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लेखक : शेखर गुप्ता

आज का अखबार, लेख

नेल्ली नरसंहार की याद दिलाने वाला पखवाड़ा

असम में दशकों पहले जो हुआ, उसके बारे में हम आज क्यों लिख रहे हैं? वह भी इस नियमित स्तंभ में दो आलेखों की श्रृंखला के रूप में? अपने अनुभव और दूसरे मसौदे की शैली में यदाकदा लिखने की शुरुआत मैंने 2013 के मध्य में सुजीत सरकार की फिल्म मद्रास कैफे से प्रेरित होकर की […]

आज का अखबार, लेख

भारतीय पूंजीवाद के लिए परीक्षा की अहम घड़ी

इस सप्ताह का हमारा आलेख गौतम अदाणी के बारे में नहीं है। यह भारतीय पूंजीवाद के बारे में है। यह अवसर आजाद भारत के इतिहास में भारतीय पूंजीवाद की सबसे कठिन परीक्षा की घड़ी है। ब​ल्कि कहें तो सन 1991 के बाद यह पहला मौका है जब उसे इतनी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ रहा […]

आज का अखबार, लेख

मु​स्लिमों की सियासी और सामाजिक वापसी

इस सप्ताह के स्तंभ का शीर्षक शाहरुख खान की फिल्म पठान की सफलता से प्रेरित नहीं है, हालांकि वह एक अहम कारक है। हम सभी मनोरंजक सिनेमा अ​धिक पसंद करते हैं, वैसे ही पहले हम राजनीति पर नजर डालते हैं। पहले यहीं से कुछ संकेत लेते हैं। सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह लीक […]

आज का अखबार, लेख

पाकिस्तान का मसला उसी पर छोड़ देना बेहतर

पिछले सप्ताह पाकिस्तान वह करने में सफल रहा जिसमें उसे कुछ समय से नाकामी हाथ लग रही थी। वह सकारात्मक और शांतिपूर्ण इरादों का प्रदर्शन करके भारत में सुर्खियां जुटाने में कामयाब रहा। इसका कारण क्या है? इसको तीन तरह से व्याख्यायित किया जा सकता है। इसके साथ ही हम उन तीन दलीलों पर भी […]

आज का अखबार, लेख

RSS, सत्ता और छिपी हुई कठिनाइयां

संघ इस समय ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक ताकतवर स्थिति में है। इसके साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि वह कभी इतना अधिक कमजोर नहीं रहा। यह विरोधाभास कैसे दूर होगा? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख जिन्हें सरसंघचालक भी कहा जाता है, उनकी जीवनशैली ऐसी है कि वे सार्वजनिक रूप से […]

आज का अखबार, लेख

भारत के समक्ष रणनीतिक गुंजाइश और आत्मसंशय

इस वर्ष में भारत की बाह्य सुरक्षा के हालात पर एक व्यापक नजर डालें तो आप दो सहज लेकिन विरोधाभासी चयनों में से एक कर सकते हैं। पहला-अगर आप आशावादी और/अथवा मोदी समर्थक हैं तो आपको लग सकता है कि हालात कभी इतने सहज सामान्य नहीं थे। चीन के साथ सीमा पर दीर्घकालिक लेकिन ​स्थिर […]

आज का अखबार, लेख

रॉय दंपती, एनडीटीवी और समाचार कक्ष की गरिमा

बीते वर्ष की सबसे बड़ी खबर रही प्रणव रॉय और रा​धिका रॉय का एनडीटीवी का स्वामित्व छोड़ना और अदाणी समूह का इसका नया मालिक बनना। रॉय दंपती ने समूह से विदा लेते हुए जो ग​रिमामय पत्र लिखा है वह उनकी प​त्रकारिता के बारे में काफी कुछ बताता है। टेली​विजन समाचारों की आपाधापी वाली दुनिया में […]

आज का अखबार, लेख

आखिर राहुल गांधी क्या चाहते हैं?

क्या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जो 107 दिनों के सफर के बाद दिल्ली पहुंची, वह एक राजनीतिक कदम के रूप में बुरी तरह नाकाम रही है? या इसने उनकी पार्टी के लिए अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न किया है। लाल सिंह चड्ढा नुमा (फॉरेस्ट गम्प से माफी सहित) से क्या गांधी ने खुद को एक […]

आज का अखबार, लेख

जमीनी नहीं मनोवै​ज्ञानिक
कब्जे की फिराक में चीन

चीन के साथ विवाद का विषय जमीन नहीं है। लेकिन दुख की बात है कि भारत को बड़ी राजनीतिक, सामरिक और भूराजनीतिक बहस की जरूरत है, हमारा मौजूदा लोकतंत्र उसके लिए तैयार नहीं है।

लेख

विचारधारा पर भारी है मोदी का कद और उनकी छवि

चुनावों का एक और दौर समाप्त हो चुका है और हम भविष्य का अनुमान लगाने का प्रयास कर सकते हैं। शुरुआत उस सवाल से करते हैं जो हमने 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के तीन महीने बाद उठाया था: क्या आपने कोई ऐसा राजनेता देखा है जिसका मुखौटा उसके चेहरे […]

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