साल 2020 में जब कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी थी तब अनिश्चितता के बीच बेंगलूरु के पाटिल दंपती ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में बे एरिया का रुख करने का फैसला किया। अपने दो बच्चों के साथ चार बैग थामे पाटिल दंपती ने जब अमेरिका की उड़ान भरी तो उनके पास कोई चिकित्सा बीमा नहीं था। राधिका पाटिल और उनके पति भरत इंजीनियर हैं, जिनकी तारीफ पांच साल गुजरने के बाद आज सैम ऑल्टमैन जैसे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के महारथी कर रहे हैं।
राधिका और भरत ने क्रैडलवाइज की बुनियाद रखी है। भारत में 2018 में शुरू हुए इस स्टार्टअप की अब दुनिया मुरीद है। यह कंपनी स्मार्ट पालना बनाती है, जो बच्चों की नींद को भांप और परखकर उसी हिसाब से हिलता-डुलता है और बच्चों को सुला देता है। क्रैडलवाइज में ऑटोमैटिक तरीके से बच्चे को नींद दिलाई जाती है, एआई के जरिये नींद को जांचा-परखा जाता है और बेबी मॉनिटर भी होता है।
ओपनएआई के मुख्य कार्य अधिकारी सैम ऑल्टमैन ने इसी 14 अप्रैल को माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स पर इसकी तारीफ करते हुए लिखा, ‘मैं क्रैडलवाइज इस्तेमाल करने की सलाह जरूर दूंगा।’ दंपती को इस कंपनी का ख्याल तब आया, जब उन्होंने देखा कि उनकी बेटी दिन में कई बार आधा-आधा घंटे ही सोती है। मगर उसकी नींद टूटते ही पालना झुलाने लगें तो वह वापस गहरी नींद में चली जाती है और दो घंटे से पहले नहीं उठती।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ वीडियो कॉल पर राधिका ने कहा, ‘यह देखकर हमें ख्याल आया कि बाजार में ऐसा कोई स्मार्ट पालना क्यों नहीं है, जो बच्चों की नींद टूटने का अंदाजा लगा ले और खुद हिलकर उन्हें दोबारा सुला दे। बच्चों के सोने के लिए जरूरी है कि उन्हें सुकून मिले।’
क्रैडलवाइज का पालना पता लगा लेता है कि बच्चा कब जग सकता है और उसमें लगा कैमरा पता लगाता है कि हर मिनट बच्चा कितनी और कैसी सांस ले रहा है। यह जानकारी सेंसरों को भेजी जाती है, जो तय करते हैं कि पालना कितनी देर में या कितनी जोर से झुलाना है। राधिका ने कहा, ‘जानकारी इस्तेमाल कर केवल यह नहीं बताते कि बच्चे को हर रात 10 घंटे सोना है मगर वह 8 घंटे ही सो रहा है। इससे तो मां-बाप और भी परेशान हो जाएंगे।’
कंपनी का कारखाना पुणे के हिंजेवाड़ी में है। भारत में 125 लोग उसके लिए काम करते हैं, जिनमें ठेके पर काम करने वाले भी हैं। बेंगलूरु में स्मार्ट पालने के शुरुआती मॉडल बनाने के बाद पाटिल ऐसे बाजार की तलाश में अमेरिका पहुंच गए, जहां ज्यादा लोग तकनीक को अपनाने और उस पर खर्च करने के लिए तैयार हों।
राधिका ने कहा, ‘भारत में मदद मिल जाती है। दादा-दादी, नाना-नानी होते हैं, भरा-पूरा परिवार होता है और जरूरत पड़ने पर सब आ जाते हैं। हम हमेशा ही वैश्विक ब्रांड बनाना चाहते थे और अमेरिका जैसे बड़े बाजार में शुरुआत करना समझदारी थी।’
क्रैडलवाइज को पेश तो अमेरिका में किया गया मगर दंपती का मकसद भारत लौटना है क्योंकि यहां दुनिया की ऐसी सबसे बड़ी आबादी है, जो समृद्ध हो रही है। कंपनी ने अप्रैल में ही अपना पालना भारत में बेचना शुरू किया है और कीमत पर ज्यादा ध्यान देने वाले ग्राहकों के लिए किफायती पालने भी उतारेगी।
ट्रैक्सन से मिले आंकड़ों के मुताबिक स्टार्टअप ने साल 2021 में फुटवर्क, एलाबैस्टर, बेटर कैपिटल सहित निवेशकों से 70 लाख डॉलर का शुरुआती निवेश हासिल किया था। हार्ड टेक्नॉलजी पर जोर देने वाले प्री स्टेज वेंचर कैपिटल फंड हैक्स ने भी 2019 में क्रैडलवाइज को चुना।
भारत में क्रैडलवाइज एक ही उत्पाद बेच रही है, जिसकी कीमत करीब 1.5 लाख रुपये है। अमेरिका में 2021 में बिक्री शुरू होने के बाद से इसकी कमाई हर साल दोगुनी होती गई है। मगर राधिका ने आंकड़े बताने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘अच्छी चीज की कीमत होती है। हम अमेरिकी मानकों पर खरी उतरने वाली ऐसी सामग्री ही इस्तेमाल करते हैं, जो शिशुओं के लिए सुरक्षित होती है। भारतीय बाजार के लिए हमारे पास अलग किस्म के पैमाने होंगे। ऐसे उत्पादों की जरूरत है, जिन्हें आम लोग बड़े पैमाने पर खरीद पाएं। हम उन्हें बनाएंगे।’