भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की नई रिपोर्ट का कहना है कि अब भारत को लंबे समय की गोल्ड पॉलिसी बनानी चाहिए। रिपोर्ट बताती है कि सोना अब सिर्फ गहने या निवेश की चीज नहीं रहा, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था, रिजर्व और अंतरराष्ट्रीय ताकत का भी जरूरी हिस्सा बन गया है।
1930 के दशक में दुनिया में गोल्ड स्टैंडर्ड व्यवस्था थी, यानी डॉलर की कीमत सोने से तय होती थी। लेकिन 1974 में अमेरिका ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया, जिसके बाद सोना निवेश का बड़ा जरिया बन गया। फिर 2000 के दशक में चीन और भारत ने अपने सोने के भंडार बढ़ाने शुरू किए। भारत ने साल 2009 में IMF से 6.7 अरब डॉलर का सोना खरीदा, और तब से अब तक यह नीति जारी है।
1978 से अब तक कई समितियां बनीं, जैसे – डॉ. आई.जी. पटेल, डॉ. सी. रंगराजन और के.यू.बी. राव की कमेटी। लेकिन ज्यादातर रिपोर्टों का मकसद था कि लोग सोना खरीदने या रखने की बजाय दूसरे निवेश साधनों की ओर जाएं।
साल 2015 में सरकार ने तीन बड़ी योजनाएं शुरू कीं
लेकिन अब SBI की रिपोर्ट कहती है कि ये कदम काफी नहीं हैं। देश को अब एक मजबूत और लंबी अवधि की गोल्ड नीति चाहिए, जो सोने को अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बनाए।
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने सोने को अपनी आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय ताकत की रणनीति का हिस्सा बना लिया है। उसने सोना खरीदने-बेचने की नई व्यवस्था, बड़े गोल्ड वॉल्ट (भंडारण केंद्र) और ट्रेडिंग सिस्टम तैयार किए हैं, ताकि डॉलर की पकड़ को कमजोर किया जा सके। रिपोर्ट कहती है कि भारत के पास भी यह बड़ा मौका है। वह चाहे तो सोने को अपनी आर्थिक सुरक्षा और नीति का मजबूत कवच बना सकता है।
साल 2024 में भारत की कुल सोने की मांग 802.8 टन रही, जो दुनिया की कुल मांग का करीब 26% है। इस तरह भारत, चीन (815 टन) के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना खरीदने वाला देश है। लेकिन 2025 की तीसरी तिमाही में सोने के दाम बहुत बढ़ने से मांग में गिरावट आई। कुल मांग 16% घटी, और गहनों की खरीद 31% तक कम हुई। भारत में सोने की खनन (माइनिंग) बहुत सीमित है, इसलिए देश को कुल सोने का 86% हिस्सा आयात करना पड़ता है।
वित्त वर्ष 2026 (अप्रैल–सितंबर) में भारत ने $26.5 अरब डॉलर का सोना आयात किया, जो पिछले साल से 9% कम है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ओडिशा, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में नए सोने के भंडार मिले हैं, जो आगे चलकर देश की आयात निर्भरता कम करने में मदद कर सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास अब लगभग 880 टन सोना है। यह देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का करीब 15.2% हिस्सा बन चुका है, जबकि FY24 में यह सिर्फ 9% था। अब RBI की नीति है कि ज्यादा से ज्यादा सोना देश के अंदर ही सुरक्षित रखा जाए, ताकि किसी अंतरराष्ट्रीय संकट या प्रतिबंध की स्थिति में जोखिम कम किया जा सके।
रिपोर्ट के मुताबिक, गोल्ड ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) में निवेश में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2026 (अप्रैल से सितंबर) के बीच इसमें निवेश 2.6 गुना बढ़ गया। सितंबर 2025 तक गोल्ड ETF का कुल निवेश मूल्य (AUM) बढ़कर ₹90,136 करोड़ पहुंच गया है। इतना ही नहीं, अब पेंशन फंड में भी सोने को निवेश के विकल्प के रूप में शामिल करने पर विचार चल रहा है।
रिपोर्ट बताती है कि नवंबर 2015 से फरवरी 2024 तक सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) की 67 किस्तें (ट्रेंच) जारी कीं। अक्टूबर 2025 तक इन बांड्स के तहत कुल 125 टन सोना बकाया है। लेकिन अब जब सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं, तो सरकार को इन बांड्स पर करीब ₹93,284 करोड़ का नुकसान हो सकता है। यानी, सोने की बढ़ती कीमतें आम निवेशक के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही हैं।
SBI रिसर्च के अनुसार, सोने की कीमतों और रुपये (USD/INR) के बीच 0.73 का गहरा संबंध है। इसका मतलब है कि जब सोने के दाम बढ़ते हैं, तो रुपया कमजोर होता है। रिपोर्ट का अनुमान है कि अगर 2025 के बाकी महीनों में सोने की कीमत लगभग $4000 प्रति औंस बनी रहती है, तो भारत के चालू खाते के घाटे (CAD) पर करीब 0.3% GDP तक का असर पड़ सकता है। फिर भी, SBI का कहना है कि FY26 में कुल CAD 1% से 1.1% GDP के बीच रहेगा, जिसे “आरामदेह स्तर” माना जा सकता है। यानी, सोने की ऊंची कीमतें थोड़ी परेशानी जरूर बढ़ा सकती हैं, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति अभी भी स्थिर मानी जा रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सोना हर समय महंगाई से बचाने वाला साधन नहीं होता। कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में पाया गया है कि लंबे समय में सोना हमेशा महंगाई का असर नहीं रोक पाता, लेकिन कम अवधि में, खासकर भारत और अमेरिका जैसे देशों में, यह थोड़ी सुरक्षा जरूर देता है। हाल के कुछ सालों में सोने का रिटर्न Sensex से भी ज्यादा रहा है, जिससे निवेशकों का भरोसा और बढ़ गया है। अब लोग इसे सुरक्षित और फायदेमंद निवेश के रूप में देख रहे हैं।
अब वक्त आ गया है कि भारत यह साफ तय करे कि सोना आखिर “सामान” है या “पैसा”। क्योंकि सोना सिर्फ गहना नहीं, बल्कि निवेश, सुरक्षा और परंपरा – तीनों का मिला-जुला रूप है। इसीलिए SBI रिसर्च का कहना है कि अब भारत को एक राष्ट्रीय गोल्ड पॉलिसी लानी चाहिए, जो सोने की खुदाई (खनन), खरीद-बिक्री (ट्रेडिंग), दोबारा इस्तेमाल (रीसाइक्लिंग) और वित्तीय योजनाओं व सामाजिक सुरक्षा – सबको एक साथ जोड़ सके।