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Opinion: भारत की आर्थिक गति और उससे जुड़े लाभ

भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था है जिसने यह विश्वसनीयता अर्जित की है कि वह दीर्घकालिक वित्तीय प्रतिबद्धताओं को निभा सकता है।

Last Updated- August 09, 2023 | 10:53 PM IST

आर्थिक परिस्थितियों की बात करें तो बढ़ते अवसरों के साथ कमियों को दूर करना भी महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं श्याम पोनप्पा

इस समय परिस्थितियां पूरी तरह अनुकूल तो नहीं हैं लेकिन हमारे पास एक जटिल अर्थव्यवस्था की गति मौजूद है जो हमारी, हमारी सुविधाओं और प्रक्रियाओं तथा सीमाओं और प्रतिबंधों के बावजूद वृद्धि हासिल कर रही है। अगर हम कल्पना करें कि कई भारतीयों को सही जीवन स्तर दिलाने के लिए क्या कुछ करने की आवश्यकता है तो हमें एक लंबी ऊंची राह दिखाई दे सकती है।

बहरहाल, तार्किक वृद्धि और फैब प्लांट, ड्रोन, जेट इंजन आदि के क्षेत्र में असीम अवसर हैं। यहां कोशिश नकारात्मक पहलुओं को दरकिनार करने की नहीं है, खासकर वंचितों, अवसरों की कमी से जूझ रहे और शिक्षा, कौशल तथा उत्पादक कार्यों जैसी जरूरी चीजों तक सीमित पहुंच के मामले में।

जाहिर सी बात है कि काफी कुछ किया जाना है। इस आलेख में हम प्रयास करेंगे कि वहां तक कैसे पहुंचा जाए और सुचारु कामकाज के लिए क्या जरूरी है। इस दौरान बड़ी तादाद में लोगों के लिए क्षमता निर्माण भी करना होगा।

हमारी ताकत यह है कि तमाम बाधाओं के बावजूद आर्थिक वृद्धि की दिशा में हमारे साझा प्रयास कारगर हैं। हमारी यह गति अपने आप में अतिरिक्त वृद्धि को संभव बनाती है, बशर्ते कि हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को समावेशन के साथ जोड़ सकें। यह कई स्तरों पर होना चाहिए क्योंकि कौशल, गतिविधियों और संगठनों के मामलों में लोगों और उपक्रमों की कई परतें हैं।

हमारी व्यापक सेवा जरूरतें ऊर्जा, जल, स्वच्छता, संचार, परिवहन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षण और कौशल आदि के रूप में साझा हैं लेकिन ऐसी भिन्न-भिन्न जरूरतें भी हैं जो अधिक परिष्कृत गतिविधियों के लिए अधिक ऊंचे स्तर की मांग करती हैं। उदाहरण के लिए अस्पतालों में अधिक गहन चिकित्सा कक्ष या ऑपरेशन थिएटर एवं अधिक कर्मचारी, मशीनरी या इलेक्ट्रॉनिक्स में उच्चस्तरीय विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स या शोध।

हमारे पास गति मौजूद है तो कमी किस चीज की है? विनिर्माण का उदाहरण लें तो खराब फिटिंग वाले बिजली के प्लग और सॉकेट। हमारे यहां बनने वाले बिजली के प्लग सॉकेट में सही तरीके से फिट नहीं होते हैं। इस वजह से इनसे काम लेना आसान नहीं होता है और खराब कनेक्शन के कारण आग लगने जैसी घटनाएं होने की आशंका रहती है। तमाम क्षेत्रों में ऐसी ही कमियों को दूर करने की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए शिक्षा और कौशल, प्रक्रियागत अनुशासन तथा गुणवत्ता और समय के लिए मानकों को पूरा करना। हम जुगाड़ से काम चलाने पर गर्व कर सकते हैं लेकिन बेहतर उत्पादों के विनिर्माण के लिए जरूरी है कि न्यूनतम चूक हो। फिर चाहे बात प्लग की हो या जेट इंजन की।

ऐसे सुधारों के लिए दूरदर्शी नेतृत्व तथा उद्देश्यपूर्ण रुख अपनाने की आवश्यकता होती है। साथ ही शिक्षा और प्रशिक्षण में तेज सुधार करने के लिए काफी धन की भी आवश्यकता होती है ताकि ज्यादा तादाद में लोगों को नियुक्त किया जा सके और बेहतर अनुशासन के साथ सभी क्षेत्रों में सभी स्तरों पर गुणवत्ता और मानकों का ध्यान रखा जा सके।

इसके लिए देशव्यापी स्तर पर शिक्षा और सीखने के संबंध में व्यापक विस्तार की आवश्यकता है। जरूरत यह है कि कई क्षेत्रों में गुणवत्ता प्रदर्शन को ढांचागत तरीके से बढ़ावा दिया जाए। ऐसा केवल उच्च पेशेवर स्तरों पर ही नहीं है जहां हमें अनुशासन और उत्कृष्टता की आवश्यकता है।

