करीब एक-डेढ़ साल से निर्माण भवन में मौजूद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय कोविड से जुड़े सभी मामलों के लिए वॉर रूम बना हुआ है। साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष स्तर के अफसरशाह जैसे राजेश भूषण और लव अग्रवाल, नीति आयोग के सदस्य और अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) के बाल रोग विभाग में नवजात बच्चों से जुड़े मामलों के पूर्व प्रोफेसर वीके पॉल और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में महानिदेशक और एम्स में हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर तथा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (स्वास्थ्य मंत्रालय) में सचिव बलराम भार्गव अपने नियमित संवाददाता सम्मेलन की वजह से कोविड प्रबंधन का प्रमुख चेहरा बन गए हैं।
एम्स के निदेशक और सांस से जुड़ी बीमारी के विशेषज्ञ रणदीप गुलेरिया कई दफा इन संवाद को थोड़ी मजबूती देते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के तहत आने वाला राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) इन व्यस्तताओं के दौरान शायद ही कभी सुर्खियों में रहा हो। ऐसे में यह सवाल भी उठा कि तेजी से फैलने वाली बीमारी और महामारी के नियंत्रण के लिए बना यह अनुसंधान संस्थान कोविड-19 संकट के दौरान केंद्रीय स्तर पर मुख्य भूमिका में क्यों नहीं होना चाहिए।
कोविड से जुड़ी नीति बनाने वाले केंद्र निर्माण भवन से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली के एक प्रमुख स्थान सिविल लाइंस में मौजूद एनसीडीसी की कोविड महामारी के दौरान भूमिका की अक्सर अटलांटा में मौजूद सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) से तुलना की जाती है। अमेरिका के स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग के तहत आने वाली सीडीसी एक राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य एजेंसी है जिसका नेतृत्व रोशेल पी वालेन्स्की कर रहे हैं।
एनसीडीसी के निदेशक सुजीत सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘चीन के वुहान में जब शुरुआती स्तर पर मामले मिले तब हमने कोविड-19 मामले का संज्ञान लिया। वह 2019 साल के आखिरी महीने का वक्त था।’ जानकारी रखने वाले एक अधिकारी के अनुसार कुछ दिनों की निगरानी के बाद, एनसीडीसी ने डीजीएचएस को कोविड के साथ-साथ साफ-सफाई से जुड़े एहतियाती कदमों और विशेष रूप से चीन से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रोकने सहित कई चेतावनी भरे कदमों को लेकर आगाह किया। 4 फरवरी, 2020 को सरकार ने भारत से जुड़ी सभी उड़ानों में ई-वीजा पर चीन से किसी भी यात्री को चढऩे पर प्रतिबंध लगा दिया और तब तक कोविड की वजह से चीन में 400 लोगों की मौत हो चुकी थी। इसके करीब एक महीने बाद 23 मार्च, 2020 को भारत ने सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को निलंबित कर दिया।
जब सिंह से पूछा गया कि जब देश इतने बड़े संकट का सामना कर रहा था तब एनसीडीसी को लेकर कोई चर्चा क्यों नहीं हो रही थी तब इस पर उनका जवाब था, ‘हम चीजों का जायजा ले रहे थे और यह एक लंबे समय तक चलने वाली महामारी है और ऐसे में भूमिका भी बदल सकती है। सिंह के मुताबिक महामारी के दौरान एनसीडीसी असली वॉर रूम है।’ उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य मंत्रालय एक तकनीकी संस्था नहीं है और यह एनसीडीसी के फीडबैक पर काफी हद तक निर्भर है। एनसीडीसी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन है जो रोग नियंत्रण पर ध्यान देता है। वहीं आईसीएमआर एक शोध संगठन है।’ एम्स में कम्युनिटी मेडिसन के प्रोफेसर डॉ आनंद कृष्णन ने कहा, ‘कोविड-19 के दौरान आईसीएमआर को महत्त्वपूर्ण भूमिका देने से सार्वजनिक स्वास्थ्य से ध्यान हट गया।
आईसीएमआर एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन नहीं है, हालांकि कई राज्यों में इसकी उपस्थिति है।’ एनसीडीसी की कई परियोजनाओं के साथ मिलकर काम करने वाले डॉ कृष्णन ने बताया कि अपने मौजूदा रूप में एनसीडीसी शायद महामारी के इस स्तर पर नेतृत्व देने में सक्षम नहीं हो पाई है लेकिन सरकार को इसे केंद्र की क्षमता को मजबूत करने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कोई भी तंत्र किसी भी व्यक्ति से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। हमने इस तंत्र में निवेश नहीं किया है।’
