टेक्नोलॉजी की दुनिया में आज सबसे बड़ी दौड़ है, ऐसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बनाने की जो इंसान से भी ज़्यादा समझदार हो। Google और OpenAI जैसे दिग्गज पहले से इस रेस में हैं। अब Meta के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग भी पूरी ताकत से मैदान में कूद पड़े हैं। मार्क ज़ुकरबर्ग ने Meta के तहत एक नया डिवीजन बनाया है – Superintelligence Labs। इसका मकसद है ऐसी AI बनाना जो इंसान के दिमाग से भी तेज़ सोचे और फैसले ले सके। इस काम के लिए वे दुनियाभर के टॉप AI साइंटिस्ट्स को भारी-भरकम सैलरी और रिसोर्स देकर अपनी टीम में जोड़ रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक ज़ुकरबर्ग ने कई नामी AI एक्सपर्ट्स को सीधे कोल्ड ईमेल भेजे हैं और उन्हें Meta में शामिल होने का न्योता दिया है। कई साइंटिस्ट्स को 100 मिलियन डॉलर यानी लगभग 850 करोड़ रुपये तक की पेशकश की गई है। बीते कुछ हफ्तों में Meta ने OpenAI के प्रमुख साइंटिस्ट लुकास बेयर (Vision Transformer के को-क्रिएटर), Apple में AI मॉडल्स के प्रमुख रुओमिंग पेंग, और Scale AI के पूर्व सीईओ अलेक्ज़ांडर वांग को अपनी टीम में शामिल किया है। वांग अब Superintelligence Labs के को-लीडर हैं। Meta को वांग को लाने में अरबों डॉलर खर्च करने पड़े, लेकिन इससे AI की दुनिया में कंपनी की साख और बढ़ गई है।
Meta की टीम में इतने बड़े नाम जुड़ते देख, बाकी साइंटिस्ट्स को डर है कि कहीं वे ‘पहले सुपरइंटेलिजेंट AI’ बनाने की रेस से बाहर ना हो जाएं। यही डर अब और टैलेंट को ज़ुकरबर्ग की ओर खींच रहा है। इन रिसर्चर्स के लिए पैसा कोई बड़ी बात नहीं है। वे पहले ही काफी अमीर हैं। उनके लिए सबसे बड़ी बात है – नई रिसर्च का नाम बड़े जर्नल्स में छपना, और इतिहास में दर्ज होना कि उन्होंने पहली सुपरइंटेलिजेंट AI बनाई थी।
Meta पहले ही अपने AI मॉडल Llama को ओपन-सोर्स कर चुका है, यानी कोई भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। ज़ुकरबर्ग का मानना है कि इस तरह की AI का फायदा सभी को मिलना चाहिए, ना कि सिर्फ कुछ कंपनियों को। हालांकि, इस रणनीति को लेकर निवेशकों में चिंता है, क्योंकि Meta की कमाई अभी इससे नहीं हो रही है।
Meta के AI मॉडल अभी Google DeepMind या OpenAI से पीछे हैं। एक रीयल-टाइम लीडरबोर्ड में Llama का एक वर्जन 17वें स्थान पर है। साथ ही, इनके मॉडल महंगे भी हैं। इससे ज़ुकरबर्ग पर दबाव है कि वो कमाई का रास्ता भी खोजें।
कई वैज्ञानिकों को भरोसा है कि AI एक दिन बुढ़ापा, कैंसर और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्याओं का हल निकाल सकती है। लेकिन उससे पहले, सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया है – सबसे पहले ऐसी AI बनाना जो इंसान से ज़्यादा तेज़ हो।
AI रिसर्चर्स को बड़ी मात्रा में डाटा और सुपरपावर वाले चिप्स की ज़रूरत होती है। ज़ुकरबर्ग यही दे रहे हैं – दुनिया की सबसे बड़ी कंप्यूटिंग पावर, ताकि उनकी टीम इस रेस को जीत सके। यही ऑफर आज AI की दुनिया के रिसर्चर्स को सबसे ज़्यादा लुभा रहा है। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)