सामान्य भाषा में कहें तो चीजों को कारगर होना होता है, उन्हें सही ढंग से और सही समय पर अंजाम देना होता है और इसके लिए बहुत शुरुआत से ही काम करना होता है। हमारे नीति निर्माताओं को भी केवल देश की परिसंपत्तियों के प्रबंधन से आगे बढ़ना होगा और रोजगार और वृद्धि को गति देने वाले मार्ग प्रशस्त करने होंगे। इस दौरान लोगों का सतत लाभ ही मानक होना चाहिए।

यह बदलाव तभी व्यवहार्य होगा जबकि हर जगह लोगों को विश्वसनीय ब्रॉडबैंड उपलब्ध हो। इसके साथ ही उपयुक्त पढ़ाई, सामग्री आदि जरूरी होगी जिसमें से काफी अधिक विकसित होना शेष है। इसके साथ ही समर्पित शिक्षकों की आवश्यकता होगी। उच्च कौशल वाले लोगों को ऑनलाइन पहुंच के माध्यम से जोड़ा जा सकता है ताकि अन्य लोग सीख सकें। विनिर्माण और सेवा तथा कृषि क्षेत्र में उत्पादन और रखरखाव के लिए भी ऐसा ही करना होगा।

जरूरी संचार की बात करें तो मसला कंपनियों द्वारा फंड जुटाने का नहीं बल्कि सरकार द्वारा दूरसंचार कंपनियों द्वारा शुल्क चुकाने को लेकर अपना रुख बदलने का है। उसने कंपनियों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्क का पुनर्गठन किया है ताकि निवेश के लिए शुरू से फंड मौजूद रहे।

इसका लक्ष्य नेटवर्क, शिक्षा और कौशल में उच्च निवेश होना चाहिए। इसके लिए धन चाहे जहां से आए। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे प्रशासकों को खुद खड़ी की गई बाधाओं को दूर करना होगा।

उदाहरण के लिए कानून बनाना और सक्रियता से नियमन तैयार करना ताकि ऐसी शर्तों पर स्पेक्ट्रम संसाधन हासिल किए जा सकें जो देश भर में विकास और क्षमता निर्माण की दृष्टि से अहम हों। भारत में स्पेक्ट्रम की कीमत दुनिया में सबसे अधिक है, ऐसे में यहां स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल न करके उसे जाया करना उचित नहीं है।

हमारी क्षमताओं का इस्तेमाल करने के लिए ऐसे कदम आवश्यक हैं। इसके साथ ही हमें आने वाले अवसरों मसलन भारत-अमेरिका साझेदारी आदि का भी लाभ लेना होगा। हमें लॉजिस्टिक्स खासकर रेल और सड़क अधोसंरचना में तेज सुधार करना होगा और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए विनिर्माण तथा शोध एवं विकास क्षमताएं बेहतर करने पर जोर देना होगा।

भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था

हम आवंटित अनुबंधों को सफलता के रूप में गिनते हैं लेकिन इसकी जगह हमें बेहतर सड़कों और रेलवे आदि पर जोर देना होगा जो सुरक्षित और तेज गति से यात्री और मालवहन सुनिश्चित करती है। इसके लिए धन की आवश्यकता होगी।

भारतीय रेल का उदाहरण लीजिए। इसका उच्च बजट समर्थन पटरियों, सिग्नलिंग और सुरक्षा में सुधार के लिए जरूरी बातों की पूर्ति नहीं कर सकेगा। कुशल कर्मचारियों की कमी भी एक बाधा है। हमें उन चीजों से अधिक की जरूरत है जिनकी योजना बनाई गई है। बिना पटरियों का नवीनीकरण और उन्नयन किए वंदे भारत जैसी ट्रेन बस दिखावा बन कर रह जाएगी।

सरकार को धन की व्यवस्था के रचनात्मक तौर तरीके तलाश करने होंगे। उदाहरण के लिए सॉवरिन फंड और भारत में निवेश के इच्छुक अन्य लोगों का चयन जो आकर्षक प्रतिफल दें। इसमें सिंगापुर, नॉर्वे और अबूधाबी के स्रोत तथा कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड के पेंशन फंड शामिल हो सकते हैं। भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था है जिसने यह विश्वसनीयता अर्जित की है कि वह दीर्घकालिक वित्तीय प्रतिबद्धताओं को निभा सकता है।

कार्यकारी निर्णय और सामाजिक अपेक्षाओं और संस्थानों में दीर्घकालिक बदलाव दोनों मामलों में हमें यथासंभव प्रयास करने होंगे।

First Published - August 9, 2023 | 10:53 PM IST

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