Ganesh Chaturthi 2025: महाराष्ट्र के तमाम शहरों और खास तौर पर मुंबई में आजकल शाम के समय जब दूर से ढोलक की आवाज आती है तो एहसास होता है कि गणेशोत्सव आने वाला है। गणपति के स्वागत के लिए घर-घर में तैयारी हो ही रही है, बाजार में दुकानदार, कंपनियां, राजनीतिक दल और सरकार भी तैयारी में जुट गए हैं। इस बार मूर्तिकारों और गणेशोत्सव मंडलों में ज्यादा उत्साह दिख रहा है क्योंकि प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियों पर काफी समय से चल रहा प्रतिबंध हट गया है।
महाराष्ट्र सरकार ने गणेशोत्सव को राजकीय उत्सव भी घोषित कर दिया है, जिससे इस बार का त्योहार अधिक भव्य होने की उम्मीद है। त्योहार में उत्साह जितना ज्यादा होगा, कारोबार भी उतना ही ज्यादा होगा। 10 दिन चलने वाला गणेशोत्सव इस साल 27 अगस्त से शुरू होगा।
बंबई उच्च न्यायालय ने पीओपी से बनी 6 फुट से ऊंची मूर्तियों का ही विसर्जन समुद्र में करने की इजाजत दी है। 6 फुट तक की मूर्तियां कृत्रिम तालाबों और जल कुंडों में विसर्जित कर दी जाएंगी। महाराष्ट्र सरकार ने अदालत में दलील दी थी कि 6 फुट से ऊंची मूर्तियां समुद्र में विसर्जित करने की इजाजत मिलनी चाहिए क्योंकि पीओपी से बनी मूर्तियों पर रोक मूर्तिकारों की रोजी-रोटी छीन सकती है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने 2024 में 5 फुट तक की लगभग 1.95 लाख मूर्तियों के विसर्जन के लिए 204 कृत्रिम टैंक बनवाए थे। मगर केवल 85,000 मूर्तियों का विसर्जन इन टैंकों में किया गया और बाकी को समुद्र या नदियों में विसर्जित कर दिया गया।
गणेशोत्सव में जितनी आस्था उमड़ती है उतना ही कारोबार भी परवान चढ़ता है। सुंदर मूर्तियों का आकर्षण ही उनके कारोबार को सैकड़ों करोड़ रुपये में पहुंचा देता है। विसर्जन की शर्त नरम करने से इस साल उनका कारोबार 15 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। यह बात अलग है कि पिछले कुछ साल में मिट्टी, पीओपी, कूची और रंग आदि के दाम बढ़ने से मूर्तियों के दाम भी बढ़ गए हैं और इस साल भी मूर्ति पिछले साल से करीब 10 फीसदी महंगी रहेंगी।
मूर्तियां बनाने का कारखाना चला रहे कारोबारी और मूर्तिकार बताते हैं कि मूर्तियों की बुकिंग शुरू हो चुकी है। मुंबई और आसपास के इलाके में 1 फुट की गणेश की मूर्ति 2,000 से 3,000 रुपये के बीच पड़ती है। पिछले साल गणेशोत्सव के दौरान करीब 550 करोड़ रुपये का मूर्तियों का कारोबार हुआ था, जो इस साल 600 करोड़ रुपये के पार पहुंचने की उम्मीद है।
गणेशोत्सव के पहले तो महाराष्ट्र के लगभग हर हिस्से में मूर्तियां बनती है मगर राज्य के कुछ हिस्सों में मूर्तियों के कारखाने साल भर चलते रहते हैं। रायगढ़ जिले की पेण तहसील और इसके आसपास का क्षेत्र गणपति की मूर्तियों का केंद्र माना जाता है। वहां हमरापुर, कलवा, जोहा, तांबडशेत, दादर, रावे, सोनकार, उरनोली, हनमंत पाडा, वडखल, बोरी, शिर्की में गणेशोत्सव के 10 दिन और पितृपक्ष के 15 दिन छोड़कर साल भर घर-घर में 6 इंच से 12 फुट तक ऊंची मूर्तियां बनती रहती हैं। इस क्षेत्र में ऐसी 1,600 इकाइयां हैं, जिनका सालाना कारोबार 250 से 300 करोड़ रुपये का है और साल में 3 से 3.25 करोड़ मूर्तियां बनती हैं। इनमें से करीब 1.25 करोड़ मूर्तियां गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के थोक व्यापारियों के पास जाती हैं, जहां से वे पूरे देश में पहुंचाई जाती हैं। पीओपी प्रतिबंध हटने से खुश यहां के मूर्तिकारों का कहना है कि रोक नहीं हटती तो मूर्ति बनाने वाले 2 लाख परिवार बेरोजगार हो जाते और उनका कारोबार चौपट हो जाता।
