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अफीम, रम और ड्रोन खिलौनों को मिलेगा अलग कोड, सरकार कर रही वर्गीकरण में बड़ा बदलाव

व्हिस्की, ब्रांडी, रम, वोदका और स्पार्कलिंग वाइन के निर्माण को जल्द ही अलग आर्थिक गतिविधि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

Last Updated- September 04, 2025 | 9:58 AM IST
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सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (मोस्पी) राष्ट्रीय औद्योगिक वर्गीकरण (एनआईसी) संहिता में संशोधन की तैयारी कर रहा है। इसके तहत देश में अश्वगंधा, अफीम, इसबगोल, कटहल और मूली जैसी फसलों की खेती के साथ व्हिस्की, ब्रांडी, रम, वोदका और स्पार्कलिंग वाइन के निर्माण को जल्द ही अलग आर्थिक गतिविधि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

इस सप्ताह की शुरुआत में सांख्यिकी मंत्रालय ने साझा किए गए एक मसौदा दस्तावेज पर सरकारी एजेंसियों, उद्योग प्रतिनिधियों, शैक्षणिक संस्थानों और आम जनता सहित सभी हिस्सेदारों से टिप्पणियां और सुझाव आमंत्रित किए गए।

मसौदा दस्तावेज आर्थिक गतिविधियों की संहिता में संशोधन का खाका है, जिसमें पहले की व्यापक आर्थिक श्रेणियों को वर्गीकृत किया गया है। इससे नीति निर्माताओं को आर्थिक गतिविधियों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी और देश की आर्थिक गतिविधियों की व्यापक तस्वीर कोने के कारण वे इस दिशा में उठाए गए कदमों की बेहतर डिजाइन तैयार कर सकेंगे।

अलग कोड के तहत नवीनतम मसौदे में शामिल की गई अन्य आर्थिक गतिविधियों में ड्रोन खिलौनों का विनिर्माण, कैलियोप्स, ट्यूनिंग फोर्क्स आदि जैसे संगीत वाद्य उपकरण शामिल हैं। डिजिटल ट्यूटरिंग, नौकरी पाने संबंधी परीक्षाओं के लिए कोचिंग कक्षाएं, स्मार्टफोन, टैबलेट आदि की मरम्मत जैसी गतिविधियों को भी एक अलग कोड दिया जा रहा है।

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राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के पूर्व कार्यकारी चेयरमैन पीसी मोहनन का कहना है कि इस कवायद से देश में नए उभरते उद्योगों व सेवाओं और पिछले एक दशक में हुए ढांचागत बदलावों के कारण आर्थिक गतिविधियों की बदलती प्रकृति को बेहतर ढंग से शामिल करने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा, ‘ये कोड विभिन्न डोमेन में उपयोग किए जाने वाले एक बुनियादी टूल के रूप में काम करते हैं। इनमें उद्योगों के सालाना सर्वे, कंपनी मामलों के विभाग के डेटाबेस, अनौपचारिक क्षेत्र के सर्वे, आर्थिक सेंसस, आर्थिक शोध, पंजीकरण प्रक्रिया और केंद्र व राज्यों की एजेंसियों द्वारा किए जाने वाले नीति निर्माण के साथ निजी क्षेत्र के हिस्सेदारों के सांख्यिकी सर्वे में इसका इस्तेमाल शामिल है। ये कोड नैशनल अकाउंट्स डेटा की गणना के लिए भी आधार प्रदान करते हैं।’

एनआईसी आमतौर पर एक 5 अंकों की संख्या होती है। यह किसी खास कारोबारी गतिविधियों की जानकारी देती है। इसमें प्रत्येक अंक या अक समूह से किसी विशेष क्षेत्र या उपक्षेत्र का पता चलता है। आखिरी बार 2008 में इसमें संशोधन किया गया था। देश में आर्थिक गतिविधियों का इस तरह का पहला वर्गीकरण 1962 में किया गया। उसके बाद 1970, 1987, 1998 और 2004 में वर्गीकरण किया गया।

पहल इंडिया फाउंडेशन के डिस्टिंग्विश्ड फेलो आशीष कुमार का कहना है कि मौजूदा कवायद में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पहले के कोड और नए कोड के बीच तालमेल हो, क्योंकि ऐसा न होने पर विश्लेषण करते समय आर्थिक गतिविधियों का मिलान करने में कठिनाई होती है।

First Published - September 4, 2025 | 9:48 AM IST

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