मतदाताओं के केवल घोषणापत्र पढ़ने के आधार पर कभी भी चुनाव हारे या जीते नहीं गए हैं। तथ्य यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के थिंक टैंक और नीतिगत मामलों पर विशेषज्ञता जाहिर करने वाले लोग घोषणापत्र तैयार करने में और उसके बाद विभिन्न पार्टी आलाकमान से इस पर मंजूरी दिलाने में काफी समय खर्च करते हैं।
कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र के कुछ मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस पार्टी के बीच हाल में बढ़े मतभेद से इस बात की पुष्टि होती है कि घोषणापत्रों की प्रासंगिकता पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। हम भाजपा, कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम और तृणमूल कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल की गई बुनियादी ढांचे से जुड़ी कुछ प्रमुख बातों पर गौर करते हैं।
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि भाजपा के घोषणापत्र में रेलवे केंद्र में है और ऐसे में इस बात को लेकर भरोसा है कि सड़क के मुकाबले अगले पांच वर्षों में रेलवे की अहमियत बढ़ने वाली है।
भाजपा हर वर्ष 5,000 किलोमीटर से अधिक नए लंबे ट्रैक बनाने के लिए बातचीत कर रही है और इसके अलावा कवच सुरक्षा तंत्र का दायरा बढ़ाने, 130 से अधिक रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास करने के साथ ही रैपिड रेल इंटर सिटी ट्रेन सेवाएं जैसे कि दिल्ली-मेरठ ट्रेन सेवाओं जैसी पेशकश की जा रही है।
देश के 20 से अधिक शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाओं की शुरुआत भी ठीक उसी तरह एजेंडा में है जिस तरह उपयोगकर्ताओं के लिए बेहद सरल लेकिन कमाल के ऐप आ रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी ने रेलवे के बुनियादी ढांचे की पर्याप्त सुरक्षा और पुराने बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण पर जोर दिया है। वहीं रेलवे सुरक्षा के पहलू पर द्रमुक और तृणमूल की भी हां है। आश्चर्य की बात यह है कि द्रमुक और तृणमूल दोनों ही दल चाहते हैं कि पुराने दौर की तरह अलग से रेल बजट पेश किया जाए।
ऐसा लगता है कि 15,000 किलोमीटर राजमार्ग तैयार करने के अलावा भाजपा का सड़क को लेकर कोई नया विचार नहीं है। इसके अलावा जीपीएस आधारित टोल तंत्र का भी कोई जिक्र नहीं है। इसमें बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर प्रारूप को भी निवेशकों के अनुरूप बनाने का कोई जिक्र नहीं है।
कांग्रेस रोड टोल की गणना के लिए नया फॉर्मूला चाहती है हालांकि घोषणापत्र में इसकी बारीकियों का जिक्र नहीं किया गया है। भाजपा के घोषणापत्र में भी सड़क की सुरक्षा का जिक्र है।
बंदरगाहों के संदर्भ में देखा जाए तो भाजपा ने अपने घोषणापत्र में अंतर्देशीय जल परिवहन की हिस्सेदारी दोगुनी करने पर जोर दिया है। वहीं माकपा सार्वजनिक क्षेत्र वाले बंदरगाह विकास में भूस्वामित्व वाले मॉडल (लैंडलॉर्ड मॉडल) को खत्म करना चाहती है।
तृणमूल के घोषणापत्र में तटीय क्षेत्रों में आर्थिक क्षेत्र की आवश्यकता का जिक्र किया गया है। रेलवे के बाद जल सबसे अहम मुद्दा है। भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल सभी ने अपने घोषणापत्र में साफ और सुरक्षित पेयजल को प्राथमिकता देने की बात की है। द्रमुक और कांग्रेस के घोषणापत्र में विशेषतौर पर सभी तटीय क्षेत्रों में विलवणीकरण संयंत्र बनाने का जिक्र है।
भाजपा और कांग्रेस के घोषणापत्र में जल की गुणवत्ता, जल बहाव प्रबंधन, नदियों में नए सिरे से सुधार करने के मुद्दे पर चर्चा की गई। माकपा ने एक मूल्यवान सार्वजनिक परिसंपत्ति के तौर पर जल को संशोधित करने के लिए राष्ट्रीय जल नीति को नए सिरे से बनाने का प्रस्ताव दिया है और इस बात पर जोर दिया है कि नदियों का संरक्षण हो, जल निकायों में विस्तार के साथ ही भूमिगत जल के दायरे को बढ़ाया जाए।
जहां तक विमानन क्षेत्र का सवाल है भाजपा ने अंतरराष्ट्रीय हवाईअड़्डे में विस्तार करने और अमृतकाल नागरिक विमानन मास्टर प्लान पर अमल करने का जिक्र किया है ताकि हवाईअड्डे को क्षेत्रीय केंद्र के तौर पर उन्नत किया जाए। माकपा ने हवाईअड्डे के निर्माण, परिचालन और रखरखाव में सार्वजनिक क्षेत्र का नियंत्रण बनाए जाने की वकालत की।
पार्टी के घोषणापत्र में परिवहन और लॉजिस्टिक फीचर पर प्रमुखता से जोर दिया गया है जिससे इनके विकास के लिए अलग रणनीति बनाई जाए। भाजपा के घोषणापत्र में ई-बसों का बेड़ा बढ़ाने पर बात की गई है और इसके साथ ही जलमार्गों को मजबूत बनाने पर भी जोर दिया गया है।