भगवान गणेश के स्वागत में मुंबई और पूरे महाराष्ट्र के बाजारों में तैयारियां शुरु हो चुकी है। दस दिन के इस उत्सव में इस साल राज्य में 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार होने की उम्मीद है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के मुताबिक महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और गोवा में गणेशोत्सव के दौरान आर्थिक गतिविधियां बहुत तेज हो जाती हैं। इन राज्यों में करीब 20 लाख गणेश पंडाल लगाए जाते हैं। पिछले साल महाराष्ट्र में ही 7 लाख से अधिक पंडाल लगाए गए थे। इसके बाद कर्नाटक में 5 लाख, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में 2-2 लाख और देश के बाकी हिस्सों में 2 लाख पंडाल थे। हर पंडाल में सजावट पर औसतन केवल 50,000 रुपये का खर्च भी माना जाए तो आंकड़ा 10,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच जाता है। इसमें सेट, सजावट, साउंड सिस्टम, प्रतिमा और फूल आदि शामिल हैं।
गणेशोत्सव देखने के लिए देश-विदेश से लोग महाराष्ट्र पहुंचते हैं, जिससे पर्यटन और परिवहन उद्योग की भी अच्छी कमाई हो जाती है। बड़े पैमाने पर सार्वजनिक आयोजनों से इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों और उस व्यवसाय से जुड़े लोगों का बढ़िया कारोबार हो जाता है। कैट के राष्ट्रीय मंत्री अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि गणपति के इस त्योहार का जितना इंतजार महाराष्ट्र के आम जन को होता है उतना ही कारोबारियों को भी होता है क्योंकि ज्यादातर घरों में गणपति का आगमन होता है और लोग दिल खोलकर खर्च करते हैं। गणपति के पंडाल कंपनियों के लिए प्रचार और लोगों से सीधे संवाद के माध्यम भी होते हैं। इसलिए रिलायंस, टाटा, अदाणी जैसे कॉरपोरेट समूह पंडालों के लिए जमकर दान देते हैं। स्थानीय नेता भी इसमें दिल खोलकर सहयोग करते हैं।
यूं तो भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं मगर उन्हें भी बीमा की जरूरत पड़ती है। मुंबई का गणपति महोत्सव विश्व प्रसिद्ध है और इसमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। कई पंडालों में गणपति की मूर्तियों पर लाखों रुपये के गहने भी चढ़े होते हैं। ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका में गणपति मंडल अपने पंडालों का बीमा भी कराते हैं, जिससे बीमा कंपनियों का खूब कारोबार होता है।
मुंबई के सबसे अमीर माने जाने वाले एक गणपति सेवा मंडल ने पिछले साल अपने पंडाल का 400.58 करोड़ रुपये का बीमा कराया था। प्रसिद्ध लालबागचा राजा ने भी 32.76 करोड़ रुपये का बीमा करवाया था। बीमा कंपनियों को उम्मीद है कि इस साल पंडालों का बीमा 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इसी उम्मीद में कंपनियों ने बड़े पंडालों के आयोजकों के पास चक्कर काटने भी शुरू कर दिए हैं। इस बीमा में आम तौर पर गणपति की मूर्ति पर पहनाए गए जेवरात, भक्तों की सुरक्षा और दूसरे जोखिम शामिल होते हैं।
प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी गणपति की मूर्तियों पर लंबे अरसे से विवाद रहा है और पर्यावरण का ख्याल रखते हुए ऐसी मूर्तियों के विसर्जन पर रोक भी लगी थी। मगर मूर्तिकार कहते हैं कि मिट्टी से गणपति की दो-ढाई फुट ऊंची मूर्ति ही बन सकती है। इससे बड़ी मूर्ति बनाने पर दरार आ सकती है और वह टूट भी सकती है। गणेशोत्सव पर 36 फुट तक ऊंची मूर्तियों की मांग रहती है। साथ ही मिट्टी पर पीओपी की तरह बारीक कारीगरी नहीं हो सकती और उसकी मूर्ति पीओपी मूर्ति से 40 फीसदी महंगी भी पड़ती है।
रसायन विशेषज्ञ डॉ जयंत गाडगिल का कहना है कि समुद्र में लाखों तरह का जहर पहुंच रहा है और केवल पीओपी को प्रदूषण का कारण नहीं माना जा सकता। मूर्तियां शाडू मिट्टी से बनती हैं, जिसमें 8 हानिकारक तत्व मिले होते हैं, जबकि पीओपी में केवल 2 नुकसानदेह तत्व होते हैं। सल्फर और कैल्शियम हटा दें तो पीओपी में 85 फीसदी मिट्टी ही होती है और इसे दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। लालबाग के राजा की मूर्ति बनाने वाले संतोष रत्नाकर कांबले कहते हैं कि मिट्टी के मुकाबले पीओपी पानी में देर से घुलता है और बेहतर होता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2020 में पीओपी की प्रतिमाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस साल माघी गणेशोत्सव से उस फैसले को लागू भी कर दिया गया। मगर प्रदूषण की शिकायत के बावजूद इस बार 6 फुट से ऊंची मूर्तियों को प्राकृतिक जलाशय या समुद्र में विसर्जित करने की इजाजत मिल गई क्योंकि सरकार के पास विकल्प ही नहीं है।