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Opinion: शहर, जलवायु परिवर्तन और शहरी बाढ़ पर सवाल

दुनियाभर में शहरीकरण न केवल एक वांछित लक्ष्य है बल्कि यह अब एक अपरिहार्य परिणाम में बदलता जा रहा है।

Last Updated- July 24, 2023 | 10:57 PM IST
Yamuna floods

शहरों में बढ़ते खतरों से निपटने के नगर निकाय और सरकार के प्रयासों में सहायता के लिए नागरिकों के नेतृत्व वाली कार्य योजनाओं की भी आवश्यकता है। बता रहे हैं अमित कपूर और विवेक देवरॉय

दुनियाभर में शहरीकरण न केवल एक वांछित लक्ष्य है बल्कि यह अब एक अपरिहार्य परिणाम में बदलता जा रहा है। हालांकि, यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं है बल्कि इसके तार आंतरिक स्तर पर लगातार बदलते हुए, वैश्विक संदर्भों जैसे कि युद्ध, जलवायु परिवर्तन और महामारी से जुड़े हुए हैं।

जैसे-जैसे शहरी क्षेत्रों का आकार और विस्तार क्षेत्र बढ़ता है, इन कारकों की विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के साथ कड़ी जुड़ने से स्थिति और अधिक जटिल और तीव्र हो जाती है। ऐसे में जो परिस्थितियां बनती हैं उसमें नगरपालिका प्रशासन की आजमाइश शुरू हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर भारी बारिश, जलभराव की स्थिति में बदल जाती है और शहरों में बाढ़ आने से सभी प्रशासनिक और आवश्यक सेवाएं ठप पड़ जाती हैं। भारत का शहरी क्षेत्र वास्तव में लगातार बन रही जलभराव की स्थिति से त्रस्त है जिससे शहरी बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। वहीं मूसलाधार और अप्रत्याशित बारिश लगभग हमेशा ही शहरी नगरपालिकाओं की कम तैयारी की पोल खोल देती है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता भी बढ़ी है और ऐसी घटनाएं अब बार-बार हो रही हैं। इसके चलते ही अप्रत्याशित तरीके से वर्षा, गर्मी की तीव्र लहर, बाढ़, तूफान, सूखा और चक्रवात जैसी घटनाओं की तीव्र पुनरावृत्ति देखी जा रही है। इसका परिणाम शहरों में भोजन, पानी और ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में नजर आ रहा है।

यह एशिया के लिए भी विशेष रूप से सच है, जहां तटीय शहर ऐसी आपदाओं की चपेट में सबसे अधिक आते हैं। इसके चलते ही तटीय तथा समुद्री पर्यावरण, कृषि और पशुधन से जुड़े क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।

अप्रत्याशित और अचानक दिखने वाली जलवायु घटनाएं, विकसित और विकासशील दोनों ही देशों को प्रभावित करती हैं लेकिन विकासशील देशों में इसको लेकर काफी संवेदनशीलता और गंभीरता है। कई शहरों ने अतीत में भी प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं का अनुभव किया है, जिसके चलते हजारों निवासी या तो मलबे के नीचे दब गए हैं या बह गए हैं। अगर महानगरीय आपदाओं की बात करें तो इसके कारण होने वाले वित्तीय तनाव भी कई परेशानियां खड़ी करते हैं।

महानगरीय क्षेत्रों में औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधि काफी बढ़ने से ही शहर आज समाज को सशक्त बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लायक हुए हैं। जब भी किसी शहरी क्षेत्र में कोई आपदा देखी जाती है तब हर बार आसपास के क्षेत्र में व्यापक तरीके से लोगों के हताहत होने की घटनाओं के साथ-साथ अन्य नकारात्मक प्रभावों का अनुभव किया जाता है। इससे शहर का बजट, विकास और वृद्धि की दिशा में खर्च होने के बजाय प्रारंभिक राहत कार्यों और आपातकालीन प्रतिक्रिया में खर्च हो जाता है।

किसी भी क्षेत्र के लिए परिवहन तथा गतिशीलता विशेष रूप से सबसे बुनियादी कार्य में शामिल होती है लेकिन जब आर्थिक गतिविधियों की बात आती है तब यही सबसे महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं। इसमें व्यवधान आने से किसी भी सामाजिक-आर्थिक तंत्र के ध्वस्त होने का कारण बनने की क्षमता भी बन जाती है। साल-दर-साल, हमारे शहर बदलते मौसम की परिस्थितियों के सामने नतमस्तक दिखते हैं जो हमारे समय, धन, संसाधन और अक्सर जीवन के लिए काफी महंगी साबित होती है।