हालांकि कई कमियां और चुनौतियां हैं लेकिन एनसीडीसी को वैश्विक स्वास्थ्यसेवा तंत्र से पूरी तरह से दूर नहीं किया गया है। अमेरिका के सीडीसी के सहयोग से भारत की महामारी खुफि या सेवा (ईआईएस) कार्यक्रम वैश्विक सहयोग की एक मिसाल है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए महामारी विज्ञान सेवा से जुड़े प्रशिक्षण, महामारी की जांच, महामारी विज्ञान के अध्ययन और निगरानी डेटा के मूल्यांकन से जुड़ा है। लेकिन कोविड-19 के विषय पर सीडीसी के साथ कोई सहयोग नहीं किया गया है। संगठन से वाकिफ एक पूर्व सरकारी अधिकारी ने कहा कि एनसीडीसी को मौजूदा महामारी के दौरान आपदा प्रबंधन के लिए एक मजबूत स्तंभ के रूप में नजर आना चाहिए था और इसके कौशल, बुनियादी ढांचे को अद्यतन करने के साथ ही इसके नेतृत्व पर भी ध्यान देना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि पहले ही सरकार ने एनसीडीसी को अहम सहयोग दिया है लेकिन यह एक प्रेरक संगठन के रूप में नहीं तैयार हो पाया है। अधिकारी ने कहा कि दूसरी वजह यह भी है कि डीजीएचएस में अधिकांश महानिदेशक का कार्यकाल छोड़ा होता है जो स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रमुख संगठन जिसे एनसीडीसी रिपोर्ट करता है। उन्होंने कहा, ‘यह भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण है ताकि कोई भ्रम की स्थिति न रहे खासतौर पर तब जब देश को इस तरह की आपात स्थिति का सामना करना पड़ता है। प्रणाली से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए।’
वाराणसी में एनसीडीसी के एक राज्य स्तरीय शाखा अधिकारी ने भूमिकाओं और कार्यों से जुड़ी अस्पष्टता के बारे में बात की। 2020 की शुरुआत में एनसीडीसी के अधिकारियों को कोरोनावायरस के बारे में देर रात जिलाधिकारियों को सूचना देनी होती थी। इसकी वजह यह थी कि वाराणसी में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा था और विदेशों से आने वाले यात्रियों के लिए तुरंत नियमों को लागू करना था।
एनसीडीसी के एक अधिकारी ने बताया, ‘अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के अपने अधिकार हैं। तैयारी पहले ही शुरू करनी पड़ती थी कि जैसा कि शादी में होता है।’ वाराणसी हवाई अड्डे पर कोई स्वास्थ्य संगठन नहीं है, ऐसे में यह जिम्मेदारी भी एनसीडीसी पर आ गई। संक्रमण के मामले पर बढऩे पर एनसीडीसी पर जांच और यात्रियों को अलग रखने की जिम्मेदारी और बढ़ गई।
एनसीडीसी पटना समेत कुछ अन्य शाखाओं के लिए भी यही बात सच थी जिसे नेपाल सीमा के कारण सतर्क रहना पड़ा था। दोनों शहरों में एनसीडीसी के अधिकारियों को यात्रियों की जांच के लिए हवाईअड्डों पर नियम तय करने पड़े हालांकि यह उनका मुख्य कार्य नहीं है। एनसीडीसी के राज्य अधिकारियों का मानना है कि इस महामारी में उनका कम इस्तेमाल किया गया है। एक अधिकारी ने बताया, ‘हमारे पास तकनीकी विशेषज्ञता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर का सहयोग भी मिला है। हमारे पास मजबूत रियल टाइम डेटा भी है। हम महामारी प्रबंधन के विशेषज्ञ हैं। अगर मंत्रालय एनसीडीसी की भूमिका की उपेक्षा करता है तो इसमें देश का नुकसान है।’
दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की महानिदेशक डॉ नूतन मुंडेजा ने कहा कि एनसीडीसी निगरानी के साथ.साथ रोकथामए जांच और जीनोम अनुक्रमण में एक महत्वपूर्ण एजेंसी रही है। उन्होंने कहा, ‘हम उनसे तकनीकी सहायता चाहते हैं।’ राज्य के एक अधिकारी ने बताया कि एनसीडीसी का प्राथमिक काम महामारी के स्तर का अनुमान लगाना है। डेटा के आधार पर बीमारी के स्तरए मौत आदि के साथ ही इसकी शुरुआत और अंत का अंदाजा लगाया जा सकता है। उनका कहना है, ‘हालांकि कोई भी बड़ी तस्वीर के बारे में नहीं जान सकता है। हमारे पास क्षमता है लेकिन संसाधनों का कम उपयोग किया जाता है।’
अमेरिका में सीडीसी जैसे संगठन में व्यापक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के मुकाबले एनसीडीसी की केवल आठ राज्य शाखाएं हैं और इनकी पूरे भारत में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की योजना है। पीजीआईएमईआर में कम्युनिटी मेडिसन ऐंड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के पूर्व प्रमुख डॉ राजेश कुमार के अनुसार एनसीडीसी एक ऐसा संगठन है जिसमें निगरानी और बीमारी की रोकथाम के लिए अच्छी क्षमता है। उन्होंने कहा, ‘यह लगातार सीडीसी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के संपर्क में है।’
एनसीडीसी की शुरुआत 1909 में हुई जब इसकी स्थापना केंद्रीय मलेरिया ब्यूरो के रूप में की गई जिसका मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के कसौली में है। बाद में यह राष्ट्रीय संचारी रोग संस्थान (एनआईसीडी) बन गया और फिर हाल ही में इसका नामकरण एनसीडीसी के रूप में हुआ और इसका मुख्यालय दिल्ली के सिविल लाइंस में 15 एकड़ जमीन पर बना हुआ है।
कोविड-19 के दौरान एनसीडीसी की भूमिका पर टिप्पणी के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के अधिकारियों से संपर्क नहीं हो पाया।