मध्य प्रदेश में वाहन कलपुर्जा निर्माण का प्रमुख केंद्र पीथमपुर का कारोबार कोरोना की मार से उबर नहीं पाया है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी इस औद्योगिक केंद्र के वाहन कलपुर्जा कारखानों में 35 से 50 फीसदी क्षमता से ही उत्पादन हो रहा है। वाहन कलपुर्जा उद्यमियों के मुताबिक इतने उत्पादन से खर्चा निकालना भी दूभर हो गया है। उत्पादन कम होने की वजह व्यावसायिक वाहनों की मांग कमजोर रहना है। पीथमपुर की ज्यादातर वाहन कलपुर्जा इकाइयों में व्यावसायिक वाहनों के कलपुर्जे बनते हैं। पीथमपुर की 850 औद्योगिक इकाइयों में से करीब 200 इकाई वाहन कलपुर्जा विनिर्माण से जुड़ी हैं, जिनका सालाना कारोबार 3,500 से 4,000 करोड़ रुपये का है। यहां बनने वाले ज्यादातर कलपुर्जों की आपूर्ति आयशर मोटर्स को होती है।
पीथमपुर औद्योगिक संगठन के उपाध्यक्ष और पोरवाल ऑटो कंपोनेंट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक देवेंद्र जैन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि पीथमपुर की 90 फीसदी वाहन कलपुर्जा इकाइयां व्यावसायिक वाहनों के कलपुर्जे बनाती हैं और इनके लिए आयशर मोटर्स सबसे बड़ा खरीदार है। अनलॉक में यात्री वाहनों की बिक्री तो सुधर रही है। लेकिन ट्रैक्टर को छोड़कर व्यावसायिक वाहनों की मांग सुस्त है, जिससे पीथमपुर के वाहन कलपुर्जा कारखानों में उत्पादन रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। जैन बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले उनकी कंपनी से 750 टन माल आयशर को जाता था, अब यह घटकर 250 टन रह गया है। इतने कम कारोबार से तो खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है। उद्योग नहीं चलाने से होने वाले नुकसान मसलन कर्मचारी वेतन, कर्ज किस्त, तय खर्चे आदि को कम से कम करने के लिए इस समय कारखाने चलाने पड़ रहे हैं। इस्पात महंगा होने से लागत बढ़ गई है, लेकिन मांग कमजोर होने से तैयार माल के दाम नहीं बढ़ा पा रहे हैं। पिछले साल 75 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। इस साल 50 करोड़ रुपये भी हो गया तो राहत भरी बात होगी। पुराने भुगतान धीरे-धीरे मिल रहे हैं।
बस और ट्रक के लिए वाहन पुर्जा बनाने वाली गैलेक्सी कंपोनेंट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सुधांशु शर्मा ने कहा कि व्यावसायिक वाहनों की मांग इतनी कमजोर है कि उनकी इकाई में क्षमता का 35 फीसदी ही उत्पादन हो रहा है। इससे खर्च भी नहीं निकल रहा है। इस्पात महंगा होने से उद्योग की लागत भी बढ़ गई है। आयशर, महिंद्रा, फोर्स और जॉन डीयर जैसी वाहन कंपनियों के व्यावसायिक वाहनों को सस्पेंशन और ट्रांसमिशन पुर्जे मुहैया कराने वाली केच मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक पुनीत गुप्ता कहते हैं कि बस और ट्रक के वाहन पुर्जों की मांग कमजोर रहने से इनसे मिलने वाले कारोबार की हालत खस्ता है। लेकिन ट्रैक्टर की बढ़ती बिक्री से इनके कलपुर्जों की मांग बढ़ रही है। इसलिए इकाई में उत्पादन क्षमता का 65 से 70 फीसदी तक हो रहा है। हालांकि इतना उत्पादन सितंबर में हुआ है। इससे पहले तो 40 फीसदी ही हो रहा था। मजदूरों की खास समस्या नहीं है, लेकिन कार्यशील पूंजी का संकट जरूर है। पीथमपुर के वाहन उद्योग के लिए कच्चा माल मुख्य रूप से ओडिशा और पंजाब से आता है। इसकी उपलब्धता में भी खास दिक्कत नहीं है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं कि अनलॉक के तीन-चार महीनों की अवधि में पीथमपुर के उद्योगों में विशेष सुधार नहीं आया है। यहां के कारखानों में क्षमता का 30 से 50 फीसदी ही उत्पादन हो रहा है। वाहन उद्योग की तरह पीथमपुर के कपड़ा और दवा उद्योग की हालत भी ठीक नहीं है। कोरोना से संबंधित दवाओं की मांग को छोड़कर बाकी दवाओं की मांग सुस्त ही है। दवा उद्योग को ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी भी खल रही है।