इसके अलावा हम अगर शहरी जल निकासी प्रणाली की बात करें तो अक्सर बड़ी मात्रा में शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले दूषित कचरे के प्रवाह की वजह से यह प्रणाली विफलता का शिकार हो जाती है। ऐसे हालात में बेहद मध्यम स्तर की बारिश भी शहरी जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित करने और निचले इलाकों में अचानक बाढ़ लाने की क्षमता रखती है। विकास के इंजन के रूप में देखे जाने वाले शहर भी सीधे तौर पर प्राकृतिक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचाते हैं और पूरी प्राकृतिक व्यवस्था को बाधित करते हैं।

एशिया के कई तटीय शहर अमूमन शहरी और तटीय स्तर की बाढ़, दोनों के लिहाज से बेहद अतिसंवेदनशील हैं जबकि सुदूर इलाके के शहरों में अचानक बाढ़ आने का, नदी की बाढ़ या शहरी बाढ़, से खतरा होता है। शहरी बाढ़ की स्थिति ज्यादातर मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले अतिक्रमण, अपर्याप्त बाढ़ प्रबंधन, बाढ़ की प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की कमी और विकासशील देशों में जल निकासी प्रणालियों में ठोस कचरे के प्रवाह के चलते बनती है।

इसके अलावा, बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद वास्तव में अनियोजित शहरी विकास ही विकासशील देशों के शहरों की विशेषता बन गई है। गरीबों को जोखिम भरे क्षेत्रों में गैरकानूनी तरीके से खतरे वाली जमीन पर आवास बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। व्यावहारिक रूप से हर बड़े शहरों में अक्सर ऐसा होता है जब वहां के निवासी बार-बार बाढ़ वाले क्षेत्रों का अतिक्रमण करते हैं। इन जगहों पर नहरें संकीर्ण हो जाती हैं जिससे इनकी प्रवाह की क्षमता भी कम हो जाती है। ये महानगरीय क्षेत्रों में गंभीर बाढ़ की स्थिति से नुकसान पहुंचने के कुछ मुख्य कारण हैं।

इस स्थिति का समाधान निकालना एक बहु-आयामी दृष्टिकोण पर निर्भर करता है जो नगरपालिका के तंत्र को अधिक कुशल बनाने और जलवायु परिवर्तन की समस्या की दिशा में पूरी सक्षमता से कार्रवाई करने के साथ ही पर्याप्त पूंजी से लैस हो। उदाहरण के तौर पर शहरी नियोजन और वास्तुकला अगर ऊर्जा की बचत के लिहाज से तैयार की गई है तब इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक जलवायु परिवर्तन का खतरा भी कम हो सकता है और तूफान तथा बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

कई शहरों ने लचीलापन बढ़ाने और ‘100 रिजिलिएंट सिटीज और ‘ग्लोबल कोवेनैंट ऑफ मेयर्स’ जैसी बहुपक्षीय एकजुटता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के हिसाब से कदम उठाने की कोशिश की है। हालांकि इसके साथ-साथ नागरिक-नेतृत्व वाली कार्ययोजनाओं का होना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जो किसी शहर की नगरपालिका के लिए मददगार साबित हो सकते हैं।

सफलता केवल वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तरों पर एक समन्वय वाली रणनीति और प्रयास से हासिल की जा सकती है। ऐसे में शहरों को जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक बनाना अनिवार्य है।

औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिए उत्पादन के स्वच्छ तरीकों, अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के साथ-साथ कानून या प्रोत्साहन तरीकों का उपयोग करते हुए कई समुदाय पहले से ही इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहे हैं। उत्सर्जन को कम करने से स्थानीय औद्योगिक और परिवहन प्रदूषण भी कम हो सकता है और शहरों में हवा की गुणवत्ता के साथ वहां रहने वालों के स्वास्थ्य में भी सुधार हो सकता है।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस, इंडिया के अध्यक्ष और यूएसएटीएमसी, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के व्याख्याता हैं। देवरॉय भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं)

First Published - July 24, 2023 | 10:57 PM IST

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