विदेशी बैंक और निजी क्रेडिट फंड उन भारतीय कंपनियों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहणों के लिए रकम उधार देने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जो अपने स्थानीय प्रतिस्पर्धियों की खरीदारी कर रही हैं।
अदाणी समूह (Adani Group), टॉरंट समूह और हिंदुजा ने अपने अधिग्रहणों के वित्त पोषण के लिए कई विदेशी बैंकों और निजी इक्विटी फर्मों से संपर्क किया है।
जेपी मॉर्गन द्वारा जताए गए अनुमान के अनुसार, वैश्विक निवेशकों के पास दुनियाभर में निवेश करने के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपये का कोष है, जिसमें से 100 से 150 अरब डॉलर भारत के लिए निर्धारित है।
कॉरपोरेट अधिकारियों का कहना है कि अधिग्रहणों के लिए विदेश से पूंजी जुटाने वाली भारतीय कंपनियों के लिए डेट के बजाय इक्विटी से पूंजी जुटाना बेहतर होगा।
एक कॉरपोरेट वित्तीय सलाहकार प्रबाल बनर्जी ने कहा, ‘भले ही उन्हें डेट का विकल्प अपनाना पड़े, लेकिन इक्विटी को प्राथमिकता के साथ हाइब्रिड ढांचा उपयुक्त होगा, जिसमें ब्याज करीब 6 से 8 प्रतिशत तक हो सकता है। सामान्य वैश्विक ऋण पर आरबीआई द्वारा प्रतिबंधों का बोझ है और इसलिए यह उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होगा और महंगा भी होगा, क्योंकि ऊंची फेड दर की वजह से विदेशी मुद्रा कवर ब्याज दर 11-12 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।’
पिछले सप्ताह अदाणी समूह ने नया ऋण लेकर अंबुजा सीमेंट और उसकी सहायक इकाई एसीसी के अधिग्रहण की व्यवस्था के लिए 2022 में लिए गए 3.5 अरब डॉलर के वैश्विक ऋणों को चुकाया।
समूह ने पुनर्वित्त के साथ अपनी वित्तीय लागत में 30 करोड़ डॉलर की बचत की और ऋण की अवधि बढ़ाने में भी उसे मदद मिली है। हिंदुजा समूह भी रिलायंस कैपिटल के अधिग्रहण के लिए 85 करोड़ डॉलर कर्ज जुटा रहा है।
टॉरंट समूह अपनी प्रतिस्पर्धी सिप्ला को खरीदने के लिए 5 अरब डॉलर जुटाने के लिए वैश्विक बैंकों के साथ बातचीत कर रहा है। जेएसडब्ल्यू समूह भी भारत में अधिग्रहणों के लिए बैंकों और निजी इक्विटी फंडों के साथ बातचीत कर रहा है।
भारतीय कंपनियां वैश्विक पूंजी जुटा रही हैं, क्योंकि भारतीय बैंकों को इनके द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहणों के वित्त पोषण की अनुमति नहीं है।
बैंकरों का कहना है कि इस कैलेंडर वर्ष में अब तक भारतीय व्यावसायिक घरानों से लेनदेन में कमी आई है, लेकिन वित्त वर्ष के शेष समय के लिए परिदृश्य काफी बेहतर है।
भारत में विलय एवं अधिग्रहण का वैल्यू कैलेंडर वर्ष 2023 के पहले 9 महीनों में एक साल पहले की तुलना में 69.1 प्रतिशत तक घटकर 50.8 अरब डॅलर रही। बढ़ती ब्याज दरों और भूराजनीतिक अनिश्चितता के बीच निवेशक धारणा सुस्त पड़ने से विलय-अधिग्रहण मूल्य में यह कमजोरी दर्ज की गई है।