इसके अलावा एकीकृत महानगरीय परिवहन तंत्र तैयार करने पर भी जोर दिया है ताकि मल्टी- मोडल परिवहन सुविधाओं को जोड़ा जा सके। कांग्रेस के घोषणापत्र में शहरी क्षेत्रों में एकीकृत मल्टी-मोडल सार्वजनिक परिवहन के विचार को समर्थन दिया गया है।
इनको मिलाकर तार्किक तरीके से भारतीय शहरों के लिए एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) पर अमल किया जाना चाहिए जो अब भी 2006 में पहली नीतिगत घोषणा के बाद वास्तविक रूप से अमलीजामा पहनाए जाने का इंतजार कर रहा है।
तृणमूल कोलकाता मेट्रो का विस्तार उपनगरीय इलाके में करना चाहती है। भाजपा और द्रमुक ने अपने घोषणापत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर जोर देते हुए देश भर में चार्जिंग के बुनियादी ढांचे और ईवी के लिए सब्सिडी बढ़ाने की बात रखी है।
ग्रामीण क्षेत्र के वोटों पर नजर रखने वाले सभी दलों के लिए कृषि से जुड़ा बुनियादी ढांचा सबसे अहम है जिसको लेकर काफी रस्साकशी है और ऐसे में भाजपा, कांग्रेस, द्रमुक, माकपा और तृणमूल सभी ने विविध रणनीति बनाई है। भाजपा ने कृषि बुनियादी ढांचा जैसी पहल के जरिये एकीकृत योजना बनाते हुए सिंचाई में विस्तार के साथ ही भंडारण क्षमता पर जोर दिया है।
द्रमुक ने नदी को जोड़ने से जुड़ी परियोजनाओं और कोल्ड स्टोरेज क्षमता पर जोर दिया है। तृणमूल ने कोल्ड-चेन बुनियादी ढांचे का भी जिक्र किया है।
आवासीय बुनियादी ढांचे वाली परियोजना के दायरे में भाजपा ने प्रधानमंत्री आवास योजना में विस्तार करने और रेरा कानून को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। वहीं कांग्रेस ने वासभूमि (होमस्टेड) अधिकार कानून पर जोर दिया है।
जहां तक बिजली क्षेत्र से जुड़ी नीतियों की बात है, भाजपा, तृणमूल और द्रमुक सभी अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देते हुए नजर आते हैं। कांग्रेस ने ग्रीन न्यू डील निवेश योजना की पेशकश की है और इसका लक्ष्य अक्षय ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने और इसके साथ ही स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी नौकरियों पर पर है।
गौर करने लायक बात यह है कि इसने सामुदायिक इस्तेमाल के लिए पंचायतों को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव रखा है ताकि सौर ग्रिड लगाया जा सके और यह उसके जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण करने की नीति से जुड़ा है।
भाजपा ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन में विस्तार करने पर जोर दिया है जो भारत को एक हाइड्रोजन केंद्र बनाने की परिकल्पना पर आधारित है। वहीं नीतिगत स्तर पर भाजपा के घोषणापत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि संसाधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने की रणनीति बनाने की जरूरत है और साथ ही रेलवे, हवाईअड्डे, डिजिटल बुनियादी ढांचा जैसे क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है।
घोषणापत्र में बुनियादी ढांचे में निजी निवेश के लिए नियमन को सरल बनाने के लक्ष्य की बात भी की गई है ताकि निजी निवेश आकर्षित किया जाए। कांग्रेस ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) को प्राथमिकता देने पर जोर दिया है जबकि मौजूदा पीपीपी मॉडल के प्रभावी होने को लेकर चिंता जताई है।
यदि पिछले और मौजूदा घोषणापत्रों में निरंतरता की सराहना की जाए, तो इसके लिए खिताब निश्चित रूप से माकपा को जाता है जो इस बात से कभी डिगी नहीं कि सभी बुनियादी ढांचे का विकास, इसका रखरखाव और संचालन सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा ही किया जाना चाहिए! सभी घोषणापत्रों में एक बात समान है कि इसमें शहरी बुनियादी ढांचे से जुड़ी चिंता शामिल नहीं है।
चाहे स्मार्ट शहरों का विकास हो या भारत की तेजी से बढ़ती शहर की बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नगरपालिका बॉन्ड जुटाने की बात हो, इनको लेकर घोषणापत्रों में कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती है।
कुछ हद तक निराशा के साथ कहा जाना चाहिए कि घोषणापत्रों में भारत के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रेरणादायक कार्यक्रमों और विचारों के तौर पर देने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। बेहतर यह होगा कि इन घोषणापत्रों से ज्यादा उम्मीद न की जाए।
(लेखक बुनियादी ढांचा मामलों के विशेषज्ञ हैं। लेख में वृंदा सिंह का भी योगदान)