भारत की वृद्धि में निजी निवेश का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। लंबे समय से निजी निवेश का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा है। लंबी गिरावट का दौर 2021 में एकदम निचले स्तर तक पहुंच गया और हालिया प्रमाण सुधार दर्शाते हैं। यह एक अहम शुरुआत है लेकिन अभी हम यह नहीं जानते कि इसका नतीजा बड़ी और दीर्घकालिक वृद्धि के रूप में देखने को मिलेगा या नहीं।
वायु तरंगों पर भारत सरकार का दबदबा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था का बहुत छोटा हिस्सा है। लगभग हर प्रकार का उत्पादन और रोजगार निजी क्षेत्र में ही तैयार होते हैं। राज्य शासन के कदमों के जरिये होने वाले हर काम को निजी क्षेत्र के लोगों के लिए निवेश प्रोत्साहन के कदम के रूप में ही देखा जाना चाहिए। इस बुनियादी समझ के आधार पर बात करें तो सार्वजनिक नीति ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां अर्थव्यवस्था में शक्ति प्रदर्शन किया जाए।
यह ऐसी शर्तें स्थापित करने का खेल है जिनमें निजी क्षेत्र अर्थव्यवस्था में ताकत दिखाने वाले कामों में संलग्न हो। इसी प्रकार वित्तीय तंत्र को भी ज्यादा से ज्यादा ऐसे क्षेत्र के रूप में देखा जाना चाहिए जो अर्थव्यवस्था के निर्माण में गैर वित्तीय कंपनियों के लिए माहौल तैयार करे। नीति और वित्त दोनों ऐसे माध्यम हैं जिनकी मदद से उत्पादन और रोजगार में जीवंत वृद्धि हासिल की जा सकती है और ऐसा गैर वित्तीय कंपनियों की सहायता से किया जा सकता है।
भारत में छोटी कंपनियों पर नजर नहीं रखी जाती है लेकिन बड़ी कंपनियों पर रखी जाती है। निवेश की गतिविधियों को आंकने का एक अच्छा तरीका है बड़ी गैर वित्तीय कंपनियों की सकल तयशुदा परिसंपत्तियों में सालाना आधार पर होने वाली वृद्धि का आकलन। यह बड़ी कंपनियों के निवेश प्रवाह का सालाना आंकड़ा होता है।
इस आधार पर तेज वृद्धि के दो दौर नजर आते हैं। पहली बार सन 1990 के दशक के मध्य में और उसके बाद सन 2000 के दशक के आखिर में। सकल तयशुदा परिसंपत्तियों में वृद्धि 2007-08 के करीब 25 फीसदी से घटकर 2021-22 में करीब शून्य फीसदी रह गई। सीएमआईई कैपेक्स डेटाबेस का इस्तेमाल करके भी निवेश का एक अच्छा शीर्ष संकेतक पाया जा सकता है।
यह हर प्रकार की निवेश परियोजनाओं पर नजर रखता है। सन 1995 से ही डेटाबेस के लिए तौर तरीके लागू हैं और यह भारत में निवेश गतिविधियों का अच्छा रिकॉर्ड रखता है। जब कोई कंपनी बिना निवेश परियोजना की औपचारिक घोषणा के मौजूदा उपक्रम के भीतर काम करती है तो ये निवेश व्यय डेटाबेस में नजर नहीं आते।
डेटाबेस में केवल वही परियोजनाएं नजर आती हैं जिनका विशिष्ट नाम होता है जो कंपनी की विभिन्न घोषणाओं में नजर आता है। हम खुद को उन परियोजनाओं तक सीमित रखते हैं जो सीएमआईई के तहत क्रियान्वयनाधीन श्रेणी में वर्गीकृत हैं। आइए एक नजर डालते हैं क्रियान्वयन के अधीन निजी परियोजनाओं के मूल्यांकन पर।
यह आंकड़ा हमारे देश में परियोजनाओं पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों के लिए बड़ी चिंता का विषय रहा है क्योंकि इसमें 2011-12 से लगातार लंबे समय तक गिरावट आई है। अब हालात बदल गए हैं। 2020 में यह अपने निचले स्तर पर पहुंचा और आज की मुद्रा के हिसाब से इसका मूल्यांकन करीब 47 लाख करोड़ रुपये रहा। 2020 से इसमें धीमा सुधार शुरू हुआ और 2023 के आरंभ में तेज प्रगति हुई।
