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कराधान प्रणाली में सुधार की दरकार

जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की शुरुआत के बाद से ही उत्पाद शुल्क दरों को उसकी प्रत्यक्ष निगरानी से परे कर दिया गया था।

Last Updated- July 13, 2023 | 10:36 PM IST
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विप्रेषण पर टीसीएस दरों को वापस लिया जाना यह बताता है कि कर संग्रहकर्ताओं की मानसिकता अभी भी आ​र्थिक सुधारों से पहले वाली है। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

गत 28 जून को सरकार ने उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) तथा विदेशी टूर पैकेज के मामले में स्रोत पर कर कटौती (TCS) की व्यवस्था में एक और परिवर्तन की घोषणा की। फरवरी 2023 से यह इस क्षेत्र में तीसरा बड़ा बदलाव है।

पहले परिवर्तन की घोषणा 1 फरवरी, 2023 को की गई थी जब 2023-24 का बजट पेश किया गया था। उसके मुताबिक एलआरएस के अधीन विदेश में धन विप्रेषण पर लगने वाले टीसीएस को सक्रिय करने की सात लाख रुपये की सीमा को 1 जुलाई, 2023 से समाप्त किया जाना था।

दूसरे शब्दों में सभी एलआरएस विप्रेषण पर टीसीएस लागू किया जाना था। टीसीएस की दरों को भी एलआरएस के तहत होने वाले विप्रेषण तथा विदेशी टूर पैकेज की खरीद दोनों मामलों में 5 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाना था।

साढ़े तीन महीने बाद वित्त मंत्रालय ने एलआरएस के तहत टीसीएस व्यवस्था को और सख्त बना दिया। उसने 16 मई को चालू खाते के लेनदेन के नियमों को संशोधित किया ताकि एलआरएस के अधीन क्रेडिट कार्ड तथा अन्य तरीकों से किए जाने वाले लेनदेन में अंतर समाप्त किया जा सके।

प्रभावी तौर पर इसका अर्थ यह था कि विदेशी मुद्रा वाले बिलों के भुगतान के लिए किया जाने वाला क्रेडिट कार्ड भुगतान भी एलआरएस मानकों के अधीन आने वाला था। इसलिए 1 जुलाई, 2023 से उस पर भी 20 फीसदी की दर से टीसीएस लगने वाला था।

तीसरे बदलाव की घोषणा 28 जून को की गई। सरकार के मुताबिक यह उन टिप्पणियों और सुझावों पर आधारित था जो उसे बजट और 16 मई को घो​षित निर्णयों के संदर्भ में प्राप्त हुए थे।

प्रभावी ढंग से देखा जाए तो तीसरा बदलाव दरअसल पुराने निर्णयों से पीछे हटना था। इस निर्णय के मुताबिक एलआरएस तथा विदेशों के टूर से संबं​धित हर प्रकार के विप्रेषण पर टीसीएस की दर को सात लाख रुपये तक सालाना प्रतिव्यक्ति शून्य कर दिया गया। इस दौरान भुगतान के तरीके से कोई मतलब नहीं था।

परंतु सात लाख रुपये की सीमा से परे ​​शिक्षा ऋण को चुकाने के लिए किए गए विप्रेषण पर 0.5 फीसदी की दर से टीसीएस शिक्षा या चिकित्सा के लिए 5 फीसदी और बा​की विप्रेषण के लिए 20 फीसदी की दर से टीसीएस लगाने की बात कही गई। नई दरें 1 अक्टूबर, 2023 से प्रभावी हो जाएंगी।

नियमों में इससे भी बड़ा पलटाव यह था कि 16 मई को घो​षित बदलाव के तहत जहां अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए क्रेडिट कार्ड के जरिये किए जाने वाले भुगतान को एलआरएस के दायरे से बाहर कर​ दिया गया और इस प्रकार इस पर लगने वाला 20 फीसदी टीसीएस भी समाप्त कर दिया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो विदेशों में क्रेडिट कार्ड के माध्यम से होने वाले लेनदेन को एलआरएस से बाहर कर​ दिया गया।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ये निर्णय जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया, उनकी घोषणा या तो बजट में की गई थी या फिर बजट के बाद फॉलोअप के रूप में। बजट के निर्णयों की घोषणा आमतौर पर सरकार के भीतर समुचित समीक्षा के नहीं की जाती है। कई मामलों में तो वित्त मंत्रालय के प्रतिनि​धि भी किसी प्रस्ताव के प्रभाव को लेकर कुछ अंशधारकों के साथ चुपचाप चर्चा करते हैं और उसके बाद ही उनको बजट में शामिल करते हैं।

