किसी जायकेदार उद्योग की बात चले और पेठे का जिक्र न हो, ऐसा तो हो नहीं सकता है। अब अगर पेठे का जिक्र छिड़ ही गया है तो आगरा का नाम तो आना ही आना है।
आगरा के पेठा उद्योग पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आगरा स्वच्छ प्रौद्योगिकी पहल (सीटीआई) की तरफ से नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने का दबाव लगातार बढ़ रहा है। आगरा में पेठा आज भी पुराने तौर तरीकों से बनाया जा रहा है। ईंधन के तौर पर कोयले के इस्तेमाल से काफी प्रदूषण होता है, जबकि उद्योग प्रतिदिन 40 टन जैविक कचरा पैदा करता है।
पेठा उद्योग मंडल के पदाधिकारी घनश्याम तिवारी ने बताया, ‘पेठा कारोबारी भी स्वच्छ ईंधन और नई प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास संसाधनों का अभाव है। सरकार को ऐसी योजना बनानी चाहिए जिससे पेठा उद्योग भी प्रभावित न हो और ताज की सुंदरता को भी सहेज कर रखा जा सके।’ सरकार आगरा की पेठा इकाइयों को पहले ही शहर से बाहर कालिंदी विहार में स्थानांतरित कर चुकी है।
उन्होंने बताया, ‘ईंधन के तौर पर कोयले की जगह गैस का इस्तेमाल करने का दबाव बढ़ रहा है। कई पेठा इकाइयों में तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, लेकिन जब आगरा और फिरोजाबाद के दूसरे उद्योगों को ही पर्याप्त गैस नहीं मिल पा रही है तो पेठा उद्योग को कैसे गैस मिल सकेगी।’ आगरा में ढलाई उद्योग और कांच उद्योग में गैस की किल्लत की खबरें अक्सर आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी फैसले से छोटे कारोबारी तबाह हो जाएंगे।
महंगाई ने किया कमाल
खैर, ये सब तो पर्यावरण को बचाने की जद्दोजहद का हिस्सा है। कारोबार की बात करें तो यह पेठा उद्योग के लिए अभी तक का सबसे बेहतरीन समय है। महंगाई बढ़ने से दूसरी मिठाइयों के भाव आसमान पर चढ़ चुके हैं जबकि गरीबों की मिठाई कहे जाने वाले पेठे की कीमत अभी भी इनके मुकाबले कई गुना कम है।
पेठा बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर कुम्हडा और चीनी का इस्तेमाल किया जाता है। बीते वर्षो के दौरान चीनी सस्ती हुई है जबकि आगरा, एटा, इटावा, मेरठ, बुलंदशहर और कानपुर देहात से कुम्हडा आसानी से मिल जाता है। इस कारण से दूसरी मिठाइयों के मुकाबले पेठे की लागत में अधिक इजाफा नहीं हुआ है। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण भी लोगों में पेठे से प्यार बढ़ा है। इस कारण बीते कुछ वर्षों के दौरान आगरा में पेठे के एजेंटों की संख्या दोगुनी हो गई और हल्दीराम जैसी कई बड़ी कंपनियों ने बाजार में डिब्बाबंद पेठा उतार दिया है।
दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्सों, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में आगरा के पेठे की काफी मांग है। इसके अलावा आगरा से अमेरिका और पश्चिम एशियाई देशों में भी पेठे का निर्यात किया जाता है। उत्तर प्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी पेठा बनाया जाता है।
अब है नया जमाना
परंपरागत भारतीय उद्योगों की बात करें तो पेठा उद्योग अपने आप को बदलते समय के साथ ढालने में कुछ हद तक कामयाब रहा है। आज बाजार में करीब 80 तरह के स्वादों में पेठे मौजूद हैं और पेठा इकाइयां निर्यात बाजार में अधिक से अधिक हिस्सेदारी पाने के लिए यूएसएफडीए की मंजूरी ले रही है। लेकिन यह भी सच है कि ऐसी इकाइयों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूनएनआईडीओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक आगरा में पेठा बनाने वाली करीब 500 इकाइयां हैं। इनमें से करीब 80 फीसदी छोटी इकाइयां हैं। उद्योग से जुड़े ज्यादातर कारीगर या तो अप्रशिक्षित हैं या फिर अर्ध-प्रशिक्षित। रिपोर्ट में कहा गया है कि पेठा उद्योग को संगठित स्वरूप देने के लिए कारीगरों के प्रशिक्षण पर खास तौर से जोर देना होगा जबकि अभी तक पेठा क्लस्टर में प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पेठा उद्योग उत्पादन के तरीके और पैकेजिंग को बेहतर बना कर अंतराष्ट्रीय स्तर पर नया बाजार हासिल कर सकता है।
नूरी दरवाजा का पेठा
आगरा में पेठे की सबसे अधिक दुकानें नूरी दरवाजे में हैं। कहते हैं कि मुगल बेगम नूरजहां को आगरा का पेठा बहुत पसंद था इसलिए नूरजहां के नाम पर इलाके का नाम नूरी दरवाजा रख दिया गया।