपनी इसे ज्यादा फायदेमंद मानती है क्योंकि उन्हें ऐसे वाहनों को चार्ज करने लिए ज्यादा पावर की जरूरत होतरी है। साथ ही कम समय में चार्ज करने वाले चार्जर से अधिक वाहनों को चार्ज किया जा सकता है।
एक्सपोनेंट एनर्जी के संस्थापक अरुण विनायक ने कहा, ‘कुल वाहनों में वाणिज्यिक वाहनों की संख्या 10 फीसदी हैं, लेकिन कुल ईंधन खपत का 70 फीसदी तक पारंपरिक वाहनों में जाता है। इलेक्ट्रिक वाहन के मामले में भी ऐसा हो सकता है।’
सार्वजनिक क्षेत्र की कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज को देश में चार्जिंग के लिए बुनियादा ढांचा तैयार करने में मदद का जिम्मा सौंपा गया है। कंपनी 13 राज्यों में 440 से ज्यादा चार्जर चला रही है, जिनमें केवल 27 धीमी गति से चार्ज करते हैं। कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी महुआ आचार्य ने कहा कि कंपनी के यात्री कार चार्जरों का केवल 5 फीसदी इस्तेमाल हो रहा है। कंपनी दोपहिया वाहनों पर ध्यान नहीं देती है क्योंकि इन्हें ज्यादातर घरों पर ही चार्ज किया जाता है। आचार्य के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रति एक चार्जिंग स्टेशन पर रोजाना औसतन 9 वाहन आते हैं। दिल्ली में औसतन 8, हरियाणा में 4 और तमिलनाडु में 1.9 वाहन आते हैं।
ओला इलेक्ट्रिक के प्रवक्ता ने कहा कि घर पर चार्जिंग का विकल्प ग्राहकों को रास आ रहा है और करीब 80 फीसदी चार्जिंग उसी से हो रही है। उन्होंने कहा कि बाजार में ई-वाहनों की संख्या बढ़ने पर हाइपर चार्जर का इस्तेमाल तेजी से बढ़ेगा। ओला साल के अंत तक 1,000 हाइपर चार्जर लगाएगी। अभी इनकी संख्या करीब 50 है।