बिहार के चुनावी अभियान में बड़ी सभाएं और रैलियां बीते दिनों की बात हो गई। इस बार नेता गांवों में छोटे स्तर पर चुनावी सभाएं कर रहे हैं। इनमें 3-4 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ नहीं जुट रही है।
नेताओं के मुकाबले फिल्मी सितारों को देखने के लिए ज्यादा भीड़ जुट रही है। मसलन सपा की तरफ से संजय दत्त और भाजपा की नेता हेमामालिनी की सभा में भीड़ दिखाई दी। भाजपा और जदयू गठबंधन की ओर से नीतीश कुमार ही प्रमुख प्रचारक बने हुए हैं। लालू प्रसाद भी अच्छी-खासी भीड़ खींच रहे हैं।
हालांकि, इस मामले में राबड़ी देवी भी उनसे पीछे नहीं हैं। उन्होंने इस बार अकेले ही राजद के प्रचार की कमान संभाली। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत बिहार के बक्सर जिले से की। हालांकि कुछ नेताओं को जनता के आक्रोश का सामना भी करना पड़ा।
मसलन नीतीश कुमार को उनके गृहनगर हिलसा में ही जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा वहीं लालू प्रसाद को भी कुछ लोगों ने चप्पल दिखाया। बिहार में नालंदा, पाटलिपुत्रा और पटना साहिब में 7 मई को मतदान होने वाले हैं। पटना साहिब सीट पर सितारों की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है । इस सीट से कांग्रेस के शेखर सुमन और भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा आमने-सामने हैं।
राजनीति में अपने लंबे संघर्ष का वास्ता देकर बिहारी बाबू भीड़ जुटा रहे हैं। दूसरी ओर शेखर सुमन अब तक राजनीतिज्ञों की पोल खोलते रहे थे, पर इस बार लोग चुनावी बक्से से उनकी पोल खोलने वाले हैं। उनके अभिनेता पुत्र अध्य्यन सुमन भी चुनाव प्रचार में युवा वर्ग को लुभाने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं।
हालांकि शेखर सुमन मानते हैं कि उन्हें प्रचार के लिए किसी स्टार की जरूरत नहीं है और वे कांग्रेस के नाम पर वोट की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है, ‘बदलाव अचानक ही आता है और बिहार में कांग्रेस संगठन बिना किसी सहारे के मजबूती से उभरेगा। मैं नेताओं की तरह बहुत सारे वादे नहीं करना चाहता हूं, मैं काम करने के लिए यहां आया हूं।’
पाटलिपुत्रा में भी लालू प्रसाद जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। वे एक दिन में 11 सभाएं तक कर रहे हैं। वहां से विजय सिंह यादव कांग्रेस और रंजन यादव जदयू के उम्मीदवार हैं। इस सीट पर भी कड़ा मुकाबला है। बिहार में निर्देशक प्रकाश झा भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां फिल्म जगत से जुड़ी तीन हस्तियां चुनाव लड़ रही हैं।
टीवी कलाकार श्वेता तिवारी बिहार में चुनाव प्रचार के लिए गई। प्रकाश झा की दावेदारी भी दूसरे तरह की है। उन्होंने बॉलीवुड से जुड़कर सामाजिक व्यवस्था से जुड़ी बेहतर फिल्में बनाई हैं तो वे एक बौद्धिक कार्यकर्ता की तरह नजर आते हैं।