बजट घोषणा के तुरंत बाद एलआरएस विप्रेषण पर टीसीएस की दर को इस आधार पर उचित ठहराने की को​शिश की गई कि सरकार को ऐसे लेनदेन पर नजर रखने की आवश्यकता है जो कर वंचना करते हों।

आ​खिरकार, विप्रेषण अथवा अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड भुगतान में हमेशा बैंकिंग मार्ग का इस्तेमाल किया जाता है जिससे कर विभाग के पास यह अवसर होता है कि वह कर वंचना पर नजर रख सके और ऐसे संभावित मामलों का पता लगा सके। चाहे जो भी हो अगर टीसीएस का इस्तेमाल ऐसे लेनदेन पर नजर रखने के लिए किया जाना था तो इस दर को 5 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने की जरूरत ही क्या थी? क्या यह एक तरीका था ताकि अं​तरिम रूप से अ​धिक राजस्व जुटाया जा सके क्योंकि रिफंड तो एक वर्ष बाद ही देना होता जब सालाना रिटर्न फाइल किए जाते?

चाहे जो भी हो एलआरएस विप्रेषण पर टीसीएस को वापस लिया जाना इस बात की झलक पेश करता है कि कैसे वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने कर संबंधी पहलों के साथ ऐसे प्रयोग शुरू कर दिए हैं जो करदाताओं के लिए बहुत अनुकूल नहीं हैं। इससे यह संकेत भी निकलता है कि विभाग पुराने तरीके अपना रहा है।

सन 1990 के दशक के आ​र्थिक सुधारों के बाद उसकी भूमिका धीरे-धीरे सीमित होने लगी थी। पहले सन 1990 के दशक में आयात शुल्क में तीव्र कटौती की गई और बाद के वर्षों में उसमें धीरे-धीरे कमी की गई। प्रत्यक्ष कर में कमी और दरों को तार्किक बनाने का अर्थ था राजस्व विभाग की पहले से चली आ रही हस्तक्षेपकारी भूमिका का सिमटना।

जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की शुरुआत के बाद से ही उत्पाद शुल्क दरों को उसकी प्रत्यक्ष निगरानी से परे कर दिया गया था। ऐसे में उसके पास केवल सामान्य कर संग्रह का काम बचा था और उसके पास कोई खास विवेका​धिकार नहीं थे।

प्रत्यक्ष कर के मामलों के आकलन के लिए फेसलेस निगरानी और ऐसे आकलन के लिए जवाबदेही के आवंटन में तकनीक के इस्तेमाल ने करदाताओं की मदद की है। परंतु राजस्व विभाग अपने पुराने अ​धिकार तेजी से गंवा रहा था।

वर्ष 2018 के बजट के बाद वस्तुओं के आयात शुल्क में चुनिंदा इजाफे के बाद चीजें बदल गईं। यह कहा जा सकता है कि राजस्व विभाग ने अपनी प्रासंगिकता दोबारा पाने की को​शिश शुरू कर दी है जो उसे शुल्क दरों में कटौती, जीएसटी की शुरुआत, दरों को तार्किक बनाने और कर आकलन के फेसलेस हो जाने के बाद गंवानी पड़ी थी।

इसी तरह एलआरएस विप्रेषण के लिए टीसीएस में बदलाव सुधार से पहले के दिनों के राजस्व विभाग की झलक पेश करता है। खुशकिस्मती से जिस नुकसान का अनुमान लगाया गया था उसे पहले के निर्णय को वापस लेकर कम कर दिया गया।

परंतु मानसिकता निस्संदेह बदली है और विचारों में यह पुरानापन अच्छा संकेत नहीं देता है। भारत की कर व्यवस्था को एक ऐसी प्रणाली अपनानी होगी जो मनमानेपन से पूरी तरह मुक्त हो, पारदर्शी प्रणाली मुहैया कराए और करदाताओं के लिए हालात सुगम बनाए।

First Published - July 13, 2023 | 10:36 PM IST

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