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बजट से पहले बढ़ी हलचल – उद्योग जगत ने सरकार के सामने रखीं ये बड़ी मांगे

उद्योग निकायों ने एक स्वर में मौजूदा विवादों को सुलझाने के अलावा नए विवादों को रोकने के उपाय करने का अनुरोध किया है।

Last Updated- November 03, 2025 | 9:12 AM IST
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प्रमुख औद्योगिक निकायों ने केंद्रीय बजट 2026-27 के मद्देनजर सामान्य कर प्रस्ताव पेश किया है। इसमें सरल अनुपालन आवश्यकताओं और कर विवादों के त्वरित समाधान की मांग की गई है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की), एसोसिएटिड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) और पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) ने आयकर अपीलों की वैधानिक समयसीमा और फेसलेस अपील प्रणाली बेहतर करने की सिफारिश की है।

इन चैम्बर्स के अनुसार आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष 5.4 लाख करोड़ से अधिक लंबित अपील हैं और इनमें कर की मांग 18 लाख करोड़ से अधिक की हैं। उन्होंने कहा कि इस देरी से पूंजी अटकी हुई है और इससे कारोबार पर असर पड़ रहा है। सुझाव दिए गए उपायों में उच्च मूल्य वाले मामलों को प्राथमिकता देना, जहां आवश्यक हो वहां वर्चुअल सुनवाई की अनुमति देना और तथ्यात्मक त्रुटियों को सुधारने के लिए मसौदा आदेशों को साझा करना शामिल हैं।

प्रमुख सिफारिश स्रोत पर कर कटौती को युक्तिसंगत बनाना है। अभी टीडीएस की 35 से अधिक दरें हैं और उद्योग निकाय ने इन्हें घटाकर दो से तीन स्लैब में करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने नकदी प्रवाह के दबाव और अनुपालन बोझ को कम करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)-पंजीकृत संस्थाओं के बीच लेनदेन के लिए टीडीएस से छूट की भी मांग की है।

उद्योग निकायों ने एक स्वर में मौजूदा विवादों को सुलझाने के अलावा नए विवादों को रोकने के उपाय करने का अनुरोध किया है। इसमें एक प्रमुख प्रस्ताव आयकर विभाग को कॉरपोरेट विलय और विभाजन के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनएसओ) जैसी आवश्यक मंजूरियां प्रदान करने के लिए वैधानिक समयसीमा प्रदान करना है। पीएचडीसीसीआई ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कर विभाग से ये मंजूरियां प्राप्त करने में देरी के कारण कॉर्पोरेट पुनर्गठन 3 से 6 महीने तक लंबित हो सकता है। इसी प्रकार उन्होंने अपील के दौरान मूल्यांकन अधिकारी द्वारा रिमांड रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए समयबद्ध प्रक्रिया की वकालत की, जो फेसलेस अपील प्रणाली में देरी का प्रमुख कारण है।

उद्योग ने मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 में हाल ही में किए गए प्रत्यक्ष कर संशोधनों पर भी स्पष्टता की मांग की है। दरअसल, उद्योग को डर है कि ये मुद्दे नए 2025 के नियम में भी बने रहेंगे। प्रमुख चिंताओं में 2024 में लागू किया गया – वह नियम शामिल है जो शेयर बायबैक को लाभांश आय मानता है, लेकिन शेयरधारकों को अपनी अधिग्रहण लागत घटाने की अनुमति नहीं देता। इन चिताओं में कॉर्पोरेट विलय और विभाजन के दौरान न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) क्रेडिट को आगे ले जाने को लेकर लंबे समय से चली आ रही अस्पष्टता भी शामिल है। फिक्की और पीएचडीसीसीआई ने मुकदमेबाजी को सीमित करने के लिए नए आयकर अधिनियम, 2025 के तहत ‘संबद्ध उद्यम’ की पुरानी परिभाषा को बहाल करने की सिफारिश की है।

पीएचडीसीसीआई ने अप्रत्यक्ष करों के तहत जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट को आसान बनाने और पूर्वव्यापी छूट अधिसूचनाओं से पहले चुकाए गए करों के लिए रिफंड प्रणाली शुरू करने का सुझाव दिया। सीआईआई ने 2028 तक एक डिजिटल ‘कागज-मुक्त सीमा शुल्क’ प्रणाली और पुराने सीमा शुल्क विवादों के लिए एकमुश्त निपटान योजना का प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा सीआईआई ने कर प्रशासन में समयबद्ध सेवाओं, पारदर्शिता और जवाबदेही की गारंटी के लिए वैधानिक करदाता अधिकार चार्टर की मांग की है।

सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजित बनर्जी के अनुसार ये प्रस्ताव करों में कटौती के बारे में नहीं बल्कि टकराव को कम करने के बारे में हैं। बनर्जी ने कहा, ‘करदाताओं के लिए पूर्वानुमान, गति और सम्मान सुनिश्चित करके, सरकार उच्च-विकासशील, नियम-आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत कर सकती है और कर नीति को विकसित भारत 2047 का सच्चा नेतृत्वकर्ता बना सकती है।’

First Published - November 3, 2025 | 9:12 AM IST

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