केरल के वायनाड से कांग्रेस के सांसद और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के एक मामले में गुरुवार को दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। गुजरात में सूरत की एक अदालत ने राहुल को अपनी एक आम सभा में मोदी उपनाम वाले लोगों की मानहानि करने वाली टिप्पणी करने के कारण सुनाई है।
आदेश में उन्हें अपील के लिए 30 दिन का समय दिया गया है लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या तब तक सजा निलंबित रहेगी? क्या इस फैसले के बाद वह तत्काल लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य हो जाएंगे, इस विषय पर विशेषज्ञों में एकमत नहीं है। आदेश के अनुसार मानहानि के मामले में धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत दो वर्ष तक के सामान्य कारावास का दंड दिया जा सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 102 उन शर्तों के बारे में है जिनके तहत किसी व्यक्ति को लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराया जा सकता है। उसमें यह भी बताया गया है कि सदन स्वयं यह अयोग्यता लागू कर सकता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुच्छेद 8(4) में कहा गया है कि एक निर्वाचित प्रतिनिधि को उस स्थिति में सदस्यता के अयोग्य कर दिया जाएगा जब उसे दो वर्ष या अधिक अवधि के लिए सजा सुनाई गई हो। ऐसा सदस्य कारावास अवधि के दौरान तथा उसके बाद छह वर्ष तक अयोग्य रहेगा।
बहरहाल वर्तमान सदस्यों के लिए एक अपवाद है: उन्हें सजा की तारीख से तीन महीने का समय मिलता है ताकि वे अपील कर सकें और अपील पर निर्णय होने तक अयोग्यता लागू नहीं होगी।
परंतु लिली थॉमस बनाम भारत (2013) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जनप्रतिनिधित्व कानून का उक्त अधिनियम अवैध है। ऐसे में अयोग्यता स्वत: लागू हो जाती है और अगर अनुच्छेद 102 की शर्तें पूरी होती हैं तो सदस्य तत्काल अयोग्य हो जाता है।
यह प्रावधान हाल ही में लक्षद्वीप के सांसद पीपी मोहम्मद फैजल के मामले में लागू हुआ था। फैजल को कवरात्ती सत्र न्यायालय ने जनवरी 2023 में हत्या के प्रयास का दोषी ठहराया था और 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। कुछ ही दिनों में लोकसभा के अध्यक्ष ने उन्हें सजा सुनाए जाने के दिन से सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया। इसके पश्चात निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव के लिए औपचारिक अधिसूचना जारी की।
फैजल ने केरल उच्च न्यायालय में स्थगन आदेश के लिए अपील की। उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को अपील के निस्तारण तक के लिए निलंबित कर दिया।
फैजल ने निर्वाचन आयोग की उस घोषणा को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसमें उसने कहा था कि लक्षद्वीप की सीट खाली है। निर्वाचन आयोग को उपचुनाव टालने पड़े। केंद्र सरकार ने दलील दी कि अयोग्यता तो दोषी ठहराए जाने के साथ ही शुरू हो जाती है और न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश देने के बावजूद संसद की सदस्यता बहाल नहीं की जा सकती। परंतु केरल उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया। बहरहाल, लोकसभा में लक्षद्वीप सीट खाली है।
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी अचारी कहते हैं कि राहुल अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं और अगर अपील न्यायालय सजा पर रोक लगाती है तो अयोग्यता स्थगित रहेगी। उन्होंने कहा, ‘अगर परीक्षण न्यायालय ने सजा को स्थगित किया है तो इसका अर्थ होगा सदस्यता प्रभावित नहीं होगी।’
उन्होंने कहा, ‘लिली थॉमस मामले में सुनाए गए निर्णय के मुताबिक अगर किसी को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा के साथ दोषी ठहराया जाता है तो वह स्वत: अयोग्य हो जाएगा। बाद में लोक प्रहरी मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर दोष सिद्धि को निलंबित किया जाता है तो अयोग्यता भी स्थगित रहेगी।’ उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को ऊपरी अदालत से दोष सिद्धि पर स्थगन आदेश हासिल करना होगा।
सूरत न्यायालय के निर्णय के राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट हैं। अगर लोकसभा अध्यक्ष मोहम्मद फैजल मामले के हवाले से राहुल को सदस्यता के अयोग्य घोषित कर देते हैं तो कांग्रेस की सबसे प्रभावशाली आवाज निचले सदन में तब तक सुनने को नहीं मिलेगी जब तक उनकी अपील पर सुनवाई नहीं होती। यह बात भाजपा सांसदों की मांग के अनुरूप ही होगी जो कह रहे हैं कि राहुल को सदन के बाहर अपनी टिप्पणियों के द्वारा सदन का विशेषाधिकार हनन करने के लिए निलंबित किया जाए या उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाए।
हालांकि यहां एक विडंबना भी है। 2013 में जब तत्कालीन कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने जन प्रतिनिधित्व (द्वितीय संशोधन एवं पुष्टीकरण) विधेयक, 2013 पेश किया था जिसके तहत कहा गया कि दोष सिद्धि के साथ ही सदस्यता नहीं समाप्त होगी तो उन्होंने ऐसा इसलिए किया था कि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद को बचाया जा सके जिन्हें चारा घोटाले में सजा होने की आशंका थी।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा याचिका नकारे जाने और संसद का सत्र चालू न होने के कारण तब अध्यादेश लाने की प्रक्रिया शुरू की गई। तब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस क्लब में एक संवाददाता सम्मेलन में अध्यादेश को फाड़ दिया था और कहा था कि यह पूरी तरह बेवकूफाना है। पांच दिन के भीतर ही अध्यादेश और विधेयक वापस ले लिया गया। अगर वह कानून बन गया होता तो राहुल के समर्थक आज उनकी संभावित अयोग्यता पर चर्चा नहीं कर रहे होते।
कपिल सिब्बल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि हालांकि वह अब कांग्रेस में नहीं हैं लेकिन वह सर्वोच्च न्यायालय में मामले की पैरवी के लिए तैयार हैं।