पहले से ही बुनियादी सुविधाओं और बिजली संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लुधियाना के सामने अब एक नई मुसीबत पैदा हो गई है।
शहर के उद्योग जगत को मजदूरों की जबर्दस्त किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। लुधियाना के उद्योगपतियों ने बताया कि खासतौर से कटाई के मौसम में मजदूरों की सबसे ज्यादा कमी होती है लेकिन अब स्थिति कुछ ज्यादा ही भयावह हो गई है और मजदूरों की किल्लत पूरे साल झेलनी पड़ रही है।
अधिकांश उद्योगपतियों ने बताया कि यहां मजदूरों की संख्या में 50 से 60 फीसदी तक कमी आई है। लुधियाना निटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित लाकड़ा ने बताया कि लुधियाना उद्योग जगत जो पिछले कई सालों से ढांचागत अभावों सामना कर रहा है, अब उसके सामने सबसे बड़ी समस्या मजदूरों को लेकर है।
यह समस्या दिनों-दिन विकट रूप धारण करती जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि बेहतर ढांचागत सुविधा नहीं होने की वजह से लुधियाना स्थित उद्योग बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में मजदूरों की कमी से स्थिति और भयावह हो सकती है।
इसमें कोई शक नहीं कि मजदूरों की मांग और आपूर्ति में असंतुलन की वजह से उद्योग जगत की उत्पादन लागत में इजाफा होगा और यह भी संभव है कि इसके परिणामस्वरूप उद्योगों पर ताला लगने की नौबत आ जाए। बहरहाल, उद्योगपतियों में यह भय भी घर कर गया है कि मजदूरों में आई कमी से वह भविष्य में ऑडर लेने और डिलिवरी करने के लायक भी रहेंगे या नहीं।
यूनाइटेड साइकिल एंड मैन्युफैक्चर्र एसोसिएशन पूर्व अध्यक्ष डी सी चावला ने बताया कि यहां काम करने वाले मजदूरों में 50 फीसदी तक कमी आई है। चावला ने बताया कि स्टील की कीमतों में हुई बढ़ोतरी की वजह से पहले से ही मार झेल रहे निर्माण उद्योगों के लिए अंचभित कर देने वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है। अगर मजदूरों में इसी तरह कमी आती रही तो स्थिति और कितनी भयावह हो सकती है, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
अपर्याप्त मजदूरों की वजह से वेतन में बढ़ोतरी होगी और इससे छोटे और मझोले उद्योगों को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मसलन उन उद्योगों के मुनाफे में कमी आ सकती है। चावला ने यह भी बताया कि उद्योग जगत मुख्य रूप से प्रवासी मजदूरों पर निर्भर होता है।