ताजा मूल्यांकन 55 लाख करोड़ रुपये का है जो निचले स्तर से 17 फीसदी अधिक है। लंबी गिरावट का क्रम उलट गया है। भारतीय आर्थिक हालात में यह एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन है। निजी निवेश के शेयरों का वर्तमान मूल्य जहां 2011 के उच्चतम स्तर से काफी पीछे है वहीं कुछ निरंतर गिरावट में अब पलटाव आया है। हम दोबारा सन 2018 के स्तर पर हैं।
वृहद अर्थव्यवस्था की एक सुज्ञात अवधारणा यह है कि मांग बहुस्तरीय प्रभाव उत्पन्न करती है। निजी निवेश की आवक में तेजी जैसा व्यय क्षेत्र का झटका अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है। खरीद और रोजगार में इजाफा होने पर मांग में भी बढ़ोतरी नजर आती है। हर व्यक्ति जो देखता है कि उसके मित्रों या परिजन को रोजगार मिल रहा है वह इसकी व्याख्या आर्थिक स्थिति में सुधार के रूप में ही करता है। इससे कई सकारात्मक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं।
उदाहरण के लिए ऋण में इजाफा, टिकाऊ वस्तुओं की खरीद में इजाफा, कारोबारी योजनाओं में अधिक निवेश आदि इसका उदाहरण हैं। अब तक हमने अर्थव्यवस्था के लिए समग्र रूप में परीक्षण किया है। इन सबके नीचे भारी विषमता है। ऐसा इसलिए कि कुछ कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा है और कुछ का पतन हो रहा है। ताजा दशक में जो कुछ घटा है उसने कई कंपनियों और कारोबारी नेताओं को भयभीत कर दिया है।
हाल के महीनों में जो तेजी आई है, जरूरी नहीं कि वह सभी के लिए सकारात्मक दौर लेकर आए। कंपनियों का एक समूह ऐसा है अवसर देख रही हैं और दोबारा निवेश की तैयारी में हैं। क्या इस स्थिति में हमें शुरुआत में सतर्क वृद्धि देखने को मिल सकती है जो कंपनियों के एक छोटे समूह की बदौलत हो तथा जो बड़ी वृद्धि के दौर की पृष्ठभूमि तैयार कर सके जहां सभी कंपनियों को लाभ उठाने का अवसर मिल सके।
क्या मौजूदा आशावाद सन 1990 के दशक के मध्य या 2000 के दशक के आखिर की तरह तेज वृद्धि के दौर में बदल सकता है? इस श्रृंखला में तीन संपर्क हैं। क्या क्रियान्वयन के अधीन निजी परियोजनाओं में यह तेजी निवेश में तेजी लाएगी जैसा कि विशुद्ध तयशुदा परिसंपत्ति के आंकड़ों में नजर आता है? क्या निवेश व्यय में इजाफे की यह उम्मीद मांग और रोजगार में गुणक प्रभाव उत्पन्न करेगी? क्या वृहद आर्थिकी में मामूली सुधार व्यापक निवेश और तेज वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी जैसा पहले दो अवसरों पर हो चुका है?
इन तीन सवालों को लेकर अगर आपका नजरिया सकारात्मक है तो फिर हम तीसरी तेज वृद्धि के दौर की ओर बढ़ सकते हैं। भारतीय वृहद आर्थिकी के मूल में यही तीन सवाल हैं लेकिन इससे जुड़ा शोध साहित्य इनके रिश्ते की समयावधि और आकार के बारे में कुछ खास नहीं जानता है।
आने वाले महीनों में तीन चीजों पर नजर रखनी होगी: 2022-23 और 2023-24 की फर्म एनुअल रिपोर्ट में शुद्ध तयशुदा परिसंपत्ति वृद्धि के आंकड़े, काम कर रहे लोगों की तादाद, गैर कामकाजी से बेरोजगार श्रेणी में शामिल लोग तथा वे कंपनियां जो दोबारा निवेश कर रही हों।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)