ईरान-इजरायल युद्ध के कारण आने वाले महीने में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस के तेल की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है जो मई में 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी हालांकि इससे जुड़ी छूट भी पिछले दो वर्षों में सबसे कम हो गई। इस घटनाक्रम से वाकिफ अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी है। उनका कहना है कि कतर और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की आवाजाही को बदलना मुश्किल होगा।
होर्मुज स्ट्रेट के बंद होने के खतरे के कारण आयातक रूस से जुलाई-अगस्त में अधिक माल खरीदने के लिए मजबूर हुए हैं और रूसी बेड़े पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों ने छूट में कटौती कर दी है। एक रिफाइनरी अधिकारी ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि रूस के कच्चे तेल की मांग को देखते हुए छूट लगभग 2 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर पर बनी रहेगी। चीन की तरफ से भी दबाव रहेगा। लेकिन रूस एक भरोसेमंद स्रोत बना हुआ है।’
अमेरिका द्वारा ईरान की सरकार पर भारी प्रतिबंध लगाए जाने के कारण, अधिकांश देश आधिकारिक तौर पर ईरान के साथ कच्चे तेल का व्यापार नहीं करते हैं। लेकिन चीन अब भी इसका सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है जो ईरान के तेल निर्यात का 80-90 प्रतिशत खरीदता है। वर्ष 2024 और 2025 की शुरुआत में ईरान का औसत तेल निर्यात 13.8-17 लाख बैरल प्रति दिन था। ऊर्जा से जुड़ी खबरों पर नजर रखे वाली वैश्विक समाचार एजेंसियों के मुताबिक मार्च 2025 में अमेरिकी प्रतिबंधों में और सख्ती के डर से आयात रिकॉर्ड स्तर पर17.1-18 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया था।
एनर्जी कार्गो पर निगाह रखने वाली संस्था केपलर का अनुमान है कि हाल के महीने में आयातकों ने रूस के कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता दोगुनी कर दी है जिसका आयात बढ़कर 19.6 लाख बैरल प्रतिदिन तक बढ़ गया है। वित्त वर्ष 2025 के पहले 9 महीने में भारत के कच्चे तेल के आयात मूल्य में रूस की हिस्सेदारी 35.14 प्रतिशत थी जो पहले 33.37 प्रतिशत थी। सूत्रों का कहना है कि विविधीकरण पर जोर देने वाली नीति के तहत भारतीय रिफाइनरी ने भी मध्य पूर्व के कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता कम करनी शुरू कर दी है। आईसीएआर के मुताबिक भारत के कच्चे तेल आयात का लगभग 45-50 प्रतिशत और घरेलू स्तर पर आने वाले प्राकृतिक गैस का 54-60 प्रतिशत इस कॉरिडोर से होकर गुजरता है।
वर्ष 2024-25 में भारत द्वारा आयातित 14.8 अरब डॉलर के मूल्य के एलएनजी में से कतर और यूएई ने 6.3 अरब डॉलर और 2 अरब डॉलर मूल्य की एलएनजी भेजी जो कुल एलएनजी का 56 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा था। इसका एक बड़ा हिस्सा दीर्घकालिक अनुबंधों के तहत था। सरकारी कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी और गेल के पास फिलहाल कतर से एलएनजी की आपूर्ति के लिए कई लंबी अवधि के अनुबंध हैं। इनमें सबसे बड़ा पेट्रोनेट का कतरएनर्जी के साथ 1999 में हस्ताक्षरित 75 लाख टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) का अनुबंध है।
वर्ष 2028 में समाप्त होने वाले इस अनुबंध का नवीनीकरण इस साल की शुरुआत में 20 साल के लिए किया गया था। इस अनुबंध का नवीनीकरण पहले के करार की तुलना में काफी कम कीमत पर किया गया और ऐसी उम्मीद है कि भारत इससे करीब 8 लाख प्रति डॉलर ब्रिटिश थर्मल यूनिट की बचत करेगा और इससे अनुबंध अवधि में 6 अरब डॉलर की बचत होगी। कतरएनर्जी ने अप्रैल 2025 से शुरू होने वाले पांच साल के आपूर्ति अनुबंध के तहत गेल को हर वर्ष 12 कार्गो की आपूर्ति करने की बोली भी जीती है। वहीं दूसरी ओर बीपीसीएल का यूएई के एडीएनओसी के साथ पांच साल तक के लिए 24 लाख टन की आपूर्ति का करार अप्रैल में शुरू हुआ।
लॉजिस्टिक्स और कीमतों से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद इसका एकमात्र सबसे बड़ा वैकल्पिक स्रोत अमेरिका था। रिफाइनरी के एक अधिकारी ने कहा, ‘अमेरिका से एलएनजी आयात पर पहले से ही जोर रहा है और हाल में तनाव बढ़ने से पहले ही वर्ष 2025 में अमेरिका से स्पॉट खरीदारी बढ़ने की उम्मीद थी। लेकिन लागत अधिक होगी।’ करीब 2.46 अरब डॉलर की एलएनजी भेजकर अमेरिका वित्त वर्ष 2025 में भारत के लिए एलएनजी का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया जो इससे पिछले वर्ष तीसरे स्थान पर था।